अनिल मिश्रा / उल्हासनगर
मार्च में मुंबई में आयोजित विधानसभा अधिवेशन में उल्हासनगर के मध्यवर्ती अस्पताल में एक मरीज की मौत के लिए एंबुलेंस के संचालक की बजाय अस्पताल के सिविल सर्जन को निलंबित कर दिया गया था। उस बात को लेकर उल्हासनगर में सरकार के इस निर्णय के खिलाफ लोगों में आक्रोश देखा गया। बढ़तेजन के विरोध को देखकर सरकार ने निलंबन का आदेश वापस ले लियाl इस निर्णय के लिए जाने से महायुति सरकार की घोर निंदा शुरू है।
बता दें कि राज्य में मरीजों को सेवा मुहैया कराने के लिए सरकार ने विकास ग्रुप कंपनी को मारीजों को एंबुलेंस सेवाएं देने का काम सौंपा गया है, लेकिन समय पर एंबुलेंस की सेवा नहीं मिलने के कारण मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। इसी तरह की घटना विगत दिनों उल्हासनगर के मध्यवर्ती अस्पताल में घटी थी। एंबुलेंस को बुलाने के बाद आने में इतना समय लग गया कि मरीज ने दम तोड़ दिया। इस घटना को लेकर सरकार की काफी निंदा की गई। राज्य के अधिवेशन में एक विधायक द्वारा विधानसभा में शुरू अधिवेशन में मुद्दा खडा़ किया गया। अधिवेशन में खडे़ किए गए सवाल पर ठेकेदार पर कार्यवाही करने का आदेश निकालने की बजाय ठेकेदार को बचाते हुए सिविल सर्जन डॉ. मनोहर बनसोडे को ही निलंबित कर दिया गया। इससे लोगों का आक्रोश महायुति सरकार के प्रति बढ़ गया।
उल्हासनगर के लोग जनहित याचिका की योजना बनाने में लग गए। बढ़ते विरोध को देख निलंबन को रद्द कर दिया गया। मामला कुछ इस तरह का है। 23 जनवरी 2025 को उल्हासनगर के मध्यवर्ती अस्पताल में एक घटना हुई थी, जिसमें छह घंटे तक 108 एंबुलेंस के बुलाने पर भी न आने से गंभीर रूप से बीमार मरीज राहुल इदाते की कलवा, ठाणे के छत्रपति शिवाजी महाराज अस्पताल में समय से न पहुंचने से जान चली गई, लेकिन इस मामले में सरकार ने कंपनी भारत विकास ग्रुप के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं की। उस मामले में अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. मनोहर बनसोडे के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई की गई है। जो कि यह कार्रवाई गलत है। मृतक राहुल इदाते के भाई व सामाजिक संस्था ने सरकार के निलंबन के आदेश को गलत बताते हुए जनहित याचिका दायर करने के लिए हस्ताक्षर का अभियान शुरू किया। तरह-तरह का विरोध किया गया। साथ में लोगों का कहना है कि डॉक्टर मनोहर बनसोडे मरीजों का अच्छा सहयोग करते थे।
लोगों की जनभावना को देख जांच कर डॉक्टर नितीन अंबाडेकर (संचालक, आरोग्य सेवा आयुक्तालाय, मुंबई) ने 29 मार्च 2025 को आदेश जारी किए कि 5 मार्च को दिया गया निलंबन का आदेश रद्द किया गया। महायुति सरकार के इस निर्णय के कारण उल्हासनगर के लोगों को धक्का सा लगा है कि दोषी को सजा देने की बजाय निर्दोष को सजा देने का काम किया गया।