ऐसे दीप जलाएं
वहशीपन के भ्रमर जाल को,
मिलकर आंख दिखाएं,
घायल न हो लतिका कोई,
कुछ ऐसा हम कर जाएं।
प्रेम की अपनी फुलवारी में,
महक आलिंगन की बिखराएं।
वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से,
अबकी दीप जलाएं।
बिखरा हो जो बाल मनोहर,
न थाती, न कोई धरोहर,
बनकर कोई आशा पुंज,
उसे छाती यूं लगाएं।
वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से,
अबकी दीप जलाएं।
डाह की वो काली छाया,
बन बैठी जो परछाईं है,
पग कंटक में देख नजर,
जहां भाई का न रहा कोई भाई है,
मक्कारी के चेहरे को,
कालिख हम यूं लगाएं।
वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से,
अब की दीप जलाएं।
ऊंच नीच की दीवार गिरा,
प्रेम ही अपना नारा हो,
चाहत की जो बहे बयार,
संसार सकल हमारा हो,
“विशाल” अपने इरादों से,
हौसलों को पंख लगाएं।
वसुधैव कुटुंबकम् की भावना से,
अबकी हम ये दीप जलाएं।
– विशाल चौरसिया (स.अ.)
आजमगढ़, (उ. प्र.
जलता कैसे दीप
शुभ दीवाली आ गई, झूम रहा संसार।
मां लक्ष्मी का आगमन, सजे सभी घर द्वार।।
सुख वैभव सबको मिले, मिले प्यार उपहार।
सच में सौरभ हो तभी, दीवाली त्योहार।।
दीवाली का पर्व ये, हो सौरभ तब खास।
आ जाए जब झोंपड़ी, महलों को भी रास।।
जिनके स्वच्छ विचार हैं, रखे प्रेम व्यवहार।
उनके सौरभ रोज ही, दीवाली त्योहार।।
दीवाली उनकी मने, होय सुखी परिवार।
दीप बेच रोशन करे, सौरभ जो घर द्वार।।
मैंने उनको भेंट की, दीवाली और ईद।
जान देश के नाम कर, जो हो गए शहीद।।
फीके-फीके हो गए, त्योहारों के रंग।
दीप दिवाली के बुझे, होली है बेरंग।।
नेह भरे मोती नहीं, खाली मन का सीप।
सूख गई हैं बातियां, जलता कैसे दीप।।
बाती रूठी दीप से, हो कैसे प्रकाश।
बैठा मन को बांधकर, अंधियारे का पाश।।
दीया माटी का जले, रौशन हो घर द्वार।
जीवन भर आशीष दे, तुम्हे खूब कुम्हार।।
दीया बाती ने किया, प्रेमपूर्ण व्यवहार।
जगमग हुई मुंडेर है, प्रकाशमय घर द्वार ।।
दीया -बाती- सी परी, तेरी -मेरी प्रीत।
हर्षित हो उल्लास उर, गाये मिलकर गीत।।
दीया में बाती जले, पावन ये व्यवहार।
अन्तर्मन उजियार ही, है सच्चा श्रृंगार।।
सदा शहीदों का जले, इक दीया हर हाल।
मने तभी दीपावली, देश रहे खुशहाल ।।
दीया- बाती- सा बने, आपस में विश्वास।
चिंता सारी दूर हो, खुशियां करे निवास।।
तपती बाती रात भर, लिए अटल विश्वास।
तब जाकर दीया भरे, है आशा उल्लास।।
दीये सा जीवन करे, इस जगती के नाम।
परहित हेतु जो है मिटे, जीवन उनका धाम।।
दीया माटी का जले, रौशन हो घर द्वार।
जीवन भर आशीष दे, तुम्हे खूब कुम्हार।।
-डॉ सत्यवान सौरभ
दीपावली
दीपावली पर्व है, आओ दीप जलाएं
मिल कर दीपावली पर्व मनाएं।
मास कार्तिक, अमावस रात्रि
घर -घर दीप, गगन में तारें जगमगाएं।
पावन दिवस, नगरी अयोध्या, भगवान राम याद आयें
काट चौदह वर्ष बनवास घर वापिस आएं।
आज मां लक्ष्मी समुद्र मंथन से बाहर आईं।
ऋतु सुहानी, आंनद की बरसी बदली
जन सैलाब में खुशियां छाईं।
बंदनवार बंधें, बनी रंग-बिरंगी रंगोली
हर घर आंगन में खुशियां छाईं।
बाजार सजे भांति भांति के बहुरंगी साजो सामान से
पटाखे, अनार, फुलझडियां बिकने आईं।
खील, बताशे, दीप, कंदील, झाड़-फानूस
रंग अनोखे, झूम-झूम इतराएं।
माटी के दीपक विभिन्न आकारों में दिखे
आओ इस बार केवल माटी के दीपक जलाएं।
पंक्ति बद्ध जब दीप जलें
आंगन, छत, दीवारे जगमगाएं।
जन मानस में छाया तमस
झिलमिलाते दीपों से छट जाएं।
एक दीप सीमा पर खड़े
सैनिक के नाम से जलाएं
एक दीप देश की एकता
प्रगती, उन्नति के नाम जलाएं।
एक दीप एसे अंधेरे घर में जलाएं
जो तेल बाती दीपक खरीद न पाएं।
आओ हम अपना प्यारा
दीपावली पर्व मनाएं।
-बेला विरदी