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पंचनामा : महिलाओं को क्या सच में मिला है सम्मान और समान अधिकार? …समाज और सरकार को रवैया बदलने की जरुरत 

महिला हक की बात जानें महिलाओं से

ट्विंकल मिश्रा
आज यानी ८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। बात करेंगे महिलाओं की। महिला दिवस की शुभकामना देने से पहले विचार कीजिए उस घटना पर, जहां एक ब्राजीलियन बाइक राइडर के साथ झारखंड में सात लोगों ने रेप किया। बाइक राइडर महिला अपने पति के साथ विश्व भ्रमण पर निकली थी। वह पाकिस्तान और बांग्लादेश होते हुए हिंदुस्थान में दाखिल हुई थी। लेकिन ‘वसुधैव कुटंबकम’ और ‘नारी को देवी के समान’ मानने वाले इस देश में उसके साथ ऐसा हुआ, जिसकी याद में वह ताउम्र तड़पती रहेगी। हालांकि, इस घटना के सभी आरोपी जेल में हैं लेकिन जो हुआ, वह इस बात का पुख्ता सबूत है कि आज भी हमारे समाज में नारियों की स्थिति क्या है? यह तो हाई प्रोफाइल केस था, जो कि सामने आया, इस तरह के केस देश में कितने होते होंगे जो कभी सामने नहीं आ पाते। क्या सच में विश्व की और हिंदुस्थान की हर महिला को एक समान दर्जा मिल रहा है? इसका जवाब जानने के लिए हमने कुछ महिलाओं से बात की।

गलत काम को न छुपाया जाए 
ऐसा लगता है कि बाहर से ज्यादा महिलाएं घर में ही असुरक्षित हैं। कोई अपना ही कब रक्षक से भक्षक बन जाए पता नहीं चलता। मैं चाहती हूं कि समाज में ऐसी जागरूकता पैâलाई जाए कि देश में रहनेवाला हर एक परिवार अपनी इज्जत की वजह से अपनी बेटी के साथ हुए दुर्व्यवहार और गलत काम को न छुपाए। यह अवेयरनेस देश के हर परिवार में होनी चाहिए कि वह खुलकर अपनी बहु-बेटी के साथ हुए गलत काम को उजागर करे और बिना किसी डर के शिकायत दर्ज करा सके। सरकार को इस मामले में ऐसा नियम बनाना चाहिए ताकि पीड़ित महिला और परिवार का समाज में सम्मान भी बना रहे और दोषी को सजा भी मिल जाए।
–  आशा मोरे, गृहणी, मुंबई

 सेल्फ डिफेंस सिखाना जरूरी
आज भी समाज में रूढ़िवादी सोच रखने वाले लोग बहुत हैं। आज भी कहीं न कहीं औरतों को पुरुषों से कम समझा जाता है। इस सोच को बदलना बहुत जरूरी है। आज भी देश के कई परिवारों को ऐसा लगता है कि शादी हो जाने के बाद महिलाओं को काम करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन महिला का भी काम करना उतना ही जरूरी है जितना एक पुरुष का। रही बात सुरक्षा की तो हर लड़की को सेल्फ डिफेंस सिखाना बहुत जरूरी है ताकि उन्हें किसी की जरूरत न पड़े। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।
– प्रगति शुक्ला, टीचर, मुंबई

बलात्कारियों को हो फांसी 
मेरे हिसाब से जब कोई महिला देर रात तक देश के किसी भी कोने में अकेले चल रही हो तो उसे डर न लगे। हो सकता है यह मुश्किल हो, लेकिन यह जरूरी है। बलात्कारी और गलत काम करनेवालों को इतनी कड़ी सजा होनी चाहिए कि वह गलत काम करने की सोच से भी डरे। महिला सुरक्षा देश के लिए और पूरे विश्व के लिए बहुत बड़ा मुद्दा है। विश्व में कुछ देश ऐसे हैं जहां बलात्कारियों के लिए फांसी का प्रावधान है। ऐसी सजा विश्व के हर देश में होनी चाहिए।
समीना यूसुफ सैयद, पुलिस कांस्टेबल, ठाणे

 समाज को सोच बदलने की जरूरत 
महिलाओं की सुरक्षा के साथ-साथ सम्मान भी एक बड़ा मुद्दा है। चाहे घर में हो या बाहर महिलों को कहीं न कहीं आज भी वह सम्मान नहीं मिल पाता है, जिसकी वह हकदार है। समाज ने एक मानसिकता अपने दिमाग में बना ली है कि महिला कमजोर होती है। इस सोच को बदलने की जरूरत है। एक महिला अगर घर में अपने बच्चे पति और सास-ससुर को संभाल सकती है तो वह बाहर चार और काम भी संभाल सकती है।
 प्रणाली धमिचा, मुंबई 

५०-५० हो योगदान 
आज के समाज में यह चीज बहुत अच्छी है कि हर महिला इंडिपेंडेंट होना चाहती है। अपने पैरों पर खड़ी होकर खुद की जिंदगी संवारना चाहती है। लेकिन जो चीज समाज में बदलनी चाहिए, वो यह कि पुरुष और महिला दोनों ही ५०-५० प्रतिशत योगदान करके घर चलाएं, तो दोनों को मदद मिलेगी। अगर महिला बाहर जाकर काम कर रही है और घर की आर्थिक स्थिति को संभाल रही है तो पुरुष का भी दायित्व है कि वह घर जाकर अखबार, टीवी और चाय न लेकर किचन में अपनी पत्नी अपनी बहन या मां का हाथ बटाएं। यह बहुत जरूरी है कि योगदान ५०-५० प्रतिशत हो। औरत बाहर जाकर काम भी करती है और फिर घर पर आकर भी काम करती है, यह किसी भी प्रकार से सही नहीं है।
– एड. आभा सिंह, मुंबई

रूढ़िवादी सोच से बाहर निकलने की जरूरत 
समाज में महिलाओं की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है। महिला कहीं भी जाए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि वह सुरक्षित हो। समाज में काम करने का अधिकार महिलाओं को उतना ही होना चाहिए जितना पुरुषों को है। आज भी देश में कई जगहों पर लड़कियों को बाहर जाकर काम करना मना है जो कि गलत है। अब जमाना इतना बदल गया है कि महिला वह हर काम कर सकती है जो पुरुष करता है। उन्हें भी समान अधिकार मिलना चाहिए। हिंदुस्थान अभी पूरी तरह रूढ़िवादी सोच से निकला नहीं है, जिसकी सख्त आवश्यकता है।
– डॉ. शरीफा, मुंबई

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