सूचकांक तीव्र गति से
बढ़ रहा सर्वस्व को
कौन रोके ताप के इस
अश्वमेघ के अश्व को
मेघ से आशा है अब के
वे एकजुट लव -कुश बनेंगे
रोकेंगे इस काल -तप को
बारिश के वारिस बनेंगे
सूर्य के तेज तप को
जल की अगाध आहूति देकर
धरा के एक -एक कण को
भीगने की स्वीकृत देकर
बादलों! मोर्चा सम्भालो
इस तपिश को घेर डालो
फिर रही अहर्निश मुसलसल
इसपे निगाहें फेर डालो
बादलों की फ़ौज भी अब
जुट रही है धीरे -धीरे
तपिश के समक्ष आके शायद
गड़गड़ाहट की तान टेरे
सूर्य के इस ताप को
कम करने का बरदान माँगा
शजर के आँचल में बैठा
टांगिये से ज्ञान माँगा
मौन अधरों से शजर फिर
कान में धीरे से बोला
मुझको काटकर ही सबने
धरती बनाई आग गोला
जो किया है उसको भुगतो
चाहे फिर प्रायश्चित कर लो
राशियों के अंक बराबर
मुझे लगाओ निश्चित कर लो
-सिद्धार्थ गोरखपुरी