अनिल तिवारी
आज एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करनी है पर उससे पहले एक हकीकत भी जान लेना आवश्यक है। मरीन लाइन्स इलाके में मेरा डॉक्टर से एपॉइंटमेंट था। करीब १२ बजे हम निकले और जब हमारी कार ताड़देव के एक सिग्नल को पार कर रही थी, तभी किसी ट्रैफिक कांस्टेबल ने सीटी बजाकर कार रोकने का इशारा किया। ड्राइवर ने कार किनारे भी कर ली। हालांकि, उससे पहले ही कांस्टेबल कार का फोटो खींचकर सड़क के उस पार जा चुका था। न उसने हमें उस ओर बुलाया, न ही वो खुद इस ओर आया। चूंकि हमारे वहां खड़े होने से अन्य वाहनों को अड़चन हो सकती थी, लिहाजा हम थोड़े से इंतजार के बाद चल पड़े।
यह वाकया ७ जून, २०२४ का है। मैंने ड्राइवर से पूछा कि हुआ क्या था, तुमने सिग्नल जंप किया? उसने पूरे विश्वास के साथ भरोसा दिलाया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। खैर, बात आई-गई हो गई। इस घटना के ठीक ३०वें दिन मेरे मोबाइल पर सीधे लोकायुक्त की ओर से एक एसएमएस आया, जिसमें उस घटना के लिए आश्चर्यजनक ढंग से रु १,५०० जुर्माने की जानकारी थी। उसमें चौंकानेवाली बात यह कि जुर्माना अवैध पार्किंग का लगा था। मान भी लें कि यदि सिग्नल जंप हुआ ही था तो जुर्माना भी उसी का होना चाहिए था। जब वेबसाइट पर चेक किया तो जो धुंधला सा फोटो सबूत के तौर पर वहां अपलोड था, उसमें भी हमारी कार सड़क पर ही दौड़ती दिख रही थी। स्वाभाविक है कि फोटो भी अवैध पार्किंग की होनी चाहिए थी? फिर वो दौड़ती कार का कैसे था? जुर्माने की यह घपलेबाजी मेरे लिए केवल चिंतन का विषय ही नहींr, बल्कि ये माननीय सड़क परिवहन मंत्री जी की ‘विजनरी वसूली’ का जीता-जागता सबूत भी थी। जिससे आज देश के लाखों निरपराध रोज प्रभावित हो रहे हैं, लूटे जा रहे हैं और उनकी उचित सुनवाई तक नहीं है।
उत्तर प्रदेश के जिला एटा में एक गरीब ऑटोचालक को ५ वर्ष में ६५ चालान किए गए, गरीब की सदमे से मौत हो गई। ऐसा ही मामला मुंबई के एक टैक्सी चालक के साथ घटा। मुजफ्फर नगर में भी चालान के सदमे में एक मिनी ट्रक चालक की मौत हो गई। ठीक वही घटना गाजियाबाद में भी हुई। जबलपुर में पुलिस चालान पर अड़ी रही और ऑटो में बैठे बीमार पैसेंजर की हार्ट अटैक से मौत हो गई। नोएडा में हजारों के चालान की धमकी से एक इंजीनियर की भी हार्ट अटैक से मौत हो गई। ऐसे भारी-भरकम चालान से लोगों ने कहीं खुद का, तो कहीं गुस्से में अपने ही वाहन का नुकसान कर डाला। बमुश्किल रु १०-१५ हजार के दोपहिया पर रु २०-३० हजार के चालान हैं। दस्तावेज नहीं तो १० हजार का चालान। दिल्ली में एक ट्रक चालक को २ लाख से अधिक का, राजस्थान में १.४१ लाख का, हरियाणा में १.१६ लाख का, दिल्ली के एक दोपहिया चालक को २३ हजार का चालान, रोज ही ऐसे सैकड़ों मामले होते हैं। साफ दिखता है कि लूट पर कोई नियंत्रण नहीं है। भ्रष्टाचार चरम पर है और मंत्री महोदय हैं कि लापरवाह बयान देते रहते हैं। हमेशा लेक्चर पिलाते हैं। उनकी नजर में ‘चोर’ हमेशा उपभोक्ता ही होते हैं। कहते हैं, ‘कितना भी जुर्माना बढ़ाओ, लोग नियमों को गंभीरता से नहीं लेते, यह समस्या है’ तो फिर क्या यह समस्या नहीं कि आप उपभोक्ताओं के अधिकारों को गंभीरता से नहीं लेते? न ही उन समस्याओं का रिव्यू करते हैं। करते हो तो आंकड़े सार्वजनिक करो। आप तो आंकड़ों के वीर हैं। आपसे जनता का भी सीधा सवाल है कि आपने आपकी यातायात संबंधी प्रतिबद्धताओं पर कितनी गंभीरता से काम किया? वाकई इस पर कभी चिंतन किया? क्या सच में देश का सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर फुल प्रूफ है? टूटे-फूटे नेटवर्क पर लोग नियम तोड़ने को मजबूर क्यों हैं? क्यों नियमों की सख्ती से वे उकता गए हैं? क्यों उनका मानसिक तनाव बढ़ रहा है? क्यों? क्योंकि पिछले एक दशक में आपकी सरकार और आपके कमरतोड़ जुर्माने ने उनकी सड़क यात्रा को नरक बना दिया है। अब वे बेखौफ हैं। वे जानते हैं कि आपने उन्हें देश की नजरों में पहले ही अपराधी बना दिया है। मुजरिम की तरह रोज कटघरे में खड़ा होने को मजबूर कर दिया है। मजबूर कर दिया है आपके जबरदस्ती के अत्याचार के लिए वह काम-धंधा, रोजी-रोटी छोड़कर न्याय की अंतहीन लड़ाई लड़े या सिर झुकाकर उसे स्वीकार कर ले। रु १०००-१५०० के अवैध जुर्माने को गलत साबित करने के लिए कौन गरीब-मध्यमवर्गीय १०००-१५०० घंटे खर्च करेगा? आप जानते हो वो ऐसा नहीं करेगा। इसलिए आपके लिए यह आसान है कि आप रोज उसकी अवैध वसूली करवाओ, उसे शर्मिंदा करवाओ, उसके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार करवाओ और अपने तुगलकी फरमानों से उसे त्रस्त करो।
पहले ट्रैफिक विभाग के हाथ रु १०-२० रिश्वत लेने का पर्याय था, आपने उन्हें रु ५००-१००० की वसूली का अस्त्र दे दिया है। गलती है तो जुर्माना लगना ही चाहिए, यह आपका अधिकार भी है पर तब बात उपभोक्ताओं के अधिकारों की भी होनी चाहिए। आप अमेरिका-यूरोप जैसा जुर्माना चाहते हो तो वहां जैसी सुविधाएं भी दो। यहां तो रोज सड़कों पर वाहन बंद पड़ने से घंटों जाम लगता है। कोई टोइंग वैन तक नहीं आती। आपके जुर्माना वीर कर्मचारी तो दूर-दूर तक नहीं फटकते। क्या आपने उपभोक्ताओं के ऐसे किसी अधिकार, किसी समस्या पर कभी बात की है? क्या सारे अधिकार जुर्माना वसूलने तक ही सीमित हैं? उपभोक्ताओं का कोई अधिकार नहीं? क्या अच्छी सड़क, गड्ढा मुक्त रास्ते, बेहतर रोड इंफ्रास्ट्रक्चर, सिग्नल फ्री जर्नी, बोटल नेक मुक्त सफर और रोड साइड एमेनिटीज उनका अधिकार नहीं है? क्या वन टाइम एडवांस रोड टैक्स और रोज-रोज के टोल भरनेवाले इसके हकदार नहीं हैं? आपने कभी इसका रिव्यू किया है? अपनी कमियों को जानने का प्रयास किया है? सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार, उनकी दुर्दशा पर चिंता व्यक्त की है, उनसे संबंधित आंकड़ों का सरेमंच वाह-वाही के लिए पाठ किया है? आपकी जुबान से ‘मुंगेरी विकास’ के आंकड़े झर-झर फूटते हैं, तब उसी श्रीमुख से रोज लुटनेवाले उपभोक्ताओं का दर्द क्यों नहीं व्यक्त होता? आपकी जानकारी के लिए मुंबई के ही एकाध उदाहरण सामने रख देता हूं।
पश्चिम एक्सप्रेस हाइवे पर आकुर्ली, जोगेश्वरी इत्यादि ठिकानों पर ५० से १०० मीटर चौड़े सबवे अपग्रेडेशन में आपकी सरकार को ३-३, ४-४ वर्षों का समय लग गया, तब भी काम पूरा नहीं हुआ। जब विरोध हद से ज्यादा हो गया तो आनन-फानन में अधूरे काम के साथ ही कुछ हिस्से खोल दिए गए हैं, बाकी अधूरे ही पड़े हैं। आज आधी मुंबई इन्हीं कारणों से लकवाग्रस्त है। रोज ५-५, १०-१० किमी का लंबा जाम लग रहा है। समय, र्इंधन, पर्यावरण की बेवजह हानि हो रही है। परंतु आपने ह्यूमन आवर बर्बादी का आंकड़ा वैâलकुलेट नहीं किया। पता नहीं किया कि इस नाकारापन से पर्यावरण में कितने कार्बन का उत्सर्जन हो रहा है? कितना र्इंधन व्यर्थ जल रहा है? लोगों पर शारीरिक व मानसिक दुष्पपरिणाम किस हद तक हावी हो रहा है? इस स्थिति से उपभोक्ताओं में कितना तनाव पैदा हो रहा है? आपने कभी इस पर अध्ययन किया? चुप्पी तोड़ी? कभी जानने की कोशिश की कि टोलनाकों पर डेढ़-दो किमी की लंबी-लंबी कतारें क्यों लगती हैं? फास्टैग वाले नियम के बाद भी हालात में सुधार क्यों नहीं आया? क्यों वहां १०० मीटर ट्रैफिक होने पर टोल से छूट नहीं मिलती? ब्लैक लिस्टेड और फास्टैग रहित वाहनों से डबल शुल्क क्यों नहीं वसूला जाता? क्यों हर लाइन में कैश वसूली पर लंबा समय बर्बाद होता है? फास्टैग वाहनों का सुगम यातायात क्यों सुनिश्चित नहीं होता? आपने कभी इसे जानने का प्रयास किया होता तो टोल नाकों के हालातों में कुछ तो सुधार देखने को मिलता। केवल कोरे आंकड़ों से विकास नहीं होता। आज भी बिना रिश्वत परिवहन विभाग में कोई काम नहीं होता। लाइसेंस नहीं बनता। धू-धू धुंआ उगलनेवाले ट्रक-डंपर हफ्ता देकर बे-रोकटोक पर्यावरण पर कालिख पोतते रहते हैं, पर सीएनजी कार की पीयूसी तारीख एक दिन चूक जाने पर जबरन जुर्माना वसूल लिया जाता है। क्या सुधरा है? यह तो गनीमत है कि आपका विभाग ईवी से पीयूसी का जुर्माना नहीं वसूल रहा। आप यूं ही लूट की छूट देते रहे तो वो दिन भी दूर नहीं होगा, जब कार वालों से भी हेलमेट का जुर्माना वसूला जाएगा।
कुछ दिनों पहले दिल्ली के गाजीपुर इलाके में सड़क किनारे एक झोपड़ी में भ्रष्टाचार का काला खेल सीसीटीवी फुटेज से उजागर हुआ था। जहां साफ नजर आ रहा था कि बिना किसी वैध कारण के चालकों से वसूली करके उन्हें आपस में बांटा जा रहा है। हर महीने ऐसे तमाम मामले सामने आते हैं। क्योंकि आपके नियमों ने ट्रैफिक पुलिस को रिकवरी एजेंट बना दिया है। जो खुलेआम ‘झोल’ करते देखे जाते हैं। उनका उद्देश्य यातायात की सुगमता सुनिश्चित करना नहीं, बल्कि मोबाइल से अवैध फोटो खींच-खींचकर जनता को लूटना भर है। अब उद्देश्य सड़क यातायात की अड़चनें कम करना नहीं, बल्कि त्रस्त जनता का शोषण करना है। किसी से अनजाने में कोई नियम टूटे तो झट उस पर अधिकतम जुर्माना लगाकर उसका दोहन करना ही आपके मंत्रालय का मूलमंत्र बनकर रह गया है। किसी को इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी है तो अपना सुख-चैन, रोजी-रोटी और परिवार की जरूरतों को त्यागकर कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटे। आप जानते हैं कि वो ऐसा नहीं करेगा, इसी का आप लाभ उठाते हैं। फिर क्यों जनता आपको बातों का वीर न माने? लोगों के मन में आपकी ऐसी ही प्रतिमा बन रही है। उनका भ्रम टूट गया है। वे अब आपको केवल ‘टोलकरी’ मानते हैं। आपके दावों को अब वे गंभीरता से नहीं लेते, न ही आपको ही गंभीरता से लेते हैं। ऐसा वे क्यों नहीं करते इस पर चर्चा आगामी अंक में जरूर करेंगे।