चुनावी पंडितों ने जताया प्रशांत किशोर के बड़े-बड़े दावों पर शक
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
चुनावी विशेषज्ञ पीके उर्फ प्रशांत किशोर विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए रणनीति बनाने का काम करते हैं। इस काम के एवज में उन्हें काफी पैसा मिलता है। मगर इस बार वे किस पार्टी के लिए काम कर रहे हैं, यह पर्दे के पीछे छिपा है। मगर अब उनका यह रहस्य चुनावी पंडितों को समझ में आने लगा है। वे अपने राजनीतिक बयानों से वोटरों को प्रभावित करने की काशिश कर रहे हैं। इसलिए चुनावी पंडितों का मानना है कि भले ही पीके ने अपनी पार्टी बना ली है और उन्होंने दूसरे दलों के लिए काम करने से मना कर दिया है पर उनके हालिया बयानों से ऐसा लगता है कि पीके एक बार फिर बिक गए हैं।
दरअसल, जब लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई थी तब पीके का मानना था कि ‘इंडिया’ गठबंधन की काफी मजबूत हवा बनी है और इस बार मोदी सरकार के लिए मुश्किल खड़ी होनेवाली है। फिर जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ता गया पीके के सुर भी चतुराई के साथ बदलने लगे। इसके बाद पांचवें, छठे और सातवें चरण को प्रभावित करने की रणनीति के तहत उनके बयानों में बदलाव आने लगा। यही वजह है कि चुनावी पंडितों को पीके के बड़े-बड़े दावों पर शक होना शुरू हो गया।
बाद में उन्होंने अपनी जनसुराज पार्टी बना ली और पिछले दो वर्षों से वे बिहार में पदयात्रा करके चुनावी कार्यक्रम कर रहे हैं। अब सोचने की बात है कि इसके लिए पैसा कहां से आ रहा है। इस बारे में राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चाएं सुनने को मिल रही हैं कि पीके परोक्ष रूप से भाजपा के लिए काम कर रहे हैं और कोई भी काम मुफ्त में तो नहीं होता।
पीके ने पहले मोदी के खिलाफ बोला। फिर न्यूट्रल बोला ताकि लोगों के बीच उनकी छवि बन जाए। अब जबकि हर निष्पक्ष चुनावी विशेषज्ञ का यही मानना है कि देश में मोदी सरकार के खिलाफ माहौल है, पीके कह रहे हैं कि मोदी २०१९ से भी बेहतर कर सकते हैं। असल में यह और कुछ नहीं बल्कि साइकोलॉजिकल वॉरफेयर का इस्तेमाल हो रहा है। पीके ने पांच पार्टियों को जो ३०-३० फीसदी का फॉर्मूला सुझाया है, वह भी कन्फ्यूज करनेवाला है और किसी को समझ में नहीं आ रहा है। बता दें कि पीके ने २०१४ में भाजपा की चुनावी रणनीति बनाई थी। इसके बाद वे नीतिश कुमार के चुनावी रणनीतिकार बने। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने ममता बनर्जी के लिए रणनीति बनाई थी और दीदी ने शानदार जीत दर्ज की थी।