एम एम सिंह
उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गए हैं, दूसरी बार। वह अपने दादा शेख अब्दुल्ला एवं पिता फारूक अब्दुल्ला के बाद इस पद को संभालने वाले अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं। उन्होंने कुर्सी पर बैठते ही खुद के लिए वीवीआईपी कल्चर से परहेज किया है। उनके इस पैâसले की जमकर तारीफ हो रही है। लेकिन उमर के लिए इस बार मुख्यमंत्री पद आसान नहीं होगा, क्योंकि राज्य के जनादेश में कश्मीर घाटी और जम्मू के बीच ध्रुवीकरण साफ तौर पर दिखाई देता है। नेशनल कांप्रâेंस ने कुल मिलाकर ४२ सीटें जीती हैं, जिनमें से सभी जम्मू क्षेत्र की हैं लेकिन वे सभी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की हैं। गठबंधन को कांग्रेस ने निराश किया है। जम्मू में कांग्रेस के हाथ सिर्फ एक सीट लगी है और वह भी मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र में। घाटी में पांच अन्य सीटों पर कब्जा कर पाई, लेकिन सभी मुस्लिम बहुल इलाके हैं। भाजपा घाटी में अपना खाता नहीं खोल पाई, लेकिन उसने जम्मू में २९ सीटें जीतीं और वे सभी जम्मू की हिंदू बहुल इलाके हैं। इसका सीधा मतलब निकाला जा सकता है कि उमर को जम्मू के हिंदू बहुल इलाकों के लोगों का भरोसा जीतना पड़ेगा। कहा जा रहा है कि इस चुनाव के नतीजे ने जम्मू कश्मीर के बीच खाई चौड़ी कर दी है।
दूसरी सबसे बड़ी चुनौती केंद्र सरकार के वादे जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने को जमीनी हकीकत पर उतारना। क्योंकि भाजपा को इस बात की कसक है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने भाजपा को वोट नहीं दिया। वह इस बात से खफा होकर इस मुद्दे को लंबा खींचेगी या टालती जाएगी। वह क्यों चाहेगी कि इसका श्रेय उमर अब्दुल्ला की सरकार को मिले! हालांकि, केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के लिए बाध्य है, लेकिन चूंकि कोई समय सीमा तय नहीं की गई है और ऐसे हालात उमर की सरकार को सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर ले जा सकती है!
उमर के लिए जरूरी भी है, क्योंकि तभी उनके पास जम्मू कश्मीर के कई बड़े मु्द्दों को हल करने की ताकत होगी। इसके साथ-साथ जम्मू और कश्मीर की घाटी के बीच जैसा कि दावा किया जा रहा है कि खाई और चौड़ी हो गई है उसे अब पाटना भी उमर के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
अब बात करते हैं नेशनल कांप्रâेंस के वादों की। उसने अपने घोषणा पत्र में १२ वादे किए थे, जिसमें अहम हैं अनुच्छेद ३७० की बहाली, कश्मीर पर भारत-पाकिस्तान वार्ता के लिए दबाव, राजनीतिक बंदियों की रिहाई और जमीन तथा नौकरियों पर स्थानीय लोगों का अधिकार सुरक्षित करने के लिए कानून के अलावा बिजली, गैस और खाद्यान्न जैसी मुफ्त सुविधाएं मुहैया कराना भी है। उमर अब्दुल्ला इस बात से वाकिफ हैं कि इन सुविधाओं पर नियंत्रण केंद्र के हाथों में है, इसलिए उनको केंद्र से सौहार्द पूर्ण संबंध बनाए रखना जरूरी होगा और वह एक रणनीति के तहत ऐसा करेंगे भी। क्योंकि मामला जम्मू कश्मीर के जनादेश पर खुद को सही साबित करने का है।
नेशनल कांफ्रेंस जम्मू कश्मीर में सफल इसलिए भी की क्योंकि वहां के लोग भाजपा की कई नीतियों को सही नहीं मान रहे थे। जैसे कि राज्यों की शक्तियों में कटौती, जम्मू-कश्मीर में ‘लोगों’ से सरकारी जमीन वापसी अभियान, बढ़ती बेरोजगारी और बढ़ते बिजली के बिल आदि। वक्फ का ताजा मामला और भाजपा की कथित मुस्लिम विरोधी छवि यहां भी उसे भारी पड़ी है। २०१९ में अनुच्छेद ३७० निरस्त करने के बाद मोदी सरकार की नीतिगत हमले का मुकाबला करने का माद्दा नेशनल कांफ्रेंस के पास है, ऐसी सोच ने भी उमर के लिए एक बेस तैयार किया। एक नए मुख्यमंत्री के तौर पर जम्मू-कश्मीर के लोगों का विश्वास बनाए रखने की जिम्मेदारी उमर अब्दुल्ला पर तो है ही, साथ-साथ उनकी पार्टी को और भी मजबूत बनाने की जिम्मेदारी भी उन पर है, क्योंकि भाजपा कभी नहीं चाहेगी कि उसकी मेहनत जाया जाए! वह जम्मू में हिंदू बहुल इलाकों में अपना घर बनाने में कामयाब जो रही है!