उमेश गुप्ता / वाराणसी
हमारे श्रीगुरु, अपने समय के सर्ववरिष्ठ धर्माचार्य ब्रह्मलीन ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने इस आवश्यकता का अनुभव किया कि समस्त विश्व के परमधार्मिक सनातनधर्मी हिंदुओं को संरक्षण-संवर्धन देने और उनके धार्मिक हितों की संरक्षा करने के लिए एक सार्वभौम धर्म संस्था की आवश्यकता है। उक्त बातें परमाराध्य परम र्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती १००८ ने आज अवशिष्ट बिंदु विचार विषय पर व्यक्त करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि इसी संदर्भ में परम धर्म संसद १००८ की स्थापना हुई और वाराणसी तथा प्रयाग में इसका आयोजन हुआ। वर्तमान में कुंभ पर्व पर २७ दिनों के लिए इसका कुंभ क्षेत्र में आयोजन हुआ। धर्मांसदों ने सोत्साह इसमें भाग लिया और अनेक विषयों पर विचार के बाद अवर सदन, प्रवर सदन और परम सदन ने प्रस्ताव पारित किए, जिसे परम धर्मादेश के रूप में जारी किया गया।
इनमें गोहत्या से किसी भी रूप में जुड़े व्यक्ति का हिंदू धर्म से बहिष्कार, गोमतदाता बनने की प्रेरणा, सनातन संरक्षण परिषद् का गठन, हिंदू की परिभाषा, हिंदुओं के उपास्य देवता का निर्णय, आयुर्वेद को हिंदू चिकित्सा पद्धति घोषित करना, भारत के संविधान की हिंदूपरक व्याख्या, धार्मिक विरासतों की पुनः प्राप्ति, धर्मजगत के प्रदूषण मिटाना, गंगादि नदियों की अविरल-निर्मल धारा का संकल्प, धार्मिक प्रतीकों की रक्षा की जरूरत, अन्न-जल की शुद्धि पर विचार, हर हिंदू को भारत की नागरिकता की मांग, धर्म-न्यायालय का गठन, परिवार के संरक्षण पर जोर, हर घर हिंदू संस्कार-शिक्षा, अखंड और समरूप भारत का निर्माण, सामाजिक समरसता, धर्मांतरण और स्वधर्मानयन पर विचार, पर्व तिथियों की सर्वमान्य समरूपता के प्रयास, भाषा-भूषा के सांकर्य का निवारण, हर हिंदू बच्चे का अधिकार है अपने धर्म की शिक्षा, हिंदू प्रमाणीकरण परिषद की स्थापना और हिंदू धार्मिक नेतृत्व संरचना जैसे परमधर्मादेश घोषित किये गए।
बहुत से और विषय हैं, जो अभी भी विचार के लिए अवशिष्ट रह गए हैं। उन्हें और अब के बाद आने वाले अन्य विषयों को भी परम धर्म संसद १००८ के अग्रिम सत्र में विचारार्थ लिया जाएगा और परमधर्मादेश पारित किया जाएगा।
आगे कहा कि समस्त विश्व में निवास करने वाले हर सनातन, वैदिक, हिंदू, आर्य, परमधार्मिक से अनुरोध है कि वे धर्मपालन में आ रही उनकी समस्याओं को परमधर्मसंसद १००८ तक पहुंचाएं। परम धर्म संसद १००८ अपनी शक्ति भर उनकी समस्याओं के निराकरण का बौद्धिक/व्यावहारिक प्रयास करेगी, साथ ही इसे शक्तिमती बनाने के लिए आप अपना योगदान भी दें।
आज सदन में दो प्रासंगिक प्रस्ताव भी पारित हुए। भारत की संसद में मनुस्मृति पर गलत टिप्पणी के लिए नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का प्रस्ताव पारित हुआ तथा अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा अभिरक्षा के समय हिंदुओं को गौमांस परोसे जाने पर निंदा प्रस्ताव पारित किया गया।
आज विषय स्थापना साध्वी पूर्णांम्बा जी ने किया। इसी क्रम में लद्दाख से गीताञ्जलि जी, विकास पाटनी जी, डॉ. निशीथा, अनसूइया प्रसाद उनियाल, डेजी रैना, कुमारी प्रीति बेन, रमेश, डॉ. सुजाता पाण्डेय, गोविंद सिंह, राहुल सिंह, प्रमोद कृष्ण शास्त्री, विकास रेंगे, गोपाल पटीदार, जनार्दन सिंह, संत त्यागी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
प्रकर धर्माधीश के रूप में श्री देवेंद्र पाण्डेय ने संसद का संचालन किया। सदन का शुभारंभ जयोद्घोष से हुआ। अंत में परमाराध्य ने धर्मादेश जारी किया, जिसे सभी ने हर-हर महादेव का उद्घोष कर पारित किया।