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`डंकी रूट’ का दर्द : हमारे सामने एक नेपाली को गोली मार दी…

एम एम एस

सिर्फ हिंदुस्थान ही नहीं, बल्कि कई देशों से लोग अमेरिकी बनने का सपना लिए अमेरिका अवैध तरीके से पहुंचते हैं और वह तरीका कहलाता है ‘डंकी रूट’। ‘डंकी रूट’ का मतलब होता है, एक लंबा और बेहद मुश्किल सफर। डंकी रूट से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने में कई बार महीनों लग जाते हैं।
‘हमारे दिन की शुरुआत ऐसे ही होती थी… भद्दी-भद्दी गालियों से। वे लोग स्पेनिश में बात करते हैं… वे लोग आपको टॉर्चर करते हैं… पैसों की मांग करते हैं… न नूकर करने पर यदि उनका मूड खराब रहा तो गोली तक मार देते हैं… कौन पूछनेवाला है? किसकी हिम्मत है उनसे सवाल करने की? आप वैसे भी वहां पर इल्लीगल तरीके से हैं उनके रहमों करम पर…आपकी बॉडी को ठिकाने लगाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है और एक इंसान की मौत से सभी लोग डरे जाते हैं और फटाफट पैसे दे देते हैं… जितने पैसों की वह लोग डिमांड करते हैं … ‘
‘….हमारे सामने एक नेपाली को उन्होंने गोली मार दी …कोई कुछ नहीं बोला, कोई कुछ नहीं कर सका! सबको जैसे काठ मार गया था। सब की जुबान बंद थी। आंखें फटी की फटी रह गई थीं। किसी इंसान को इतने नजदीक से मरते देखना आसान नहीं… लेकिन उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। जैसे इंसानों की जिंदगी की उनके लिए कोई कीमत ही नहीं… बहुत भयानक क्रूर और दरिंदे होते हैं… वे माफिया…,’
अमेरिका से डिपोर्ट किए गए हिंदुस्थानियों में से एक हैं सरदार हरप्रीत सिंह। हरप्रीत सिंह जब मीडिया से बात कर रहे थे तो सुननेवालों के रोंगटे खड़े हो गए थे।
हरप्रीत बताते हैं कि माफिया के चंगुल में फंसना नर्क से कम नहीं है। आपसे पैसों की डिमांड करते हैं। डिमांड पूरी न होने पर आपकी पिटाई करते हैं। टॉर्चर करते हैं। गोली तक मार देते हैं। पैसे मिल जाने पर भी छोटे-छोटे ग्रुप में आगे भेज दिया जाता है। जैसे एक ग्रुप को आगे पनास्को भेज दिया गया। वहां पर अगला ‘मालिक’ एक किस्म से मालिक ही होता है वह आपसे फिर पैसों की डिमांड करता है… जानबूझकर पैसे कमाने के लिए वे छोटे-छोटे ग्रुप में आगे भेजते हैं…
और हर ग्रुप का मालिक आपसे पैसों की डिमांड करता है। मान कर चलिए कि एक आदमी पर त्र्२००० का खर्चा आता हैं और ग्रुप में १,५०० डॉलर का यानी हर आदमी के पीछे उन्हें त्र्५०० बचते हैं। उस त्र्५०० बचाने के लिए वे लोग शैतान बन जाते हैं। हिंदुस्तान से जाते वक्त एजेंट आपसे सारे पैसे ले लेता है लेकिन वह धीरे-धीरे पेमेंट करता है और कभी-कभी आपको धोखा भी दे देता है। अब इन एजेंट की जो चेन होती है, उसमें वे अपना पैसा वसूलते हैं या फिर आपकी मजबूरी का फायदा उठाकर आपसे ज्यादा पैसे वसूले जाते हैं।
हिंदुस्थान में १८ लाख पर बात हुई थी और जब वे माफिया के चंगुल में फंसे तो उन्हें और ३१ लाख रुपए घर से मंगा कर देने पड़े तब जाकर हरप्रीत अमेरिका पहुंचे। उनके पास कनाडा का वीजा था। दिल्ली से वे ५ दिसंबर को निकले। उनकी कनेक्टिंग फ्लाइट थी अबू धाबी से, लेकिन उन्हें चढ़ने नहीं दिया गया वापस भेज दिया गया।
१८ दिसंबर को एक बार फिर उन्हें इजिप्ट भेजा गया वहां से वाया स्पेन उन्हें मॉन्ट्रियल भेजा गया मटेरियल एयरपोर्ट में चार दिन उन्हें रोका गया उसके बाद ग्वेटामाला भेजा गया।
वहां से निकारागुआ वहां से मेक्सिको से हर्मासिलो पनास्को मैक्सिकली बॉर्डर और वहां से अमेरिका। ३१ लाख का खर्चा ५० लाख तक पहुंच गया। दुर्भाग्य से उन्हें तकरीबन २ महीने बाद हिंदुस्थान डिपोर्ट कर दिया गया।
रॉबर्ट की कहानी भी कुछ अलग नहीं है। बकौल रॉबर्ट, ‘हर सीमा पार करने पर एजेंट बदल जाते हैं। एजेंट रास्ते में तभी अच्छा व्यवहार करते थे जब लोग उन्हें पैसे देते थे। कई बार तो एजेंटों को पैसे देने के बाद भी पुलिस प्रवासियों को ले जानेवाली सभी बसों से पैसे ले लेती थी। रॉबर्ट ने बताया, ‘पेरू पहुंचने तक मेरे पास ५५० डॉलर थे। पुलिस ने सब छीन लिया और जब मैंने मना किया तो मुझे पीटा। हमें लगा कि जंगल तक ही सफर मुश्किल होगा, लेकिन उसके बाद भी हमारी परेशानियां खत्म नहीं हो रही थीं।’
उन्होंने कहा कि पुलिस ने अकेले उनकी बस से २,०००-३,००० डॉलर की वसूली की। हांडा ने कहा, ‘उनके पास बंदूकें थीं और अगर कोई पैसा देने से इनकार करता था तो वे उसे बंदूक दिखाकर डराते थे।’ (जारी)

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