-दवा कंपनियों और अधिकारियों में सांठ-गांठ
धीरेंद्र उपाध्याय
हिंदुस्थान में मिलावटी और नकली दवाइयों का गोरखधंधा बेधड़क रूप से शुरू है। इन दवाइयों का सेवन करके कई मरीजों की हालत तक खराब हो चुकी है। आरोप है कि नकली दवा निर्माता कंपनियों को सरकार और अधिकारियों का सह मिला हुआ है, इसलिए उन पर कठोर कार्रवाई नहीं होती है। कुल मिलाकर सरकार जनता के जीवन से खेल रही है। हालांकि, जनता को भ्रमित करने के लिए दिखावे के तौर पर देश में बने २,७०,४३१ दवाइयों के नमूनों की जांच केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने कराया, जिसमें से आठ हजार से अधिक नमूने नकली और मिलावटी पाए गए।
उल्लेखनीय है कि बाजार में नकली दवाओं का बड़ा धंधा चल रहा है। नकली दवाओं का खतरा एक गंभीर समस्या है जो हमारी सेहत और जीवन के लिए खतरा बन सकती है। ये नकली दवाएं अक्सर सस्ते दामों पर बाजार में उपलब्ध होती हैं और असली दवाओं की तरह दिखने के लिए बनाई जाती हैं। इसे लेकर कई लोगों ने शिकायत की थी कि जेनेरिक दवा दुकानों में बेची जानेवाली दवाएं निम्न गुणवत्ता वाली या बिना परीक्षण वाली थीं। फरवरी में हुए संसद सत्र में यह मुद्दा उठाया गया था। इसके जवाब में स्वास्थ्य मंत्रालय के हवाले से उपरोक्त जानकारी दी गई थी। इसमें बताया गया था कि केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय और केंद्रीय औषधि मानक संगठन ने देश में दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं। इसके तहत नकली और मिलावटी दवाओं के निर्माण पर सख्त दंड का प्रावधान किया गया है। विभिन्न राज्यों ने औषधि व प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत अपराधों के त्वरित निपटान के लिए विशेष अदालतें स्थापित की हैं। पिछले १० वर्षों में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन में स्वीकृत पदों की संख्या में वृद्धि हुई है। साथ ही केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए विवरण में कहा गया है कि विनिर्माण लाइसेंस जारी करने से पहले विनिर्माण प्रतिष्ठान केंद्र सरकार और राज्य सरकार के औषधि निरीक्षकों द्वारा संयुक्त निरीक्षण के अधीन है।
क्यूआर कोड से मिलेगी सही जानकारी
हाल ही में सरकार ने दवाओं के कवर पर क्यूआर कोड लगाने की बात कही है। इसमें क्यूआर कोड को स्वैâन करके कोई भी व्यक्ति यह जानकारी हासिल कर सकता है कि उस दवा में क्या साल्ट मिलाया गया है। इसके अलावा दवा की मैन्युपैâक्चरिंग और एक्सपायरी डेट क्या है, दवा कंपनी और उसे बेचने वाली कंपनी कौन सी है और यह दवा किस शहर से बनकर आपके घर तक पहुंची है, यह सब क्यूआर कोड से पता चल जाएगा। हालांकि, यह नियम अभी केवल चुनिंदा दवाओं पर ही लागू है। इस नियम के आने के बाद अगर दवा में मिली जानकारी क्यूआर कोड से मेल नहीं खाती है तो शिकायत करने का प्लेटफॉर्म भी सरकार उपलब्ध करा रही है। लेकिन तब तक नकली दवा को सिर्फ देखकर पहचान पाना थोड़ा मुश्किल है।
गुणवत्तापूर्ण दवाएं सुनिश्चित करना सरकार का नैतिक दायित्व
भारत को विश्व की फार्मेसी कहा जाता है। उत्पादन के मामले में हमारा दवा उद्योग दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा है। हम विश्व-स्तरीय टीकों का उत्पादन करते हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुकूल हैं। लिहाजा, नकली व कम गुणवत्ता वाली दवाओं से जल्द निपटना अनिवार्य है। इससे पार पाना सरकारों, नीति-निर्माताओं, फार्मा उद्योग व नागरिकों सभी के हित में है। देखा जाए तो मरीजों के लिए गुणवत्तापूर्ण दवाएं सुनिश्चित करना सरकार का नैतिक दायित्व भी है। हमें इस क्षेत्र में पर्याप्त जागरूकता पैदा करनी ही होगी।
नकली दवाओं का हो असली इलाज
शायद ही कोई सप्ताह ऐसा गुजरता हो जब हम हिंदुस्थान में नकली या घटिया दवाओं के बारे में न सुनते हों। मार्च के पहले हफ्ते में तेलंगाना से नकली दवाओं की जब्ती की खबर आई थी। वे सिर्फ नकली दवाएं ही नहीं थीं, बल्कि जिस कंपनी का नाम सामने आया था, वह वास्तव में अस्तित्व में ही नहीं थी। कहने की जरूरत नहीं कि दवा में कोई उपयोगी घटक नहीं था और वे केवल चॉक पाउडर और स्टार्च थे। ऐसे में नकली दवाओं का असली इलाज करने की जरूरत है।
प्रकाश वाणी, पूर्व उपविभागप्रमुख शिवसेना
(उद्धव बालासाहेब ठाकरे) घाटकोपर-पूर्व
मरीज की सेहत से खिलवाड़
नकली दवाओं की बाजार में उपलब्धता के बीच मरीज की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है। मरीज दवा खरीदने पर अधिक पैसा खर्च कर रहा है, जबकि कुछ कंपनियां बिना किसी टेस्टिंग के बाजार में दवाएं बनाकर बेच रही हैं, जिसके बदले मरीज से भारी रकम वसूल रही है। ऐसी स्थिति में मरीज को दोहरा नुकसान हो रहा है। इससे मरीज की सेहत तो ठीक नहीं हो रही है, बल्कि वह मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट की श्रेणी में चला जा रहा है।
डॉ. मधुकर गायकवाड़, प्रोफेसर, जेजे अस्पताल मुंबई
नकली दवाओं से ये होते हैं नुकसान
नकली दवा का मतलब सब स्टैंडर्ड दवाओं से होता है, यानी ऐसी दवाएं जिसमें दवा की मात्रा जरूरत से कम होती है या फिर उसमें जो साल्ट होना चाहिए वह नहीं होता। ऐसी दवाई खाने पर आमतौर पर मरीज को कोई फायदा नहीं होता, लेकिन रेगुलर दवाई खाने की वजह से मरीज को यह गलतफहमी रहती है कि वह जल्दी ठीक हो जाएगा। उन्होंने बताया कि हिंदुस्थान में सबसे ज्यादा खाई जानेवाली दवाएं एसिडिटी, बीपी और शुगर की दवाईयां होती हैं। आमतौर पर नकली दवाओं के बाजार में भी वही दवाई ज्यादा बिकती हैं, जिनकी खपत सबसे ज्यादा होती है।
डॉ. श्रीजित शिंदे, एमडी, सिविल अस्पताल, ठाणे