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सवाल हमारे, जवाब आपके?

देश में महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है। लोन लेकर छोटा-मोटा धंधा करनेवाले आदमी को अब धंधे में दिक्कत आनेवाली है, क्योंकि सरकारी बैंक एसबीआई ने लोन पर ब्याज बढ़ा दिया है। बैंक द्वारा मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लीडिंग रेट में १० बेसिस पॉइंट का इजाफा करने पर आपका क्या कहना है?
आम आदमी पर बढ़ेगा बोझ
महंगाई और बेरोजगारी की मार झेल रहे आम आदमी पर एसबीआई के इस पैâसले से और भी बोझ बढ़ेगा। यह कदम छोटे व्यापारियों के लिए एक और झटका है। ब्याज दर में वृद्धि से लोन लेना और महंगा हो जाएगा, जिससे लोग अपने छोटे-मोटे धंधों को चालू रखने में भी असमर्थ हो सकते हैं।
– काव्या मिश्रा, मीरा रोड

लोगों की उम्मीदों पर फिरेगा पानी
सरकार तो विकास की बात करती है, लेकिन एसबीआई के इस कदम से ऐसा लगता है कि गरीब और मध्यम वर्ग को और भी मुश्किलों में धकेला जा रहा है। मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट में इजाफा करना एक ऐसा पैâसला है जो व्यापारियों और नौकरीपेशा लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर देगा।
– दिव्यांश, सांताक्रुज

 बैंक ने बरपा दिया कहर
७८वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक ने हिंदुस्थान की अवाम को जो तोहफा दिया है, उसे भुलाया नहीं जा सकता। एक ओर आम आदमी कमरतोड़ महंगाई से परेशान है और दूसरी तरफ बैंक ने यह कहर बरपा दिया है। दरअसल, हम मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय लोगों की बुनियादी जरूरतों में मकान का एक ऐसा सपना है, जो बैंक के भरोसे ही संजोया जा सकता है। जैसे-तैसे एक मकान के सपने को मूर्त रूप देने के लिए मैंने बैंक की शरण ली थी, लेकिन अब जब देखो तब बैंक ब्याज की दरें बढ़ाता जा रहा है। मेरे लिए अब किश्त भरना और भी दुरूह होता जा रहा है। क्या एसबीआई हम लोगों की बातों पर कभी गौर करेगा?
– संजीत अग्रवाल, वसई

लोन चुकाने में गुजर जाएगी उम्र
अब तो लोन लेना भी मुश्किल हो गया है क्योंकि जो लिया गया लोन है उसी को चुका पाने में ये उम्र गुजर जाएगी। जब उम्र गुजर जाएगी न बचेगी जान तो क्या रहेगा जहान। वैसे नाम तो है स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, लेकिन लगता नहीं कि आम भारतीयों के लिए इस बैंक में कोई जगह बची हुई है।
– अजय सिंह, नालासोपारा

 कैसे भरूंगा लोन
३० लाख रुपए पर मैं जितनी ईएमआई चुका रहा था, अब एसबीआई की नई पॉलिसी से उसमें लगभग आठ-नौ सौ रुपयों का इजाफा हो जाएगा। इसके चलते मुझे साल भर में ४५ हजार रुपए ज्यादा चुकाने पड़ेंगे। अब बताइए जब मेरी तनख्वाह उतनी ही है, महंगाई बढ़ती जा रही है। ऐसे हालात में दो जून की रोटी के लिए पीठ और पेट का रिश्ता और नजदीक होता जा रहा है, मैं कहां से ४५ हजार रुपए भर पाऊंगा।
– अजीत सिंह, कांदिवली

 धिक्कार है…
जिस देश का शासक पूंजीपतियों का शुभचिंतक हो, उसके इशारे पर नाचनेवाले बैंक से और क्या आशा की जा सकती है। लाखों-करोड़ों रुपए पूंजीपतियों के चरणों में रखनेवाला बैंक लोन पास करने के लिए दुनियाभर की इनक्वायरी करता है, वह बिना किसी जांच-परख के सीधे-सीधे इन पूंजीपतियों पर करोड़ों लुटा देता है। बैंक अपने साधारण एकाउंट में भी ग्राहक से अपने खाते में मिनिमम बैलेंस रखने को कहता है, एटीएम से लेन-देन पर भी टैक्स लगा देता है, ऐसे बैंक पर धिक्कार है।
– रमेश परमार, भांडुप

अगले सप्ताह का सवाल?
महाराष्ट्र सरकार महिला सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। बदलापुर कांड के मामले में पुलिस ने अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। हाई कोर्ट ने भी कहा है कि जब स्कूल ही सुरक्षित नहीं है तो शिक्षा व अन्य सभी चीजों के बारे में बात करने का क्या मतलब? इस पर आपका क्या कहना है?
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