कल जैसी थी जिंदगी, आज भी वैसी है
बता ऐ जिंदगी, तू खुद में क्या फर्क लाई है।
आंसुओं का जिक्र न कर तू कल की तरह
पता ढूंढ़कर खुशी तेरे दर पे आयी है।
हर दिन, गम को तराजू में न तोल
एक शाम, हमने देखी, वो मुस्कुराई है।
मुकद्दर भी किसी-किसी को नसीब होता है
किस्मत पे इल्जाम लगाना, तेरी रुसवाई है।
माना कि वक्त ने मुश्किलों की झड़ी लगाई है
मगर हमने भी हौसलों की फुलझड़ियां जलाई हैं।
जिंदगी को हरा, भला कौन जीत पाया है ‘त्रिलोचन’
एक रफ्तार मुट्ठी में, हमने अब भी बचाई है।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा