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सियासतनामा : जंगलराज

सैयद सलमान
मुंबई

दिल्ली की कानून व्यवस्था की स्थिति गंभीर है। हाल के समय में अपराध की घटनाओं में वृद्धि ने नागरिकों के बीच असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया है। मुख्यमंत्री आतिशी और ‘आप’ नेता अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वह दिल्ली में कानून-व्यवस्था को संभालने में पूरी तरह से विफल रही है, जिससे लोग अपने घरों से बाहर जाने में भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है। गृहमंत्री अमित शाह को शायद न पता हो, लेकिन जनता यह कहने से नहीं चूक रही कि दिल्ली में अपराधियों पर पुलिस का कोई खौफ नहीं है और हालात ‘जंगलराज’ की ओर बढ़ रहे हैं। दिल्ली में अपराध का ग्राफ बढ़ने के पीछे की वजह जानने से ज्यादा अमित शाह खुद को देश का चाणक्य कहलाने और वैसी छवि बनाने में व्यस्त हैं। उन्हें जमीनी हकीकत से रू-बरू होना चाहिए। देश की राजधानी की कानून व्यवस्था का लचर होना सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है। गृहमंत्री को राजनीति से परे होकर इस समस्या का समाधान निकालना होगा।

किसान फिर परेशान
दिल्ली-हरियाणा शंभू बॉर्डर पर किसानों की मौजूदगी एक बार फिर राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गई है। हमारे किसान देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, लेकिन केंद्र सरकार उनकी समस्याओं की अनदेखी कर रही है। किसानों का एक समूह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मांग को लेकर दिल्ली पहुंच रहा है। केंद्र सरकार ने पहले कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया था, लेकिन इसके बाद भी किसानों की अन्य कई मांगों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। किसान नेताओं का आरोप है कि सरकार उनसे चर्चा में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह किसानों की मांगों को गंभीरता से ले और उनके साथ संवाद स्थापित करे। यदि सरकार समय रहते इन मुद्दों का समाधान नहीं करती है तो भविष्य में किसान आंदोलन और भी अधिक तीव्र हो सकते हैं। लेकिन सवाल यही है कि क्या सत्ता के नशे में चूर सरकार अन्नदाताओं पर ध्यान देगी?

बिहार-नॉर्मलाइजेशन पर रार
बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की ७०वीं प्रारंभिक परीक्षा को लेकर अभ्यर्थी पटना में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। मुख्य रूप से परीक्षा के नियमों में किए गए बदलावों के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया का मुद्दा भी शामिल है। इस मुद्दे पर कोचिंग एक्सपर्ट और यूट्यूबर खान सर भी चर्चा में आ गए। खान तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने विभिन्न भर्ती परीक्षाओं में अनियमितताओं के खिलाफ छात्रों के साथ आवाज उठाई और विरोध प्रदर्शन किया। उनकी गिरफ्तारी और रिहाई की खबरों के बीच मुख्य मुद्दा दब गया। दरअसल, जिस नॉर्मलाइजेशन का छात्र विरोध कर रहे हैं। वह एक सांख्यिकीय प्रक्रिया है, जिसका उपयोग तब किया जाता है, जब परीक्षा एक से अधिक पालियों में आयोजित की जाती है। इसके तहत आसान और कठिन प्रश्नपत्रों के अंकों को समायोजित किया जाता है, जिससे सभी परीक्षार्थियों को समान अवसर मिले। हालांकि, छात्रों का मानना है कि यह प्रक्रिया उनके साथ अन्याय कर सकती है। देखना है नीतीश सरकार छात्रों को न्याय देती है या यह मुद्दा भी ठंडे बस्ते की शोभा बढ़ाता है।

नजर न चुरानी पड़े
कभी दोनों में खूब जमती थी। तब कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी। सपा भी सरकार के सपोर्ट में थी। सपा कोटे से मंत्री बनाने की बात आई तब अबू आसिम आजमी ने बशीर मूसा पटेल को मंत्री बनाना चाहा, लेकिन पारिवारिक रिश्तों का हवाला देकर तब के सपा विधायक नवाब मलिक ने अबू आसिम आजमी और मुलायम सिंह यादव को मना लिया और मंत्री बन गए। इस बात से बशीर मूसा पटेल नाराज हुए और उन्होंने अबू आसिम और सपा का साथ छोड़ दिया। वे एनसीपी में शामिल हो गए। बाद में अति महत्वाकांक्षी नवाब मलिक की अबू आसिम से ठन गई। वे भी एनसीपी में शामिल हो गए। अबू आसिम ने अलग-अलग कारणों से दोनों नेताओं को खो दिया। न जाने किस बात की खुन्नस निकालने के लिए चौथी बार विधानसभा में पहुंचने के लिए चुनाव लड़ रहे अबू आसिम आजमी के सामने नवाब मलिक चुनाव लड़ बैठे। हालांकि, उनका यह दांव उल्टा पड़ा और अबू आसिम न सिर्फ चुनाव जीते बल्कि नवाब मलिक को चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। शनिवार को दोनों विधानभवन पहुंचे तो नवाब मलिक अबू आसिम से बचते नजर आए। राजनीतिक रंजिश को इतनी दूर तक सभी नेताओं को ले जाने से इसीलिए बचना चाहिए कि आमना-सामना होने पर नजरें न चुरानी पड़ें।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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