सामना संवाददाता / सोनभद्र
कोरोना काल में सैकड़ों मरीजों को नई जिंदगी देने वाले ऑक्सीजन प्लांट देख-रेख के अभाव में दम तोड़ने लगे हैं। योगीराज में सोनभद्र जिले के अस्पतालों में लगे ज्यादातर प्लांट बंद पड़े हैं। कहीं चोर तार व उपकरण निकाल ले गए तो कहीं अन्य तकनीकी दिक्कतों से प्लांट नहीं चल पा रहा।
पाइपलाइन की बजाय मरीजों को सिलिंडर से ऑक्सीजन उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे मरीजों को देरी का खामियाजा उठाना पड़ रहा है तो डॉक्टर-कर्मचारी भी दिक्कत महसूस कर रहे हैं। तीन साल पहले कोरोना की दूसरी लहर में लोगों की सांसों पर संकट आया तो अचानक से ऑक्सीजन की मांग बढ़ गई थी। समय से ऑक्सीजन उपलब्ध न होने से कइयों की जान चली गई। इस महामारी से निपटने के लिए सरकार ने अस्पतालों में लाखों रुपए खर्च कर ऑक्सीजन प्लांट लगवाए। जिला अस्पताल परिसर में ही अलग-अलग क्षमता के चार प्लांट लगे हैं। एल-२ अस्पताल के पास एक मिनट में १,५०० लीटर और पांच सौ लीटर ऑक्सीजन देने वाले दो प्लांट लगे हैं। दो अन्य प्लांट जिला अस्पताल के मुख्य भवन के पास हैं। इनकी क्षमता भी १,५०० लीटर और ४५ लीटर प्रति मिनट है।
वर्तमान में कोई भी प्लांट चालू हालत में नहीं है। जिला अस्पताल में लगे १,५०० लीटर क्षमता वाला प्लांट करीब ढाई माह से खराब है। इसके कुछ उपकरण चोर निकालकर ले गए हैं। एल-२ अस्पताल के पास लगे प्लांटों का हाल भी ऐसा ही है।
सुरक्षा व्यवस्था के अभाव में अराजक तत्वों के निशाने पर आया यह प्लांट बंद है। ऐसे में अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को सिलिंडर से ऑक्सीजन मुहैया कराया जा रहा है। विशेष स्थिति में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की मदद भी लेनी पड़ती है। अलग-अलग बेड तक ऑक्सीजन सिलिंडर पहुंचाने में दिक्कत आ रही है। कभी कर्मचारी नहीं मिलते तो कभी दूर के कमरों से ऑक्सीजन सिलिंडर लाने में वक्त लगता है। इससे उपचार प्रभावित हो रहा है।
इमरजेंसी में ढूंढ़ना पड़ता है सिलिंडर
जिला अस्पताल में रोजाना ८०० से अधिक मरीज आते हैं। इनमें से १०-१२ मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इमरजेंसी में एक साथ कई मरीजों के आने पर दिक्कत हो जाती है। बेड पर ऑक्सीजन न होने से सिलिंडर ढूंढना पड़ता है। कई बार वार्ड में कर्मचारी न होने पर मरीजों के तीमारदार ही दूर से सिलिंडर खींचकर बेड तक लाते हैं। ऑक्सीजन प्लांट लगने के बाद उम्मीद थी कि हर बेड पर ऑक्सीजन होने से उपचार में सहूलियत मिलेगी, मगर जिम्मेदारों की अनदेखी भारी पड़ रही है।