-हर साल प्रदूषण से जा रही दो हजार लोगों की जान
धीरेंद्र उपाध्याय
प्रदूषित हवा से फेफड़ों की पुरानी बीमारियां, दिल का दौरा, स्ट्रोक और कैंसर होने की ही आशंका नहीं बनी रहती है, बल्कि इसका सीधा असर डायबिटीज से भी है। देश में निर्धारित किए गए पीएम २.५ के संपर्क में मामूली वृद्धि भी खून में डायबिटीज के स्तर को बढ़ा सकती है। चिकित्सकों के मुताबिक, प्रदूषित हवा से यदि बचके नहीं रहा गया तो इससे डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है। एक सर्वे के मुताबिक, मुंबई में हर साल प्रदूषण की चपेट में आने से करीब दो हजार लोगों की मौत होती है।
शहरों में सबसे बड़ी चुनौती
चेन्नई के मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. वी मोहन ने बताया है कि पीएम २.५ एक एंडोक्राइन डिसरप्टर है, जो इंसुलिन के स्राव को प्रभावित करता है और इंसुलिन प्रतिरोध की ओर भी ले जाता है। हालांकि, गर्मियों के कारण हाल के हफ्तों में हवा की गुणवत्ता ठीक रही है लेकिन वायु प्रदूषण शहरी हिंदुस्थान में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनकर उभर रहा है। अनुमान है कि हर साल मुंबई में वायु प्रदूषण से लगभग २०,००० और दिल्ली में ५०,००० लोग इसके चलते काल के गाल में समा जाते हैं।
इस तरह हुआ है अध्ययन
दिल्ली और चेन्नई में रहनेवाले १२,०६४ वयस्कों पर सात साल तक शोध किया गया। अध्ययन में हवा की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए दो तरीके अपनाए गए, जिसमें एक सैटेलाइट के जरिए, जबकि दूसरा जमीन पर लगे मॉनिटरों से जानकारी मिली थी। साथ ही प्रतिभागियों के ब्लड शुगर लेवल की भी जांच की गई थी। अध्ययन में पाया गया था कि हवा में हर साल औसतन पीएम २.५ की मात्रा में १० ग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि के साथ टाइप २ डायबिटीज का खतरा २२ प्रतिशत बढ़ जाता है। अध्ययन में शामिल चिकित्सकों के मुताबिक, वायु प्रदूषण और डायबिटीज के बीच संबंध पहले से ही पता है। यह अध्ययन देश के दो शहरों के लिए इस बात को फिर से दोहराता है, लेकिन यह पूरे देश पर लागू नहीं हो सकता है।
हिंदुस्थान है मधुमेह की राजधानी
चिकित्सकों का कहना है कि दुनिया में हिंदुस्थान को मधुमेह की राजधानी के रूप में जाना जाता है, लेकिन यहां वायु प्रदूषण रोग के बोझ के रूप में योगदान दे रहा है। मिट्टी प्रदूषण, जानवरों को दी जानेवाली दवाएं, अस्वच्छता जैसे अन्य स्रोत हैं, जो सभी तरह के रोगों को बुलावा देते हैं। मुंबई में सब्जियां खतरनाक तरीके में न केवल उगाई, बल्कि व्यापक रूप में बेची जाती हैं। वरिष्ठ एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. शशांक जोशी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से मौसम के पैटर्न में व्यवधान पैदा होता है, जिसके परिणामस्वरूप बीमारी के पैटर्न में बदलाव होता है। उन्होंने आगे कहा कि वायु, जल और वाहनों से होनेवाला प्रदूषण इसे और भी बदतर बना देता है। डॉ. मोहन ने कहा कि वायु प्रदूषण की रोकथाम करके बीमारियों को कम किया जा सकता है।
…तो नहीं थम पाएगा मौत का खतरा
एक अन्य स्टडी के मुताबिक, वायु प्रदूषण के कारण हवा में पाए जानेवाले टिनी पार्टिकल्स के कारण लोगों की मौत हुई है। इसमें बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जिनकी मौत कुछ लाइफस्टाइल डिजीज जैसे हार्ट से जुड़ी समस्या, स्ट्रोक, फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं के साथ ही कुछ कैंसर के कारण भी हुई है। जानकारों के मुताबिक, अगर वायु प्रदूषण इसी तरह से बना रहा तो इसके चलते भी मौत का खतरा नहीं थम पाएगा।
हर माह ६०-७० हजार लोगों की होती है जांच
डायबिटीज और हाइपरटेंशन के शिकार मरीजों में जागरूकता पैदा कर रहा है। इसके साथ ही मनपा दवाखानों और हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे दवाखाना में हर महीने ६० से ७० हजार लोगों के डायबिटीज और रक्तचाप की जांच की जाती है। इसमें संदिग्धों के साथ ही पुष्टि होने के बाद मरीजों का नियमित इलाज किया जाता है।
डॉ. दक्षा शाह (कार्यकारी स्वास्थ्य अधिकारा) मुंबई मनपा
इन बीमारियों के होने का रहता है खतरा
प्रदूषण से स्किन और दिल से जुड़ी बीमारियों के होने का खतरा रहता है। इसके अलावा डायबिटीज, अल्जाइमर और लगातार सिरदर्द हो सकता है। एक्यूआई बढ़ने का असर रेस्पिरेटरी सिस्टम पर भी पड़ता है। जैसे-जैसे एक्यूआई बढ़ता है छोटे बच्चों के दिमागी विकास पर बुरा असर पड़ता है और उनकी मानसिक शक्ति कम होने लगती है।
डॉ. मधुकर गायकवाड, (प्रोफेसर, जेजे अस्पताल) मुंबई
मानसून ने दी मुंबईकरों को राहत
एक्यूआई खतरे की सीमा के पार करने से शहर में बच्चों से लेकर वरिष्ठ नागरिकों तक सभी को अशुद्ध हवा में सांस लेनी पड़ती है और उनमें श्वसन संबंधी समस्याएं बढ़ाने का काम करता है। ऐसे में लोगों से सावधान रहने और प्रदूषण से खुद को बचाने की जरूरत है।
राकेश, ठाणे