रहमते नजर

खुशियां भी तेरी, आंसू भी तेरे
दुःख-सुख, कैसा तेरा खेल ये न्यारा
“ज़िंदगी का पर्चा” बड़ा कठिन है,
ये इम्तहान भी तेरा!…अंजाम भी तेरा
तू ही नैया, तू ही सागर है, मेरे ‘मालिक’
और तू ही है जग का तारणहार
मैं मूर्ख, डूब जाने के भय से तैर न सकूं
कैसे कर पाऊंगा भवसागर पार!
सब ऊपर हो तेरी “रहमते नजर”
तेरा ‘नाम’ ले, लेकर सब तुझे रहे पुकार
जीत में बदल दे मेरे ‘आका’ जो हुई है हमारी हार।
हे मालिक तेरे बंदे हम, कर दे हम पे कुछ तो करम।
शुक्र मनाएं दिन-रात तेरा, हम।
सब ऊपर हो तेरी “रहमते नजर” मेरे मालिक।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा

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