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पंचनामा : चुनाव से पहले याद आई महिलाओं की सुरक्षा … क्यों जागा रेल प्रशासन देर से?

ट्विंकल मिश्रा

मुंबई लोकल ट्रेन से रोजाना ७५ लाख से ज्यादा यात्री यात्रा करते हैं, जिनमें महिला यात्रियों की संख्या करीब ३० फीसदी है। लोकल ट्रेन में २९ फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, लेकिन क्या इसके बावजूद लोकल ट्रेन में महिलाएं सुरक्षित हैं? यह बड़ा सवाल है। ट्रेन में घटनाएं होती हैं, महिलाएं कभी-कभी ऐसी घटनाओं को उजागर करने में हिचकिचाती हैं, कुछ महिलाओं का मुंबई की लोकल ट्रेन में सुरक्षा पर यह कहना है कि डिब्बों में सीसीटीवी वैâमरे लगे हैं, लेकिन चलते नहीं हैं। ऐसे वैâमरों का क्या फायदा? कुछ महिलाओं का यह भी कहना है कि हमारे साथ घटना घटती है, हम जाकर शिकायत करते हैं लेकिन प्रोसीजर में ज्यादा समय लगने की वजह से हम पीछे हट जाते हैं।
अब आने वाले दिनों में महाराष्ट्र में चुनाव होने की घोषणा होनेवाली है। चुनाव के पहले सत्ता में बैठी घाती सरकार को महिलाओं की सुरक्षा का ख्याल आ गया है। अब वह एक सर्वे कर रहे हैं, जिनमें वह महिलाओं से कुछ सवाल पूछेंगे और यह पता लगाएंगे कि सुरक्षा में और क्या-क्या बदलाव करना चाहिए। महिलाओं से बात करते हुए उन्होंने यह भी पूछा कि यह सर्वे पहले क्यों नहीं कराया गया? चुनाव के नजदीक आते ही सरकार को महिलाओं की सुरक्षा का ख्याल आता है। ऐसे मुद्दे उठाकर सरकार चुनाव जीतने की कोशिश करती है। इस संदर्भ में जीआरपी अधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया कि यह सर्वे १ मार्च से चल रहा है और ३१ मार्च तक जारी रहेगा। अब तक इसमें कुल १७० महिलाओं के जवाब आ चुके हैं।
पूछे जाएंगे ये सवाल
एक गूगल फॉर्म तैयार किया जाएगा, जिस पर महिला यात्रियों से यह सवाल पूछे जाएंगे कि वे यात्रा के लिए कितनी बार लोकल का उपयोग करती हैं? यात्रा का मार्ग क्या है? पास/टिकटधारक, उम्र, यात्रा का कारण, यात्रा का समय, किस समय वे असुरक्षित महसूस करती हैं, रात १० बजे के बाद प्रथम श्रेणी की सुरक्षा वैâसी होती है? प्लेटफॉर्म पर वर्दी में पुलिस होनी चाहिए या नहीं? आपराधिक घटनाओं की ट्रैकिंग। कई यात्री शिकायत करने की हिम्मत नहीं कर पाते, क्योंकि अपराध के बाद पुलिस की प्रतिक्रिया अक्सर सही नहीं होती, इसे सुलझाने के लिए भी कुछ सवाल हैं।

 मैं अपने ऑफिस में सेकेंड शिफ्ट में काम करती हूं। दोपहर को जाती हूं और रात के १०:३० के लगभग ट्रेन पकड़ती हूं। १०:३० के बाद वाली ट्रेन १०:५० या उससे पहले ही बांद्रा पहुंचती है। ११:०० बजने से पहले ही महिला कोच में बांद्रा स्टेशन पर पुरुष यात्री डब्बे में चढ़ जाते हैं, जो कि गलत है। महिला कोच ११:०० बजे के बाद जनरल होता है जबकि ११:०० के पहले वह महिला कोच ही रहता है। महिला कोच में पुरुष को अंधेरी में चढ़ना चाहिए न कि बांद्रा में। मेरा सुझाव है कि रात के ८:०० बजे के बाद ११:०० बजे तक महिला कोच में एक महिला पुलिस की सख्त जरूरत है।
-निशा ठाकुर, मुंबई लोकल यात्री
 महिला कोच में लगे बहुत से कैमरे काम नहीं करते। कई कैमरे ऐसे हैं, जो खराब और बंद पड़े हैं। रेलवे को इस पर ध्यान देना चाहिए। अगर कोई भी दुर्घटना घटती है और उसका प्रूफ चाहिए या किसी को पकड़ने में मदद चाहिए तो ऐसे खराब लगे वैâमरे किस काम के? महिला कोच में ७:०० बजे के बाद कोई पुलिसकर्मी भी नहीं होता। भीड़ से भरे कोच में पुरुष हॉकर चढ़ जाते हैं। इतनी भीड़ में लोगों का झगड़ा भी हो जाता है कोई एक संभालने वाला जरूर होना चाहिए। पुरुष हॉकर को चढ़ने से मना करो तो वे महिलाओं से झगड़ने भी लगते हैं।
– आशा मोरे, यात्री
 हर स्टेशन पर रात के ९:०० बजे के बाद से लेकर सुबह के ७:०० बजे तक एक पुलिसकर्मी जरूर होना चाहिए। पहली बात तो स्टेशन पूरी तरह से खाली होते हैं और मदद के लिए वहां पर कोई नहीं होता। मुंबई की लोकल ट्रेन में रात को आना- जाना मेरा लगा रहता है। कभी-कभी मुझे असहज महसूस होता है। अकेली महिला को देख वहां पर मौजूद पुरुष घूरने लगते हैं। जो बहुत ही खराब लगता है। मदद के लिए कोई नहीं होता उनकी हिम्मत और बढ़ जाती है। अगर वहां पर कोई पुलिसकर्मी मौजूद रहेगा तो ऐसे लोगों के मन में भी डर रहेगा। वे ऐसी हरकतें करने से बचेंगे। सुरक्षा की बात है तो सुरक्षा जितनी कड़ी रहे उतना बेहतर है। – प्रणाली धमीजा, यात्री
 मुंबई की लोकल ट्रेन में ८० में से ३० फीसदी महिलाएं सफर करती हैं। महिलाओं पर भी पूरी तरह से ध्यान देना चाहिए। महिला कोच में २४/७ एक पुलिसकर्मी होना चाहिए। चाहे महिला या पुरुष। भारी भीड़ की वजह से महिलाओं में झड़प होने की संभावना बढ़ जाती है और ऐसा होता भी है, जिससे बचने के लिए पुलिसकर्मी की अत्यंत आवश्यकता है। बात वैâमरे की करें तो आधे से ज्यादा वैâमरे महिला कोच में बंद रहते हैं। जब शिकायत करने जाओ और सीसीटीवी का हवाला दो तो उनका एक ही जवाब होता है कि उस कोच का सीसीटीवी बंद है। जो बेहद ही निराशाजनक है, इस पर ध्यान देना चाहिए। पुलिसकर्मी की जरूरत महिला कोच में हर वक्त होती है।
– समीना यूसुफ सैयद, ठाणे सिटी पुलिस
 रात ११:०० के बाद ट्रेन में सुरक्षा की सख्त आवश्यकता है। कहीं ट्रेन छूट न जाए इसीलिए कभी-कभी जल्दबाजी में मैं जनरल डब्बे में चढ़ जाती हूं। हालांकि वहां मुझे सुरक्षा महसूस नहीं होती, क्योंकि पुरुष भी मौजूद होते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि उसे समय वहां एक कांस्टेबल का होना बहुत जरूरी है। सिर्फ २४/७ महिला कोच में ही पुलिस मौजूद रहती है। अगर कोई महिला गलती से जनरल में चढ़ जाए तो उसकी सुरक्षा का क्या। ऐसी परिस्थिति में सुरक्षा का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
– प्रतीक्षा जैन
 मुझे ऐसा लगता है कि सीसीटीवी वैâमरा महिला कोच में सिर्फ दिखाने के लिए लगाए गए हैं, इसका कोई काम नहीं है। मेरा एक बार बैग चोरी हो गया था, जिसके बाद मैंने कंप्लेंट लिखी और कहा कि आप सीसीटीवी में जांच करें, लेकिन पुलिस कांस्टेबल ने कहा कि सीसीटीवी वैâमरा खराब है, जिसके कारण चोर को पकड़ने में वे असफल रहे। इस पर बड़ा एक्शन लेना चाहिए। सीसीटीवी का सही उपयोग हो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए।
– लक्ष्मी पारेख

रेलवे अधिकारी के पास कोई जवाब नहीं
लोकल ट्रेन की महिला कोच में लगे खराब सीसीटीवी वैâमरा को लेकर जब हमने रेलवे अधिकारी से सवाल पूछा तो उन्होंने सवाल टालने की पूरी कोशिश की। असंतोषजनक जवाब दिया और बात को उलझाने की कोशिश की। इससे साफ पता चलता है कि उनके पास कोई सटीक जवाब नहीं था। महिला की सुरक्षा को लेकर सीसीटीवी वैâमरा कोच में काम क्यों नहीं कर रहे हैं। खराब वैâमरे कितने दिनों में बदले जाते हैं उनकी सर्विस वैâसे होती है, इन सवालों का जवाब रेलवे अधिकारी के पास नहीं था।

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