कवि और कविता

वर्ण मात्राएं हें गहन पारावार
शब्द द्वीप समान,
वाक्य हैं निरंतर लहरें
उर्मी हे कविता पल पल उठती जाए।
वर्ण हें गहन विपिन
शब्द बने पुष्प निराले,
हर पुष्प से आती महक
पात बन हर श्रोता डोले
प्रति पंक्ति कविता की
कवि मन के भेद खोले।
सुख दुःख के भंवर अनोखे
कवि की वाणी ही खोले।
जहां रवि की किरण पहुंच न पाएं
वह भाव कविवर अपनी कविता में लिख जाए।
वात्सल्य प्रेम विरह सुख दुःख
सब कवि की लेखनी लिख जाए।
माली बन कवि हार पिरोए
गीत दोहा सोरठा कुंडलियां चौपाई
सभी छंद कवि को भाए।
सार्थक शब्दों का कर चयन रच देता कविता,
कवि विरक्त मन को आसक्ति की दिशा दिखा देता।
सत्य से होता गहन संबंध कवि का,
पाहन शैल वृक्ष जीव
सबकी भावना समझ पाए,
अंजुरी भर शब्दों से शाश्वत कविता सरिता बहती जाए।
-बेला विरदी

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