मुख्यपृष्ठखबरेंआउट ऑफ पवेलियन : बैकहम की काली टाई पार्टी

आउट ऑफ पवेलियन : बैकहम की काली टाई पार्टी

अमिताभ श्रीवास्तव

कल एक ब्लैक टाई पार्टी में पूर्व फुटबॉल स्टार डेविड बैकहम ने अगले महीने आनेवाले उनके ५०वें जन्मदिन की शुरुआत की। यह बैकहम का एक-दूसरे से प्यार करने का एक तरीका है। पत्नी विक्टोरिया से तो वे बेइंतहा मोहब्बत करते हैं साथ ही अपने बच्चों और दोस्तों से भी खूब प्यार है। यही वजह है कि उनकी काली टाई पार्टी में पत्नी विक्टोरिया (५०) के अलावा बेटी हार्पर (१३), बेटे रोमियो (२२) और क्रूज (२०), रोमियो की प्रेमिका किम (२३) और क्रूज की प्रेमिका जैकी (२९) ने मिलकर सिप्रियानी रेस्तरां में अपने आगंतुक दोस्तों के साथ पार्टी एन्जॉय की। सभी ने एक जैसी ड्रेस व काली टाई पहन रखी थी। इस ब्लैक टाई पार्टी में फुटबॉल के दिग्गज लियोनेल मेस्सी और विक्टोरिया की स्पाइस गर्ल दोस्त मेल बी भी शामिल हुर्इं, पर इस पार्टी में उनका बड़ा बेटा दिखाई नहीं दिया तो पैंâस कई तरह की बातें भी करते नजर आए। पत्नी विक्टोरिया ने इंस्टा पर लिखा, डेविड के लिए कई जश्नों में से पहला जश्न, दोस्तों और परिवार के साथ शुरू करने का तरीका। बेक्स अपने जीवन में महिलाओं को ‘हैप्पी मदर्स डे’ की शुभकामनाएं देनेवाले प्रसिद्ध लोगों में से एक हैं। वहीं डेविड बैकहम ने अपनी पत्नी विक्टोरिया की एक अनदेखी तस्वीर साझा करते हुए लिखा, ‘मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मेरे आसपास बहुत सारी अद्भुत महिलाएं हैं, जो सबसे अद्भुत मां हैं। यह पार्टी उनके जन्मदिन के उत्सव की शुरुआत थी। अगले महीने वो एक बड़ी पार्टी का आयोजन करनेवाले हैं, जिसमें राजनेताओं के अलावा कई फिल्मी अभिनेता व देश-विदेश के खिलाड़ी हिस्सा लेनेवाले हैं।
क्यों बंद हुआ घोड़ा बाजार?
लगभग १७० सालों की वह परंपरा थी, जो आज तक निर्बाध रूप से चली आ रही थी, मगर इस वर्ष टूट गई। टूट ही नहीं गई, बल्कि खत्म हो गई। अब शायद ही कभी इसकी शुरुआत हो पाएगी। जी हां, देश का सबसे बड़ा घोड़ा बाजार बन गया था वो जो हर वर्ष ऊधम सिंह नगर के काशीपुर में लगता था। इसे चैती मेले की एक परंपरा कहा जाता था, जिसका नाम था ‘नखासा बाजार।’ यह बाजार नवरात्रि में लगता था। इस बार जमीन नहीं मिलने के कारण इसे रद्द कर दिया गया है। दुर्लभ घोड़ों की नस्लों का यह एक अद्भुत बाजार था। कहते हैं एक समय था जब यहां पूरे भारत से व्यापारी आते थे। और तो और सुल्ताना डाकू और फूलन देवी जैसे डाकू भी घोड़े खरीदने के लिए भीड़ में भेष बदलकर आते थे। करीब दो एकड़ जमीन पर इसे लगाया जाता था, यह जमीन पांडा परिवार की है और वही अब तक इस मेले की देखरेख करते रहे हैं। मगर हुआ यह कि ये जमीन पांडा परिवार के सदस्यों में बंट गई और जमीन इस बाजार को आयोजित करने के लिए बची नहीं। लिहाजा, लगातार आयोजित होनेवाले १७० वर्षों के इस बाजार का अंत हो गया। बताया जाता है कि इस बाजार की शुरुआत १८५५ में रामपुर (यूपी) के एक बड़े घोड़ा व्यापारी हुसैन बख्श ने की थी। नखासा बाजार कभी अफगानिस्तान, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के व्यापारियों का अड्डा हुआ करता था। मगर अब इसकी स्मृतियां ही रहेंगी।

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