दिल्ली से योगेश कुमार सोनी
चुनाव प्रचार खत्म होते ही प्रधानमंत्री ने अपनी ओर एक बार फिर ध्यान केंद्रित करने के लिए कन्याकुमारी के स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल के ध्यान मंडप में मेडिटेशन करते हुए अपनी टीम से विडियो जारी करवाया है। इस मामले पर विपक्ष ने हमला बोला है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि वोटिंग से ४८ घंटे पहले किसी भी तरह का प्रचार नहीं होना चाहिए फिर चाहे वो साइलेंट हो या फिर कुछ और। हमें इस बात से दिक्कत नहीं है कि कोई क्या कर रहा है, वो मौन व्रत रखे या कुछ और, लेकिन अप्रत्यक्ष अभियान नहीं चलना चाहिए। कांग्रेस ने इसे आचार संहिता का एक उल्लंघन बता दिया है। हालांकि, अभी तक चुनाव आयोग ने ऐसे किसी पत्र पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। दरअसल, मामला यह है कि प्रधानमंत्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का कोई भी मौका नही छोड़ते हैं। चुनावों में सक्रियता किस तरह की रही, यह देश की जनता ने भली-भांति देखा लेकिन चुनाव प्रचार के बाद भी पीएम साहब अपने आपको बेचने से रुके नहीं। स्पष्ट है कि यदि किसी को दान देना, पूजा-पाठ करना या किसी की मदद करना किसी को बताया तक नहीं जाता, चूंकि एक मान्यता के अनुसार वह नहीं लगता। आपको ध्यान लगाना है बहुत अच्छी बात है। यह आपकी एक निजी इच्छा है और आपकी भक्ति का एक भाग भी है, लेकिन यहां भी आपका वैâमरा पहुंच रहा है तो अब जनता को यह स्पष्ट रूप से समझ में आ रहा है कि इसको आप भावनात्मक पहलू के आधार पर बेच रहे हैं। चुनावी समीकरण में इस बार बीजेपी की स्थिति पतली है, जिसका पार्टी को अंदाजा हो गया और वह आगामी ४ जून को पता भी चल जाएगा। बीजेपी अपने कार्य, मुद्दों व योजनाओं के आधार पर तो जनता को प्रभावित नहीं कर पाई, जिससे पार्टी को अब बड़ी क्षति हो रही है। वैसे प्रधानमंत्री अंत तक भी पत्ते व हिम्मत नहीं हारते और वो ही पार्टी को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाता है। आज बीजेपी केवल वन मैन आर्मी बन कर रह गई है। पार्टी में न तो दूसरा नेता नजर आता है और न ही उसकी कोई ताकत। जब से मोदी ने पार्टी की मुख्य तौर पर कमान संभाली है, तब से किसी अन्य नेता की गंभीरता दिखाई नहीं देती और मीडिया का भी पूरा ध्यान केवल मोदी की ओर ही केंद्रित रहता है। मीडिया भी मोदी के हर घटनाक्रम को इतना बढ़ा-चढ़ाकर बताता है कि इससे पहले कभी किसी प्रधानमंत्री ने कोई काम किया ही नहीं। बहरहाल, विपक्ष ने मोदी की तपस्या को भी एक चुनावी स्टंट बताया है और चुनाव आयोग में शिकायत भी की है। इस पर क्या क्रिया-प्रतिक्रिया होती है यह तो समय ही बताएगा, लेकिन एक प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने अपनी गरिमा का वैसे ध्यान नहीं रखा, जितना इस पद पर आसीन नेता को रखना चाहिए। अब राजनीति का फॉर्मेट बदल गया है। केवल बातों से काम नही चलेगा, गुणवत्ता पर भी बात होगी। पार्ट टाइम राजनीति का समय भी जा चुका है। रिजल्ट के बेहद करीब है और जनता ने क्या तय किया है, बहुत जल्द ही सामने आ जाएगा।