रमेश सर्राफ धमोरा
झुंझुनू
राजस्थान में इसे बहुजन समाज पार्टी का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जब भी पार्टी के विधायक चुनाव जीतते हैं, वे अंतत: पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में चले जाते हैं और बसपा वाले हाथ मलते रह जाते हैं। दिसंबर २०२३ के विधानसभा चुनाव में भी बसपा के राजस्थान में दो विधायक बाड़ी से जसवंत सिंह गुर्जर व सादुलपुर से मनोज सिंह न्यांगली जीते थे, मगर दोनों बसपा छोड़कर शिवसेना शिंदे में शामिल हो गए। हालांकि, राजस्थान में शिंदे गुट का कोई जनाधार नहीं है। यहां पर पार्टी मान्यता प्राप्त भी नहीं है। शिंदे गुट एक तरह से भाजपा की पिछलग्गू है। राजस्थान में शिंदे गुट में वही शामिल होता है, जिसको भाजपा को समर्थन देना होता है। विधायक जसवंत सिंह गुर्जर पहले भाजपा से विधायक रह चुके हैं। लगातार चार बार हारने के बाद २०२३ में फिर विधायक बन गए। मनोज न्यांगली २०१३ में बसपा से विधायक बने थे, मगर २०१८ में हार गए थे। २०२३ में फिर बसपा टिकट पर दूसरी बार जीते हैं। बसपा के २००८ व २०१८ में जीते सभी ६-६ विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
पुत्र मोह में फंसे नेता
राजस्थान में दो पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, जिसके दोनों नेता पुत्र मोह में फंसे नजर आ रहे हैं। कांग्रेस सरकार में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत इस बार जालौर-सिरोही लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनका भाजपा के लुंबाराम चौधरी से सीधा मुकाबला है। २०१९ में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते उनके पुत्र जोधपुर से चुनाव हार गए थे। इसी के चलते गहलोत ने इस बार अपने पुत्र को जालौर से मैदान में उतारा है। अपने पुत्र को जितवाने के लिए गहलोत रात-दिन जालौर में चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। वहीं भाजपा से दो बार मुख्यमंत्री रही वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह झालावाड़ लोकसभा सीट से पांचवीं बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। दुष्यंत सिंह लगातार चार बार चुनाव जीत चुके हैं। वसुंधरा राजे भी झालावाड़ से पांच बार सांसद रह चुकी हैं। वसुंधरा राजे अपने पुत्र को पांचवीं बार सांसद बनवाने के चक्कर में झालावाड़ नहीं छोड़ पा रही हैं।
मंच छोड़ गए किरोड़ी
राजस्थान सरकार में कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा कभी भाजपा में फायर ब्रांड नेता माने जाते थे। भैरों सिंह शेखावत की सरकार में किरोड़ीलाल मंत्री, लोकसभा सांसद, कई बार विधायक रह चुके हैं। वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके साथ किरोड़ीलाल की पटरी नहीं बैठी और उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा। २००८ के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने अनपढ़ पत्नी गोलमा देवी को गहलोत सरकार में मंत्री भी बनवाया था। बाद में २०१८ में किरोड़ीलाल मीणा ने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कर खुद राज्यसभा सदस्य बन गए थे। २०१८ के चुनाव में उनके भाई जगमोहन मीणा भाजपा टिकट पर हार गए थे। २०२३ में किरोड़ी लाल सवाई माधोपुर से जीतकर राजस्थान में मंत्री बन गए हैं। पिछले दिनों किरोड़ी लाल मीणा दौसा में बस्सी के निकट बासखो खोरी गांव में भाजपा प्रत्याशी कन्हैयालाल मीणा के पक्ष में जनसभा करने के लिए गए थे। वैसे भीड़ नहीं जुटने से वह नाराज होकर बिना भाषण दिए ही मंच छोड़ कर चले गए। उन्होंने वहां उपस्थित संगठन पदाधिकारियों को जमकर फटकारा।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)