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बेबाक : पहले दिन से डैमेज कंट्रोल शुरू! …चीजों को मनमाफिक चाहते हैं मोदी

अनिल तिवारी
मुंबई

 

केंद्र में नई सरकार का गठन हुए डेढ़ महीने से अधिक का समय बीत चुका और सरकार ने अपना बजट भी पेश कर दिया, परंतु सत्ताधारियों में जिस तरह की ऊर्जा नजर आनी चाहिए थी, असल में सरकार बनने के बाद से वैसी ऊर्जा नजर नहीं आई। अल्पमत सरकार होने से ऐसी बॉडी लैंग्वेज स्वाभाविक भी है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके राइड हैंड राजनेता दोनों ही खोए-खोए से और ऊर्जाविहीन दिख रहे हैं। परंतु इसी के साथ २०२९ में फिर पार्टी के सामने ऐसे हालात न बनें, इससे बचने के लिए वे कुछ कदम भी उठा रहे हैं। डैमेज कंट्रोल कर रहे हैं और हर हाल में चीजों को अपने मनमाफिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जिसकी शुरुआत उन्होंने देश के सबसे बड़े सूबे, उत्तर प्रदेश से कर दी है।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का शीत युद्ध जनता के सामने है। मोदी सरकार को लगता है कि योगी प्रशासन की वजह से वह अपने बूते पर संसद में अपेक्षित संख्या बल हासिल करने से चूक गए। लिहाजा, उनका कद कुतरना पड़ेगा, परंतु स्थानीय जनसमर्थन योगी जी के साथ है। लिहाजा, वे चाहकर भी फिलहाल तो कुछ कर नहीं पा रहे, भविष्य में शायद योगी जी की कुर्सी छीन ली जाए। बहरहाल, दूसरी ओर मोदी खेमा अपनी छवि सुधारने व संगठन को धार देने का प्रयास भी कर रहा है। कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के अलावा पार्टी के सांगठनिक ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन कर रहा है। पदाधिकारी बदले जा रहे हैं। संगठन को मजबूत करने अर्थात अपने निष्ठावानों को महत्वपूर्ण पद दिए जा रहे हैं। गठबंधन के साथियों की समीक्षा हो रही है। महाराष्ट्र जैसे प्रदेश में नुकसानदायक राजनैतिक साथियों को किनारे करने के संकेत दिए जा रहे हैं। सदन में संयम बरता जा रहा है। नई सरकार के कार्यकाल में अभी तक किसी सांसद को निलंबित नहीं किया गया है। लोकसभा अध्यक्ष हों या राज्यसभा के सभापति, दोनों ही अपेक्षाकृत संयमित व्यवहार कर रहे हैं। संसद के बाहर संगठन और सरकार लोकलुभावन पैâसलों का मायाजाल बना रहे हैं। २०२९ तक किसी तरह सरकार बनी रहे और उनका जनाधार भी बढ़ता रहे, इसके लिए नीतीश-नायडू के राज्यों को खैरात बांट रहे हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन के प्रभावशाली मुद्दों को चुरा रहे हैं, जिनका कभी खुद ही ‘खैरात’ करार देकर विरोध किया करते थे। पीडीए की सुध ले रहे हैं। ‘लाड़ली बहन’, ‘लाड़ला भाई’ और कास्तकारों को लुभाने के प्रयास कर रहे हैं। रेलवे की भर्तियां निकाल रहे हैं। पिछले एक दशक में ४९ हजार कंपनियां बंद हुर्इं और लाखों रोजगार घटे, यह मान्य कर रहे हैं। महंगाई को काबू करने और रोजगार के अवसर बढ़ाने की कसमें खा रहे हैं। मध्यमवर्गियों को आयकर में राहत देने का भरोसा दिला रहे हैं। जीएसटी जैसे गब्बर सिंह टैक्स की त्रुटियां दूर करने के संकेत दे रहे हैं। अपनी पुरानी योजनाओं को जनहितकारी बताने का प्रयास कर रहे हैं। अग्निवीर और किसान कानूनों के फायदे गिना रहे हैं। संघ को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। कुल मिलाकर, अपना चाल-चलन और चेहरा-मोहरा सुधारने का आभास करा रहे हैं, पर साथ ही वे राहुल गांधी और अखिलेश यादव की छवि बिगाड़ने की मुहिम भी तेज करने में जुटे हैं। केजरीवाल व अन्य विपक्षी नेताओं के पर कुतरने में लगे हैं। अपनी पार्टी के अनुपयोगी नेताओं को किनारे करने की योजना बना रहे हैं। जिसमें एक बड़ा नाम योगी आदित्यनाथ का भी है। मोदी और उनका खेमा, हर हाल में यह सुनिश्चित कर लेना चाहता है कि २०२९ में देश में राजनैतिक माहौल उसके अनुकूल हो और उसे मन मसोस कर फिर से गठबंधन की सरकार न बनानी पड़े। इसी रणनीति के तहत यह सारी तैयारियां की जा रही हैं और २०२४ के नतीजे आने के साथ, पहले दिन से ही इस पर अमल भी किया जा रहा है। मित्रदलों के सदस्यों को लूटने की योजना बनाई जा रही है। साम-दाम-दंड-भेद की नीति का तेजी से अनुसरण किया जा रहा है। बड़ा निशाना बिहार और आंध्र प्रदेश पर ही साधा गया है। बहुत संभव है कि इस वर्ष या आगामी वर्ष एक धमाके के साथ, एक साथ दोनों ही पार्टियों के टूटने की खबर आ जाए या भाजपा आलाकमान को माहौल खुद के अनुकूल लगे तो संसद भंग करके मध्यावधि चुनाव करा दिया जाए। कहने का तात्पर्य है कि देश की राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। बस भाजपा को अपना लाभ नजर आना चाहिए।
परंतु सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि भाजपा लोकसभा के बड़े झटके के बाद भी अब तक नींद से नहीं जागी है। उसे लग रहा है कि जल्द ही हालात फिर से उसके हाथ में होंगे, परंतु ऐसा है नहीं। अब पानी काफी बह चुका है। अब जनता बदलाव के मूड में है। इस चुनाव में भ्रम और दम से स्थितियां उसके हक में बन गर्इं पर अब मायावती जैसी नेत्री ने भी तेवर बदलने शुरू कर दिए हैं। जनता को इंडिया गठबंधन की ताकत पर भरोसा हो गया है। मोदी सरकार के एक दशक के शासनकाल में बदहाल हुई परिस्थिति जनता के समक्ष है और वो उसका मूल्यांकन कर चुकी है। भक्तों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। लिहाजा, २०२९ की जीत का सपना देखने वालों के लिए माहौल वैसा नहीं बनने जा रहा, जैसा कि वे उम्मीद कर रहे हैं। यह सरकार कभी भी, किसी दिन भी गिर सकती है। सिर्फ मौके का इंतजार है।

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