मुख्यपृष्ठग्लैमर‘हमारा रिश्ता बहुत गहरा था!’-बाबिल खान

‘हमारा रिश्ता बहुत गहरा था!’-बाबिल खान

अपने स्व. पिता इरफान खान और मां सुतापा सिकदर के नक्शे-कदम पर चलते हुए अभिनय की दुनिया में प्रवेश करनेवाले बाबिल खान ने बहुत ही कम समय में इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई है। ‘कला’ और ‘रेलवेमैन’ जैसी फिल्मों में नजर आए बाबिल जल्द ही ‘जी-५’ के थ्रिलर ‘लॉगआउट’ में नजर आएंगे। पेश है, बाबिल खान से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

फिल्म ‘लॉगआउट’ के बारे में कुछ बताएंगे?
फिल्म ‘लॉगआउट’ साइबर क्राइम पर आधारित है। आज से १५ वर्ष पहले तक शायद ही किसी ने साइबर क्राइम का नाम सुना होगा, लेकिन टेक्नोलॉजी के जमाने में आज साइबर क्राइम बढ़ चुका है और आज यह समस्या विकराल रूप ले चुकी है।

इस फिल्म को करने की क्या वजह रही?
निर्देशक अमित गोलानी ने मुझे मिलने के लिए बुलाया। मैंने उनसे कहा कि स्क्रिप्ट पसंद आने पर मैं इस फिल्म में जरूर काम करना चाहूंगा। मैंने गौर किया कि ‘लॉगआउट’ की कहानी बहुत ज्यादा रिलेवेंट है। आज नई जनरेशन इंटरनेट की आदी हो चुकी है, यह कहना गलत न होगा। जब हम मोबाइल के नशे में जरूरत से ज्यादा बह जाते हैं तो उसके दुष्परिणामों का भी सामना करना पड़ेगा, जिसे हर आम और खास दर्शक तक पहुंचाना जरूरी है।

अपने किरदार के बारे में कुछ बताएंगे?
मेरे किरदार का नाम है प्रत्युष दत्ता, जो सोशल मीडिया का स्टार यानी इन्फ्लुएंसर है। पेशा होने के कारण दिन-रात सोशल मीडिया से जुड़े प्रत्युष की व्यक्तिगत जिंदगी वैâसे प्रभावित होती है और वैâसे उसे सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना और लॉगआउट न करना भारी पड़ता है, इसे बेहद मनोरंजक तरीके से दर्शाया गया है।

क्या आप मोबाइल एडिक्ट हैं?
मैं मोबाइल एडिक्ट नहीं हूं। हां, टीनेजर वाली उम्र में मैं मोबाइल के लिए जिद कर बैठा क्योंकि उन दिनों ब्लैकबेरी फोन का क्रेज था। मैंने जो फोन मांगा उसे बाबा (इरफान खान) ने नहीं दिलवाया। उन्होंने नोकिया का वो फोन दिलवाया जिसमें प्ले स्टेशन नहीं था। इससे मैं बड़ा मायूस हुआ। पापा और मम्मी को यह पता था कि ब्लैकबेरी फोन देने पर मैं प्ले स्टेशन खेलने का आदि हो जाऊंगा और ऐसा वो नहीं चाहते थे। उन्होंने मेरे लिए जो किया, उससे मैं मोबाइल एडिक्ट होने से बच गया। अगर आज मैं मोबाइल या सोशल मीडिया का एडिक्ट नहीं हूं तो इस बात का श्रेय मेरे पैरेंट्स को जाता है।

पिता इरफान खान से आपकी बॉन्डिंग कैसी थी?
जीवन में इंसान को कैसे होना चाहिए यह सीख मुझे उनसे मिली। बाबा मेरे सबसे करीबी दोस्त थे। ऐसी कोई बात नहीं जो मैंने उनसे छुपाई हो। हमारा रिश्ता बहुत गहरा था। मुझे अपने करियर में आगे क्या करना है, ऐसी कोई राय उन्होंने मुझ पर नहीं थोपी। मैंने जो भी करना चाहा उसे करने की उन्होंने मुझे आजादी दी। मुझे याद है एक मर्तबा हम रेस्टोरेंट में खाना खाने गए और मेरा खाने के टेबल पर डांस करने का मूड बन गया। मैं टेबल पर खड़ा होकर डांस करने लगा। मां ने मुझे ऐसा करने से मना किया लेकिन बाबा ने कहा, ‘अगर टेबल पर डांस करना चाहता है तो उसे करने दो। लोग क्या बोलेंगे इस पर ध्यान मत देना!’ उस घटना की याद आते ही बाबा की बातों को याद कर मेरी आंखें भर आती हैं।

इरफान खान का बेटा होने के कारण क्या आपने भी ऑडिशन दिया है?
फिल्म इंडस्ट्री में मैंने बतौर कैमरा असिस्टेंड मैंने काम शुरू किया। बाबा की फिल्म ‘करीब करीब सिंगल’ के दौरान मैं कैमरा असिस्टेंट था। मुझे मेरी डेब्यू फिल्म ‘कला’ ऑडिशन में सिलेक्ट होने के बाद ही मिली, जो बाबा के इंतकाल के बाद रिलीज हुई। खैर, अब दौर बदल चुका है। अब यह फर्क नहीं पड़ता कि आप किसके बेटे हैं। अब सिर्फ परफॉर्मेंस से बात बनती है।

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