अनिल मिश्रा / बदलापुर
सरकार के द्वारा नदी की सफाई के नाम पर पानी की तरह से पैसे बहाए जा रहे हैं, जिसका फायदा केवल नेता, ठेकेदार को ही हो रहा है। परंतु नदी सफाई के बदले दिन-प्रतिदिन और मैली होती दिखाई दे रही हैं। वालधुनी नदी हो या उल्हास नदी दोनों में से एक नदी-नाला का रूप ले रखी है।100 करोड़ों रुपए के ऊपर कचरा निकालने, दूषित जल की प्रक्रिया पर खर्च हो चुका है। उल्हासनगर मनपा का सफाई विभाग जेसीबी मशीन से 6000 डंपर कचरा निकाल चुकी है। इसी प्रकार से उल्हास नदी से जलकुंभी निकालने के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च होता आ रहा है। इसके बावजूद सफलता शून्य मिल रहा है। अभी हाल में बदलापुर में बहने वाले नाले जो उल्हास नदी में मिलते हैं। उस पर दीवार बनाने के दो सौ करोड़ रुपए पास किया गया है, जिसको लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं कि किया इस करोड़ों रुपए खर्च करने से उल्हास नदी में दूषित पानी नही मिलेगा क्या?
बताया गया कि 8 वर्ष से उल्हास नदी प्रदूषणमुक्त हो इसके लिए ठाणे, कल्याण, डोंबिवली, उल्हासनगर, बदलापुर के अलावा अन्य जगह के पर्यावरण मित्र, आंदोलन कर रहे हैं। उल्हास नदी करीबन 80 लाख लोगों की प्यास बुझाती है। इसके बाद भी सरकार की गलत नीतियों के कारण शासन व प्रशासन आंदोलनकारियों को सिर्फ लिखित, मौखिक आश्वास दिया जाता रहा है। कार्य न करते हुए पर्यावरण मित्र को केवल फंसाया जाता है।
शनिवार 22 मार्च 2025 की सुबह 10 बजे से विश्व जल दिवस पर शासन व प्रशासन का निषेध करते हुए मुंडन कर आंदोलन की शुरुवात की गई। अब प्रतिदिन उल्हास नदी के दूषित पानी, जलकुंभी मे खड़े रहकर बेमुद्दत आंदोलन की शुरुवात की गई है।आंदोलनकारियों की मांग है कि उल्हास नदी में मिलने वाले सभी दूषित घरेलू, कारखाने, बस्ती के नाले के पानी को नदी में मिलने से रोका जाए। नदी को जलकुंभी मुक्त किया जाय। मोहना बांध के कुछ मीटर अंतर पर एक और बांध बनाया जाय। मोहना बांध के पास मैला व अशुद्ध केमिकलयुक्त पानी जो नदी मे मिलता है। उस जगह से कीचड़ निकाला जाय। दूषित उल्हास नदी से अतिरिक्त पाणी मराठवाडा को देने की यदि योजना होगी तो उसे रद्द किया जाय। उल्हास नदी पर आश्रित लोगों में भीषण पानी का अकाल रहता है। पानी पिलाना एक धर्म है, लेकिन किसी को पानी देना है तो पहले पानी को शुद्ध कर फिर पानी दिया जाना चाहिए।
वैसे नदी की सफाई को लेकर मी कल्याणकर सामाजिक संस्था, कंडोमपा के पूर्व नगरसेवक नितिन निकम, उमेश बोरगांवकर, कैलास शिंदे, उल्हास नदी, वालधुनी नदी संवर्धन संस्था, हिराली फाऊंडेशन की सरिता खानचंदानी जैसी अनेक सामाजिक संस्था के द्वारा विश्व जल दिवस के अवसर पर 22 मार्च की सुबह 10 बजे से मोहना नाला जहां पर उल्हास नदी में मिलता है। उस जगह पर बैठ कर बेमुद्दत आंदोलन शुरू किया गया है और आगे भी आंदोलन जारी रहेगा।