सामना संवाददाता / मुुंबई
मुम्बई। जब हम ‘अच्छी कविता’ पर विचार करते हैं तो इसके बरक्स भी कविता है, यह विचार भी सामने आता है। कविता के नाम पर जो लिखा जा रहा है, क्या वह जरूरी है या कितना जरूरी है? मतलब अपने समय, संदर्भ तथा दरपेश चुनौतियों के समक्ष कविता के होने की बात है। चुनौतियां क्या हैं? कविता उन तमाम बुराइयों के विरुद्ध है जो इस सिस्टम की देन है। प्रत्येक रचनाकार को ही नहीं हर एक संवेदनशील नागरिक को भी उससे टकराना पड़ रहा है। ज़रूरत इस बात की है कि हमारा दिल-दिमाग, मन-मस्तिष्क सोचे-विचारे। कविता भाषा में अभिव्यक्ति का सबसे समर्थ रूप है।
यह विचार कवि, लेखक तथा लिखावट के संयोजक मिथिलेश श्रीवास्तव ने ‘कविता मुंबई 2024 ‘ के उद्घाटन सत्र में इसके परिप्रेक्ष्य को रखते हुए कही। ‘कविता मुंबई – 2024’ का आयोजन लिखावट दिल्ली, स्वर संगम फाउंडेशन मुम्बई तथा मुम्बई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा संयुक्त रूप से 14 और 15 सितंबर को मुंबई विश्वविद्यालय के जे पी नाईक सभागार में आयोजित किया गया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ दत्तात्रेय मुरुमकर ने की। विशिष्ट अतिथि थे वयोवृद्ध कवि डॉ नंदलाल पाठक (96 वर्ष)। रघुवीर सहाय को समर्पित इस सत्र का संचालन किया कवि और आलोचक डॉ प्रशांत जैन ने।
वरिष्ठ कवि व ‘चिंतन दिशा’ पत्रिका के संपादक हृदयेश मयंक ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि समय का सबसे अच्छा चित्रण कविताएँ करती हैं। कविता का जन्म कागज पर नहीं होता। वह पहले कवि के हृदय में जन्मती है। कविता मनुष्य को तनाव ग्रस्त जीवन से मुक्त करती है। वह मनुष्य और जीवन दोनों को बचाती है। उसका रिश्ता जनजीवन से है, जन सरोकार से है। इसी से उसे जीवनी शक्ति मिलती है। कविता मन को टटोलती है, विचारों को खोलती है।
लखनऊ से आए कवि और समीक्षक कौशल किशोर का वक्तव्य ‘समकालीन हिंदी कविता और आज का समय’ पर केंद्रित था। उन्होंने कहा कि मानव जीवन में जब भी संकट आता है, कविता सबसे पहले उसके पास पहुंचती है। हमने शाहीन बाग, किसान आंदोलन तथा कोरोना महामारी के दौरान देखा। समकालीन कविता की खासियत यह है कि इसका अपने समय से गहरा और जीवन्त जुड़ाव है। आजादी से मोहभंग व जन असंतोष ने कविता की जमीन को बदलने का काम किया। 1990 के बाद नई सामाजिक शक्तियों के उदय से लोकतांत्रिक आकांक्षाएं प्रबल हुईं। छंद की वापसी हुई। कविता में अनेक स्वर उभर कर आए।
कौशल किशोर ने आगे कहा कि आज का समय कारपोरेट लूट और झूठ का है। सांप्रदायिकता का उभार, मर्दाना राष्ट्रवाद, वर्ग-भेद, जाति-भेद, धर्म-भेद, लिंग-भेद आदि अपने चरम पर हैं। बौद्धिक समुदाय को सत्ता द्वारा अनुकूलित किया जा रहा है। दमन और प्रलोभन दोनों उसके अस्त्र हैं।1992 और 2002 का ही विकास 2014 है। इसी के बीच आज की कविता को अपनी राह बनानी है । कौशल किशोर ने अपनी बात का समापन रघुवीर सहाय की इन पंक्तियों से किया कि ‘कुछ न कुछ होगा / अगर मैं बोलूंगा / न टूटे, न टूटे तिलिस्म सत्ता का / मेरे अंदर एक कायर टूटेगा।’
‘कविता मुंबई’ के इस दो दिवसीय आयोजन में गजल के एक सत्र सहित कविता के कुल 6 सत्रों में करीब 50 कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। ये कविताएँ अपने समय को संबोधित थीं। स्त्री विमर्श, राजनीतिक विद्रूपता, सांप्रदायिक नफरत, पर्यावरण संकट, निजी अनुभूतियों से लेकर सामाजिक अनुभूतियों को उकेरती कविताओं को लोगों ने काफी पसंद किया और ऐसे आयोजन की जरूरत को शिद्दत से महसूस किया।
पहला सत्र मुक्तिबोध को समर्पित था जिसकी अध्यक्षता कवि-समीक्षक कौशल किशोर ने की। संचालन किया डॉ अलका अग्रवाल सिगतिया ने। इस सत्र में प्रतिमा राज, अल्का अग्रवाल सिगतिया, भूपेन्द्र मिश्रा, रीता दास राम, जुल्मीराम सिंह यादव, राजेश कुमार सिन्हा, बुद्धि लाल पाल (दुर्ग), हृदयेश मयंक तथा कौशल किशोर ने अपनी कविताएं सुनाईं।
कविता का दूसरा सत्र विष्णु खरे को समर्पित था। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि-लेखक विनोद कुमार श्रीवास्तव ने की तथा विभा सिंह, इरा टाक, चित्रा देसाई, अनिल गौड़, संवेदना रावत, डॉ. प्रवीण चंद्र बिष्ट , हरजिंदर सिंह सेठी और विनोद कुमार श्रीवास्तव ने कविता पाठ किया। इस सत्र का संचालन प्रशांत जैन ने किया। तीसरे सत्र की अध्यक्षता अनिल मिश्र ने की। यह सत्र नारायण सुर्वे को समर्पित था। कविता पाठ करने वाले कवि थे – भारती श्रीवास्तव, अर्चना जौहरी, रेखा बब्बल, फरीद खान, प्रशांत जैन, हूबनाथ पांडे और अनिल मिश्र। सत्र का संचालन किया डॉ रीता दास राम ने।
कार्यक्रम के दूसरे दिन कामरेड सीताराम येचुरी, जनवादी गीतकार नचिकेता, कवि मलय, प्रो चौथी राम यादव, पंजाबी कवि सुरजीत पात्तर, शायर, मुन्नवर राना, ‘समकालीन जनमत’ की प्रबंध संपादक मीना राय, कांति मोहन सोज, परशुराम आदि को श्रद्धांजलि दी गई। शुरुआत कविता के चौथे सत्र से हुई जिसकी अध्यक्षता विजय कुमार ने की तथा संचालन रीता दास राम ने किया। यह सत्र मंगलेश डबराल को समर्पित था । इस सत्र में आभा बोधिसत्व, निर्मला डोसी, अनुराधा सिंह, रंजना पोहनकर, हरि मृदुल, प्रेम रंजन अनिमेष, बोधिसत्व, अनूप सेठी, विनोद दास और विजय कुमार ने अपनी कविताएं सुना कर आयोजन को नई ऊंचाई प्रदान की। कविता के पांचवें सत्र की शुरुआत मुम्बई यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों सर्वेश यादव, आशिया शेख, अमरजीत पोद्दार और आमना आज़मी के कविता पाठ से हुई। अध्यक्षता मिथिलेश श्रीवास्तव ने की तथा संचालन किया प्रशांत जैन ने। इस सत्र में सुशीला तिवारी, मीनू मदान, प्रेमा झा, सुनील ओवाल, जितेंद्र पांडे, रमेश राजहंस और मिथिलेश श्रीवास्तव ने अपनी कविताएं सुनाईं। यह सत्र वीरेन डंगवाल को समर्पित था।
कविता का अंतिम सत्र गजलों का था। दुष्यंत कुमार को समर्पित इस सत्र की अध्यक्षता वयोवृद्ध कवि साहित्यकार डॉ नंदलाल पाठक ने की तथा जलेस मुंबई के सचिव मुख्तार खान ने संचालन किया। इस सत्र में मुस्तहसन अज्म, नवीन चतुर्वेदी, प्रशांत जैन, अलका शरर, अनिल गौड़, रियाज रहीम, राकेश शर्मा, हृदयेश मयंक तथा नंदलाल पाठक ने अपनी गजलों से समां बांधा।
आयोजन में तीन विचार सत्र थे। पहला सत्र डॉ नामवर सिंह को समर्पित था। कवि व आलोचक विजय कुमार ने ‘समकालीन हिंदी कविता में युवा कवयित्रियों का योगदान’ विषय पर बोलते हुए कहा कि इस सदी में बड़ी संख्या में हिंदी कवयित्रियां सक्रिय हैं। इससे काव्य परिदृश्य में बड़ा बदलाव आया है । सामाजिक, आर्थिक विकास के बावजूद सामन्ती रूढियाें की जकड़बंदी और पूंजीवादी व बाजार संस्कृति की घेराबंदी को लेकर एक बढती जागरूकता आज तरह-तरह से कविताओं में व्यक्त हो रही है। समय इतनी तेजी से बदल रहा है कि अकादमिक जगत में काव्य-समीक्षा के जो रूढ़ औजार हैं, वे आज सर्वथा अपर्याप्त लगते हैं। विजय कुमार ने इस संबंध में उदाहरण के तौर पर शहरी परिवेश से उभरी नेहा नेरुका, अनुराधा सिंह, प्रिया वर्मा आदि रचनाकारों की कविताओं और आदिवासी इलाकों से आयीं पूनम वासम, जेसिन्ता केरकट्टा और वन्दना टेटे जैसी कुछ कवयित्रियों की कविताओं के सन्दर्भों को सामने रखा। डा हूबनाथ पांडेय और हरजिंदर सिंह सेठी ने ‘समकालीन हिंदी कविता और महानगर मुंबई’ पर अपने विचार प्रकट किये तथा मुंबई के कविता के इतिहास और वर्तमान परिदृश्य का खाका खींचा। वहीं, डॉक्टर प्रवीण चंद बिष्ट ने ‘कविता में शहरी और ग्रामीण लोक चेतना’ पर अपने आलेख का पाठ किया।
कविता मुम्बई का दूसरा विचार सत्र ‘कविता-वाचन की कला’ पर केंद्रित था, जो महाकवि निराला को समर्पित था। इस सत्र में सुप्रसिद्ध अभिनेता राजेंद्र गुप्ता ने इस बात को बड़े सशक्त ढंग से प्रमाणित किया कि सशक्त काव्य पाठ कविता के शब्दों में निहित संवेदनात्मक ऊर्जा को पुनर्जीवित तथा रचना के अनुभवों का आन्तरिक विस्तार करता है। इस मौके पर उन्होंने मुक्तिबोध की कविता ‘भूल–गलती’, धूमिल की ‘मोचीराम’, रघुवीर सहाय की ’रामदास’, केदारनाथ सिंह की ‘बनारस’और श्रीकांत वर्मा की ‘मगध’ जैसी बहुचर्चित कविताओं का पाठ किया। राजेंद्र गुप्ता से कविताओं की चयन प्रक्रिया आदि से संबंधित विषयों पर मिथिलेश श्रीवास्तव, विनोद दास, अनूप सेठी, रमन मिश्र ने उनसे संवाद किया।
कविता मुंबई के तीसरे विचार सत्र का विषय था – ‘कविता का अन्य कलाओं से अन्तर्सम्बन्ध इस सत्र की प्रस्तावना रखते हुए संचालक प्रशांत जैन ने कहा कि सभी कला विधाएँ अपने मूल में अनिवार्यत: सृजनात्मक हैं और इनमें अन्योन्याश्रित सम्बंध है। कोई भी कृति जीवन के अनुभवों और अनुभूतियों के आधार पर चेतना की गहराईयों से जन्म लेती है। और इसीलिए यह अंतर्संबंध सर्वथा स्वाभाविक है। इस सत्र में कविता के चित्रकला, शिल्प कला एवं अभिनय कला से संबंध पर गहन एवं विशद चर्चा हुई। रंजना पोहनकर, जो कि चित्रकार के साथ ही कवयत्री भी हैं, ने मुक्तिबोध के साथ ही अन्य कवियों की कविताओं पर बनाए गए अपने रेखांकनों एवं चित्रों का प्रदर्शन करते हुए समझाया कि किस तरह से कोई कविता किसी चित्रकार के चित्त में उतरती है, और फिर रंगों के सहारे कैनवास पर अभिव्यक्त होती है। डॉ सुमनिका सेठी ने कविता और शिल्प कला के सूक्ष्म संबंध को रेखांकित किया। इस विषय पर उन्होंने बहुत ही सुचिंतित एवं सुगठित वक्तव्य दिया। कविता और अभिनय कला के संबंध पर प्रख्यात कवयत्री एवं अभिनेत्री, विभा रानी जी ने अत्यंत सशक्त एवं प्रभावी व्याख्यान दिया। उन्होंने कविता, संगीत एवं अभिनय के परस्पर संबंध को अनेक उदाहरणों के साथ सामने रखा। अंत में सत्र के अध्यक्ष विनोद दास ने इस चर्चा को तार्किक परिणति तक पहुँचाया।
कविता के इस दो दिवसीय उत्सव के समापन समारोह के वक्ता थे कौशल किशोर, हृदयेश मयंक, डॉ. हूबनाथ पांडेय एवं मिथिलेश श्रीवास्तव। समारोह के अध्यक्ष थे डॉ नंदलाल पाठक एवं मुख्य अतिथि थे श्री विश्वनाथ सचदेव। दोनों ही ने कविता के इस विराट उत्सव को सुखद आश्चर्य के रूप में देखा एवं सफल आयोजन के लिए आयोजकों को बधाई दी। इस सत्र में रीता दास राम की आलोचना कृति तथा ‘रेवान्त’ पत्रिका के नये अंक का लोकार्पण हुआ। समापन समारोह का संचालन डॉ. प्रशांत जैन ने एवं आभार ज्ञापन डॉ. हरिप्रसाद राय ने किया।