सैयद सलमान मुंबई
चुनाव की घोषणा के साथ ही हरियाणा की सियासत और गरमा गई है। कांग्रेस का ‘भाजपा सरकार से हरियाणा मांगे हिसाब’ स्लोगन आगामी विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। यह नारा कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें बेरोजगारी और अपराध में वृद्धि जैसे मुद्दों को उठाकर वह सरकार की नाक में दम कर रही है। यह नारा सरकार की नाकामियों को उजागर करने का महत्वपूर्ण हथियार बन गया है। इस नारे के माध्यम से कांग्रेस जनता के बीच अपनी उपस्थिति को मजबूत करने और मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही है। पार्टी के नेता घर-घर जाकर इस संदेश को पैâलाने की योजना बना रहे हैं, जिससे चुनावी माहौल में एक नई ऊर्जा का संचार हो सकता है। दरअसल, हरियाणा का किसान और जाट समाज पिछले कुछ वर्षों में केंद्र और राज्य सरकार के दमनकारी रवैए और असहयोग से नाराज है। किसानों पर हुए अत्याचार को वह भूला नहीं है। जाट आंदोलन को कुचलने की भी कोशिश हुई। यही मुद्दे आखिर में भाजपा के गले की हड्डी बन गए हैं।
कठपुतली सरकार के मुखिया
बिहार का मामला तो गजब चर्चा में है। विगत दो महीनों में बिहार में ३० से अधिक पुल गिर चुके हैं, जिनमें १,७१० करोड़ रुपए की लागत से बन रहा एक पुल तो तीसरी बार गिरा है। आरजेडी इसे बिहार में नीतीश कुमार और पुलों के बीच गिरने की अनैतिक प्रतियोगिता बता रही है। इधर पिछले कुछ ही हफ्तों में १३ पुल गिरे हैं, जिसे लेकर विपक्ष ने नीतीश कुमार सरकार पर भ्रष्टाचार और लापरवाही के आरोप लगाए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि घटिया निर्माण सामग्री और इंजीनियरों की कमी इसके पीछे मुख्य कारण हैं। इस संकट ने जनता के लिए भी मुसीबतें खड़ी कर दी है, क्योंकि पुलों के टूटने से कई स्थानों पर यातायात बाधित होता है। इन घटनाओं से यह तो साबित होता ही है कि राज्य में भ्रष्टाचार के पुल असली पुलों से ज्यादा मजबूत हैं। सरकार को इस पर गंभीरता से ध्यान देने और मेंटेनेंस पॉलिसी बनाने की जरूरत है, ताकि इस तरह के हादसों से बचा जा सके, लेकिन नीतीश तो सरकार बचाने और बनवाने के खेल में व्यस्त हैं। अब नीतीश सुशासन बाबू नहीं कठपुतली सरकार के मुखिया भर बनकर रह गए हैं।
१० साल बाद…
जम्मू-कश्मीर में १० साल बाद विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है। यह चुनाव अनुच्छेद-३७० के हटने के बाद पहली बार हो रहे हैं, जिससे राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। चुनाव आयोग ने ९० सीटों पर मतदान तीन चरणों में कराने का निर्णय लिया है। इन १० वर्षों में भाजपा और क्षेत्रीय दलों जैसे पीडीपी और नेशनल कॉन्प्रâेंस के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। नए परिसीमन ने विधानसभा क्षेत्रों की संरचना को भी बदला है। ऐसे में निश्चित ही यह चुनाव राजनीतिक बदलावों का न केवल परीक्षण करेगा, बल्कि नए सिरे से जनता के मूड को दर्शाएगा। माना जा रहा है कि परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में क्षेत्रीय दलों के वोट बैंक में बदलाव आएगा। १० सालों में कश्मीरी पंडितों का जम्मू में विस्थापन न हो पाना भाजपा को भारी पड़ सकता है। कांग्रेस के लिए वहां अपनी खोई जमीन तलाशने का भी यही मौका है। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों के कारण भी नए राजनीतिक नेतृत्व का उभरना संभव है, जिससे स्थानीय दलों की स्थिति प्रभावित हो सकती है।