मुख्यपृष्ठनमस्ते सामनाबाल दिवस पर पाठकों की कविताएं

बाल दिवस पर पाठकों की कविताएं

काश फिर से आ जाए वह जमाना

याद आती उन गलियों की,
जहां होती थी धमाल चौकड़ी।
पड़ाई तो सिर्फ बहाना,
नाश्ते की डिबिया पर ध्यान लगाना।
काश फिर से आ जाए वह जमाना,
पिता की डांट से दादी का बचाना,
काश सो जाऊं…
खुद को मां की गोद में पाना।
काश फिर से आ जाए वह जमाना,
पुलकित कर देना,
मात-पिता का प्यार लुटाना।
काश फिर से आ जाए वह जमाना,
न संपति की चिंता न बचाने की जुगत,
न ही हकीकत न ही फंसाना।
काश फिर से आ जाए वह जमाना,
बड़ा अच्छा था…
अठन्नी और चवन्नी का जमाना।
काश फिर से आ जाए वह जमाना,
दादा-दादी से मिले पैसे को छुपाना।
काश फिर से आ जाए वह जमाना
-गोविंद सूचिक अदनासा
-हरदा, मध्य प्रदेश

गुड्डू की फर्माइश

बादल गरजा जोर-जोर से गुड्डू जी चिल्लाए l
देखो मम्मी बादल को भी मार नहीं पड़ जाए l
जब मैं बोलूं जोर-जोर से आप मना क्यूं करतीं l
बादल की चिल्लाहट से तो फट जाती है धरती l
फिर भी सभी खुशी से गाते बरसा रानी आओ l
मेरे रोने पर तुम कहती भालू के घर जाओ l
मैं अब समझ गया तुम मुझको प्यार नहीं करती हो l
वर्ना क्यूं फ्रिज में चुपके से चॉकलेट भरती हो l
खुद तो जाकर पानी में यूं भीग-भीग आती हो l
मैं जाऊं तो सर्दी होगी ये कह धमकाती हो l
मैं भी बादल बन जाऊं, तब मुझसे प्यार करोगी?
कभी नहीं डांटोगी जब मांगू मोबाइल दोगी?
इतनी सी बातों पर क्यूं आंखों में तेरे आंसू हैं l
मत रो न मैं कह दूंगा की मेरी मम्मी धांसू हैं l
-डॉ. कनक लता तिवारी

बने संतान आदर्श हमारी
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूं मैं।
सोच रहा हूं जो बच्चा आये, उसका रूप, गुण सुना दूं मैं।।
बाल घुंघराले, बदन गठीला, चाल, ढाल में तेज भरा हो।
मन शीतल हो ज्यों चंद्र-सा, ओज सूर्य-सा रूप धरा हो।।
मन भाये नक्स, नैन हो, बातें दिल की बता दूं मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूं मैं।।
राह चले वो वीर शिवा की, राणा की, अभिमन्यु की।
शत्रु दल को कैसे जीते, सीख चुने वो रणवीरों की।।
बन जाए वो सच्चा नायक, ऐसे मंत्र पढ़ा दूं मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूं मैं।।
सीख सिखले मां पन्ना की, झांसी वाली रानी की।
दुर्गावती-सा शौर्य हो, लाज पद्मावत मेवाड़ी-सी।।
भक्ति में हो अहिल्या, मीरा, ऐसी घुटकी पिलवा दूं मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूं मैं।।
पुत्र हो तो प्रह्लाद-सा, राह धर्म की चलता जाए।
ध्रुव तारा-सा अटल बने वो, जो सत्य पथ दिखलाए।।
पुत्री जनकर मैत्री, गार्गी, ज्ञान की ज्योत जलवा दूं मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूं मैं।।
सोच रहा हूं जो बच्चा आए, उसका रूप, गुण सुना दूं मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूं मैं।।

पंछी
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
उड़ते ऊंचे आसमान में,
मंजिल की ये राह दिखाते।
ये छोटे-छोटे जीव मगर,
इनसे ये नभ भी हारा है।
आत्मबल से ओत-प्रोत ये,
मिल उड़ना इनको प्यारा है।
बड़े-बड़े जो न कर पाए,
पल भर में ये कर जाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
लड़ते हैं ये तूफानों से,
उड़ सूरज से भी बात करें।
पंख रुकते हैं कब इनके,
सागर, पर्वत भी पार करें।
कोमल काया के हैं लेकिन,
सदा हौंसले ये आजमाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
तिनके-पत्ती जोड़-जोड़ सब,
रहे घरोंदे हैं सभी सजे।
इच्छा जो दाने-पानी की,
कमा श्रम से, ले हैं मजा।
प्यारी-सी एक सीख देकर,
अंतर्मन को है हर्षाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
अपने घर, गलियां नगर में,
यदि मधुर स्वर गुंजाना है।
मनुज सहेजे पंछी-पंछी,
गीत यही अब मिल गाना है।
ये नन्हे हैं मित्र हमारे,
हमसे बस ये आस लगाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।

ठंड हुई पुरजोर
लगे ठिठुरने गात सब,
निकले कम्बल-शाल।
सिकुड़ रहे हैं ठंड से,
हाल हुआ बेहाल।।
बाहर मत निकलो कहे,
बहुत ठंड है आज।
कान पकते सुनते हुए,
दादी की आवाज।।
जाड़ा आकर यूं खड़ा,
ठोके सौरभ ताल।
आग पकड़ने से डरे,
गीले पड़े पुआल।।
सौरभ सर्दी में हुआ,
जैसे बर्फ जमाव।
गली मुहल्ले तापते,
बैठे लोग अलाव।।
धूप लगे जब गुनगुनी,
मिले तनिक आराम।
सर्दी में करते नहीं,
हाथ पैर भी काम।।
निकलो घर से तुम यदि,
रखना बच्चों का ध्यान।
सुबह-सांझ घर पर रहो,
ढककर रखना कान।।
लापरवाही मत करो,
ठंड हुई पुरजोर।
ओढ़ रजाई लेट लो,
उठिए जब हो भोर।।

प्यारी चिड़िया रानी
सुबह-सुबह नन्ही चिड़िया,
आंगन में जब आती है।
फुदक-फुदक कर चूं-चू करती,
मीठे गीत रोज सुनाती है।
चिड़िया फुर्र-फुर्र उड़ती है,
चोंच से दाने चुगती है।
बच्चों को है देती खाना,
सबसे पहले उठ जाती है।
छज्जा, खिड़की ढूंढें आला,
कहां घोंसला जाए डाला।
तिनका थामे चिमटी चोंच में,
सपनों का नीड सजाती है।
उम्मीदों के पंख पसारकर,
नील-गगन को उड़ पार कर।
जीवन की कठिनाई झेलती,
अपना हर धर्म निभाती है।
उठो सवेरे और करो श्रम,
प्रगति इसी से आती है।
बच्चों, प्यारी चिड़िया रानी,
हमको यह सिखलाती है।

लाये सिंघाड़े
ठेले भर लाये सिंघाड़े के।
दिन आए फिर जाड़े के॥
पानी में ये मोती उगता।
सुंदर रूप तिकोना दिखता॥
जाड़े में हर बार ये आता।
सबके मन को खूब भाता॥
बच्चों इसके गुण भरपूर।
कब्ज बदहजमी करता दूर॥
इसमें फाईबर, प्रोटीन रहता।
ब्लड प्रेशर सब ये सहता॥
व्रत त्योहार इससे मनती।
हलवा रोटी इससे बनती॥
जब भी तुम जाओ बाजार।
सिंघाड़े लाओ हर बार॥
लाकर खूब सिंघाड़े खाओ।
सेहत अपनी अच्छी बनाओ॥
-डॉ. सत्यवान सौरभ

अन्य समाचार