मुख्यपृष्ठस्तंभसियासतनामा : आसान नहीं है राह

सियासतनामा : आसान नहीं है राह

सैयद सलमान

लोकसभा चुनाव के बाद राज्यसभा की १० खाली सीटों पर होने वाले चुनाव भी रोचक होंगे। इन सीटों में महाराष्ट्र, असम और बिहार की दो-दो सीट, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और त्रिपुरा की एक-एक सीट शामिल हैं। इन सीटों पर इंडिया बनाम एनडीए गठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। अभी-अभी बारामती से अपनी ननद सुप्रिया सुले से हारी उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार ने राज्यसभा उपचुनाव के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। शायद भाजपा के समर्थक या भाजपा के नेतागण जब अपने परिजनों को चुनाव में उतारते हैं तो यह परिवारवाद के दायरे में नहीं आता, तब व्याख्या बदल जाती है। खैर, यह उनका आपसी मामला है, लेकिन कई वरिष्ठ नेताओं के रहते अपनी पत्नी को राज्यसभा भेजने की जिद अजीत पवार को आगे चलकर नुकसान पहुंचा सकती है। नेताओं में नाराजगी है, लेकिन अभी सबने चुप्पी साध रखी है। बाकी राज्यों में भी कमोबेश यही हालत है। बगावत होगी मगर धीरे-धीरे। इतना तो तय है, कि एनडीए की आगे की राह आसान नहीं है।

जारी है अड़ियल रवैया
केंद्र की मिली-जुली सरकार ने काम शुरू कर दिया है। मंत्रियों की कार्यभार संभालते हुए तस्वीरें बाजार में आ गई हैं। इन तस्वीरों में अधिकांश की कलम किसी कागज, टैब या पैड की बजाय हवा में लहराती हुई साफ दिख रही हैं। लेकिन सत्ता है तो है। वैसे इस सरकार को `मोदी सरकार’ न कहकर `एनडीए’ की सरकार कहा जा रहा है। जिन दो दलों को बड़ा गुमान था कि उनके दम पर बनने वाली इस सरकार में उन्हें उचित प्रतिनिधित्व दिया जाएगा उन्हें हल्के-फुल्के मंत्रालय देकर टरका दिया गया है। महाराष्ट्र के गद्दारों को भी उनकी जगह बता दी गई है। कहने का अर्थ है कि भाजपा ने किसी के आगे सरेंडर न होकर ऐसी-ऐसी चालें चली हैं कि लोग सरेंडर होकर भी खुश होने का स्वांग कर रहे हैं। खासकर `नानी’, यानी ना और नी। नायडू और नीतीश। लोकसभा अध्यक्ष पद पर नजर गड़ाए नायडू की भी काट खोज ली गई है। इसमें नीतीश, नायडू के नहीं भाजपा के साथ हैं। कुल मिलाकर दलों और दिलों में दूरियां पैदा करने वाली भाजपा अपने सहयोगियों को औकात दिखाकर अपने पुराने घमंडी रवैये पर लौट आई है।

गले की हड्डी
भाजपा किसी की सगी नहीं है यह तो कई उदाहरण देकर आसानी से समझाया जा सकता है। शर्त सिर्फ इतनी है कि मामले को निष्पक्ष होकर सुना जाए, न कि अंध समर्थक बनकर। पहले मुसलमानों को टारगेट करने वाली भाजपा अब अयोध्या में मिली हार के बहाने हिंदुओं को टारगेट कर रही है। भाजपा ने राम मंदिर को चुनावी मुद्दा बनाया, लेकिन वह नाकाम रहा। भाजपा के कार्यकर्ता खुद अयोध्या मामले पर निराश हैं। उनका मानना है कि भाजपा ने राम मंदिर को चुनावी मुद्दा बनाकर गलती की। ऐसे समूह का मानना है कि मंदिर का मुद्दा पुराना हो गया था इसलिए इस वक्त देश के सर्वांगीण विकास पर वोट मांगना चाहिए था। हालांकि, भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं और प्रवक्ताओं से राम मंदिर मामले में भावनात्मक और भड़काऊ बयान देने से बचने को कहा था, लेकिन बड़े नेता खुद वैसे ही बयान देते रहे। विकास के नाम पर अयोध्या में तोड़क कार्रवाई करना भाजपा के गले की हड्डी बन गया। भाजपा अब क्या करेगी? शायद जहां-जहां हारी है, वहां के मतदाताओं को रामद्रोही पुकारेगी।

परेशान हैं नेताजी
नेताजी सदमे में हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में पहुंचना उनका सपना है। नगरसेवक रहे हैं, लेकिन ख्वाहिश है और ऊपर जाने की। दलबदल में भी रिकॉर्ड उनके नाम है। पैसा अकूत है तो चिंता नहीं है। नतीजों ने उन्हें परेशान इसलिए कर रखा है कि तीन दलों के उनके गठबंधन की केंद्र में सरकार तो येन-केन-प्रकारेण बन गई, लेकिन वह जिस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं, वहां हारे हुए प्रत्याशी को जीते हुए प्रत्यशी से ज्यादा वोट मिले हैं। उन्हें लगता है मराठी-मुस्लिम वोटों का समीकरण उनके लिए फिट नहीं बैठ रहा। इस बीच वह मुसलमानों की दरबारी करने लगे। किसी ने समझा दिया कि मुसलमानों में ज्यादा बैठोगे तो ध्रुवीकरण में अपना हिंदू वोट बैंक भी गंवा बैठोगे, तब से और परेशान हैं। गणित कह रहा है कि मुस्लिम वोट जीत में सहायक होगा। बड़ी विकट परिस्थिति बन गई है कि हिंदू मतों को साधते हुए मुसलमानों को वैâसे राजी किया जाए। काश वो ये समझ पाते कि देश के प्रधानमंत्री ने ही हिंदू-मुसलमान करते हुए पूरा चुनाव खराब किया। अब भुगतना तो नेताजी जैसों को ही पड़ेगा।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

अन्य समाचार