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बेबाक : परिवहन विभाग की नजर में पब्लिक `बकरा’ है!

अनिल तिवारी
मुंबई

पिछले भाग में परिवहन विभाग के ‘गब्बर सिंह’ जुर्माने और उसकी आड़ में चलनेवाली ‘फिरौती’ पर हमने थोड़ी-बहुत चर्चा की थी। चूंकि समस्या बेहद गंभीर है, सो चर्चा भी एक भाग तक समेटी नहीं जा सकती। लिहाजा, आज इस पर और प्रकाश डालते हैं और समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर परिवहन विभाग की प्रताड़ना से आम नागरिक कैसे त्रस्त हो रहा है।

केंद्र की मोदी सरकार और मा. परिवहन मंत्री ने गत १० वर्षों में देश के सड़क यातायात को किस हद तक यूरोपियन स्टैंडर्ड का कर दिया है और उसके लिए आम हिंदुस्थानी को क्या कीमत चुकानी पड़ रही है, यह देश देख ही रहा है। रोज नए-नए टैक्स, जुर्माने और टोल की भारी वसूली; बदले में अपरिपक्व इंजीनियरिंग के नायाब नमूने, बॉटलनेक और गड्ढों का भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं है। सड़कों पर सभी ओर अव्यवस्था है और उपभोक्ताओं के हिस्से आ रही है तो अंधाधुंध वसूली। लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार का एक बहुत बड़ा कारण यह भी रहा, जहां सड़क उपभोक्ताओं में अनुशासन के नाम पर भारी वसूली की कशिश दिखी, पर सरकार के सीने में उसके लिए कोई हमदर्दी नहीं दिखी।
यह सोलह आने सच है कि ट्रैफिक नियमों की ऊल-जूलूल वसूली से आम नागरिक त्रस्त है। सड़कों पर हालात बेकाबू हैं। प्राइवेट टोइंग वैन की अगली सीट पर बैठकर ट्रैफिक कांस्टेबल इत्मीनान से मोबाइल पर मनोरंजन करते दिखते हैं और वैन पर सवार हेल्पर्स सड़क किनारे पार्क वाहनों के बेधड़क फोटो खींचते हैं या उन्हें उठाकर लाद लेते हैं। वाहन चालकों को पेनाल्टी का डर दिखाना, वसूली हुई तो फोटो डिलीट वर्ना अपलोड। यह देश के हर शहर में रोज का, हर सड़क का दृश्य है।
मा. परिवहन मंत्री ने हालात यहां तक पहुंचा दिए हैं कि अब तो पीड़ित के पास रिश्वत ही एकमात्र बच निकलने का मार्ग रह गया है, नहीं दो तो गाड़ी उठाकर ले जाई जाएगी। कहां, कितनी दूर, किस स्थान पर, उसका पता लगाना वाहन मालिक का काम है। पता लग जाए तो फिर सारे दस्तावेज लेकर वहां पहुंचो, अपने वाले कांस्टेबल-अधिकारी को खोजो। वो जगह पर है तब तो ठीक, नहीं है तो इंतजार करो। आ जाए तो उसे मनाओ, मिन्नतें करो, जुर्माना भरो या फिर फिरौती दो। चाहे जो हो, वो करो। पूरा दिन बर्बाद करो, तब जाकर अपने वाहन का कब्जा फिर से प्राप्त करो।
आपकी जानकारी के लिए एक और उदाहरण यहां रख देता हूं। कुछ दिन पहले हमारे एक पाठक का मुझे फोन आया। फोन पर उन्होंने मुझे बताया कि वे मुंबई में रहते हैं, किसी काम से नासिक गए थे। जब लौटे तो कुछ दिन बाद उन्हें नासिक से ओवर स्पीडिंग का एक चालान आ गया। जिसे उस वक्त किसी कारण से वे भर नहीं पाए और जब उन्होंने उसे भरने का प्रयास किया तो भुगतान नहीं हो सका। पूछताछ करने पर पता चला कि उन्हें भुगतान करना है तो सभी कागज-पत्र लेकर नासिक लोकायुक्त कार्यालय आना पड़ेगा। इस बीच चूंकि उनकी गाड़ी बैंक लोन पर है तो बैंक ने चालान पेंडिंग होने के नाते उनसे आरसी बुक जमा करवा ली। अब वे न तो लोकायुक्त कार्यालय जाकर वाहन संबंधित कागजात दिखाने की स्थिति में हैं, न ही बैंक जाकर अपनी आरसी बुक वापस लेने की। ऐसे में अब उनके पास लंबी और थका देनेवाली कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के अलावा कोई चारा नहीं है। उपभोक्ता अदालत का दरवाजा खटखटाने का मार्ग है, पर जब मामला लोकायुक्त के समक्ष पेंडिंग हो तो भला जटिलताओं को सुलझाया कैसे जाए? ऐसे हालात में वो सिर्फ अपनी किस्मत को ही कोस सकते हैं और मन ही मन सवाल कर सकते हैं कि क्या वाकई मुझसे इतना बड़ा गुनाह हो गया कि चाहकर भी उससे मुक्ति नहीं मिल पा रही है। हर गुनाह की एक निर्धारित सजा होती है, तय जुर्माना होता है, वो उसे अदा करने को तैयार हैं पर मा. परिवहन मंत्री जी की व्यवस्था में उसका कोई समाधान ही नहीं है। जुल्म से ज्यादा जलालत है।
मुंबई में एक सी-लिंक है, बांद्रा-वर्ली सी-लिंक। भाजपा सरकार आने के बहुत पहले बनी थी। ५ किमी की इस सी-लिंक पर प्रशासन १०० रुपए का एकतरफा टोल वसूलता है यानी प्रति किमी २० रुपए की दर से। फिर भी रोज इस पर जाम लगता है। समय के साथ इसमें कोई अपग्रेडेशन नहीं किया गया। वर्ली छोर पर उचित और सुगम निकासी की आज तक व्यवस्था नहीं हो पाई। खैर, अभी कोस्टल रोड के निर्माण के बाद आशा जगी है, व्यवस्था होगी, इसी उम्मीद से उपभोक्ता आश्वस्त हैं। पर कई लोग आज भी निराश हैं, जो नेशनल हाई-वे पर सफर कर रहे हैं, मरम्मत के अभाव में बदहाल शहरी सड़कों का इस्तेमाल कर रहे हैं। सड़क यातायात को बाधित करनेवाले, रफ्तार में बाधा डालनेवाले, अड़चने पैदा करनेवाले कारणों के निदान की राह देख रहे हैं। विजिबिलिटी बाधित करनेवाले थ्री व्हिलर, पैसेंजर वाहनों और गुड्स कैरियर्स का पर्याय चाहते हैं, जिसके नतीजे में समय और ईंधन की भारी बर्बादी हो रही है, ट्रैफिक जाम और प्रदूषण बढ़ रहा है, क्रूड आयात बढ़ रहा है, उनके हिस्से केवल जुर्माना आ रहा है या परिवहन मंत्री के कोरे ‘थापे’ आ रहे हैं। वे खुद को इंफ्रा जीनियस साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। जनता को बड़े-बड़े सपने दिखाते रहते हैं, ‘आज ये आएगा, कल ये होगा।’ आपकी इथनॉल क्रांति कहां है? फ्लैक्स इंजिन का क्या हाल है? ईवी का दायरा क्यों नहीं बढ़ रहा? हाइड्रोजन का सपना तो छोड़ ही दें, जैविक र्इंधन का आयात तक कम नहीं हो सका है। उस पर हमारे परिवहन मंत्री को लगता है किसी को कोई छूट या सब्सिडी देने की जरूरत नहीं है, केवल जरूरत है तो वसूली बढ़ाने की। चाहे सड़कों में कितने ही गड्ढे क्यों न हो, एक्सप्रेस-वे, हाई-वे बनने से पहले धंसने लगे, टूटने लगे, उस ओर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं है। वाहन चालकों की किसी मजबूरी को समझने की जरूरत नहीं है। सड़कों पर पार्किंग की कमी, टोइंग जुर्माने का आतंक, ट्रैफिक पुलिस की रिकवरी। हर ओर वसूली और केवल ‘गब्बर’ वसूली, यही उनका सपना है। कहीं सुविधा का कोई नाम नहीं है। जगह-जगह बेवजह के चेकपोस्ट, बैरिकेट। कोई जांच करनेवाला नहीं, कोई चेकिंग नहीं। स्टाफ कुर्सियां डालकर मोबाइल में घुसा बैठा है, पब्लिक परेशान है। कारण, बेवजह बैरिकेटिंग। जनता केवल जाम और बैरिकेटिंग के आतंक से घिरी है। २१वीं सदी में, जहां जांच और सुरक्षा के तमाम पर्याय हैं, हम आज भी १९वीं सदी के उपायों पर काम चला रहे हैं। शहरों में जगह-जगह बेवजह ट्रैफिक जाम कर रहे हैं। ऐसे में मुद्दा है कि क्या इसमें सुधार के लिए मा. मंत्री जी ने कभी संबंधित राज्य सरकारों के गृह विभाग से चर्चा की है। खुद देश का सड़क इंफ्रा इस आधार पर विकसित किया है? उन्होंने क्या किया है, क्या नहीं, यह तो आनेवाली पीढ़ियां तय करेंगी, परंतु उन्होंने जनता को स्केप गोट (बलि का बकरा) तो बना ही दिया है। यह तो इसी पीढ़ी ने महसूस कर लिया। विभाग को लूट के असीमित हथियार दे दिए हैं। नहीं दिए हों तो बताएं? अब ५००-५,००० से कम में सौदा सैटल नहीं होता। क्या आपने परिवहन विभाग का भ्रष्टाचार खत्म कर दिया? तमाम हवाई दावे किए, ‘ये होगा, वो होगा, २ वर्षों में ऐसा होगा, ५ वर्षों में यूरोप बन जाएगा, क्या हुआ? ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री में ग्रोथ भी आपकी नीतियों से नहीं, बल्कि आम हिंदुस्थानी के सहयोग से हुई है। उसी आम हिंदुस्थानी से, जिसे लूटने का एक भी मौका आप और आपकी सरकार ने छोड़ा नहीं है। देश में करीब ५० हजार करोड़ की टोल वसूली होती है। कुछ ही दिनों में वसूली का यह आंकड़ा १ लाख करोड़ तक पहुंच जाएगा, पर उसकी पर्याप्त ऑडिटिंग नहीं होती। आज के दौर में वसूली का बमुश्किल एक दशांश भी खजाने में नहीं आ पा रहा है। इस्टेब्लिशमेंट एक्सपेंस के नाम पर बड़ा झोल हो रहा है। अब भी अधिकांश वसूली नकद में ही होती है। आपने तो टोल को जानलेवा वायरस बना दिया है। राष्ट्रीय आपदा बना दिया है। टोल वसूली में पारदर्शिता खत्म हो गई है। पब्लिक डोमेन में कोई सटीक जानकारी नहीं है। आप जनता से टैक्स और टोल की दोहरी वसूली कर सकते हो तो क्या वह अपनी यात्रा सहूलियत की अकेली आस भी नहीं रखे।
टोल मुक्ति अच्छी बात है, जनता को इससे मुक्ति मिलनी ही चाहिए। यह उसका अधिकार है, पर जब आप मंच से सीना तानकर बोलते हो, ‘अब फोकट सुविधा किसी को नहीं मिलेगी, तब रेवड़ी के लिए दी गई टोल माफी पर आपकी चुप्पी क्यों नहीं टूटती? यह सवाल भी उठता है कि जब जनता टोलमुक्ति की मांग करती है तो आप आंखें दिखाते हो, पर जब चुनाव जीतने के लिए टोलमुक्ति होती है तो आप चुप्पी साध जाते हो। ये डबल स्टैंडर्ड आइडियोलॉजी जनता को मंजूर नहीं। आपके दस वर्षों के दावों पर कुछ सवाल तो होंगे ही। जनता भी पूछेगी और हम तो पूछते ही रहेंगे।

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