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चुनाव सुधार का ढोंग!…प्रे. ट्रंप और मोदी

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय चुनाव प्रणाली की तारीफ की है और कहा है कि भारत की तरह यहां भी ‘बायोमेट्रिक’ पद्धति से मतदान होना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, ‘‘लेकिन ‘बैलेट पेपर’ यानी मतपत्र पर चुनाव कराना ही सुरक्षित है।” यह उन लोगों के लिए झटका है जो सोचते हैं कि अमेरिका में सब कुछ आलबेल है और यह देश दुनिया से दो कदम आगे है। ट्रंप ने अमेरिका में चुनाव सुधारों के लिए आदेश जारी किए। इसके मुताबिक मतदान के लिए नागरिकता प्रमाणपत्र अनिवार्य कर दिया गया है। जन्म प्रमाणपत्र या पासपोर्ट दिखाकर पहचान प्रमाण के बिना अब मतदान संभव नहीं है। ट्रंप ने कहा कि भारत जैसे देश वोटर आईडी को बायोमेट्रिक्स से जोड़ रहे हैं और अमेरिका सेल्फ अटेस्टेशन यानी स्व-सत्यापन पर ही अटका हुआ है। ट्रंप ने चुनाव सुधार को दिल पर ले लिया है। ट्रंप ने चुनाव सुधार क्यों किए? आखिर ट्रंप भी तो ‘गोरे’ मोदी ही हैं। यह पैâसला उन्होंने कोई महान राष्ट्रीय विचार के तहत नहीं लिया है। जन्म प्रमाणपत्र अनिवार्य करने से ट्रंप विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी का वोट बैंक हिल जाएगा। इससे अमेरिका में अप्रवासी, लैटिनो और बड़ी संख्या में अश्वेत आबादी अपने आप ही मताधिकार से वंचित हो जाएगी। यह वर्ग ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी का पारंपरिक विरोधक है। इसलिए ट्रंप ने चुनाव सुधार के नाम पर विपक्ष के वोट बैंक को ही कमजोर कर दिया। इन सुधारों को करते समय ट्रंप ने ‘ईवीएम’ चुनावों का विरोध किया। ट्रंप का रुख यह है कि चुनाव वॉटरमार्क पेपर बैलेट पर ही होने चाहिए, ईवीएम सही नहीं है। एलन मस्क, उपराष्ट्रपति वेंस ने भी ईवीएम का विरोध किया। ये लोग कहते हैं कि वे चुनाव में सुधार चाहते हैं, लेकिन ईवीएम को नहीं। ईवीएम को आसानी से हैक किया जा सकता है। इसलिए यह
लोकतंत्र के लिए खतरा
है, ऐसा माहौल ट्रंप के लोगों ने बनाया। अमेरिका जैसे देश की चुनाव प्रणाली पूर्णत: दोषरहित नहीं है। इसमें असंख्य त्रुटियां हैं। मूलत: वहां की चुनाव प्रक्रिया केंद्र के बजाय राज्य के नियंत्रण में होती है। राज्य प्रशासन अपने-अपने राज्यों में चुनाव कराता है। तरीका ये है कि वोटर केंद्र में जाएं और खुद की पहचान साबित करें। ड्राइविंग लाइसेंस, आवासीय पता, लाइट बिल पर भी वोटिंग की जा सकती है। धोखाधड़ी पर कार्रवाई हो सकती है। इसलिए विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी चुनाव त्रुटिपूर्ण है और इसमें धोखाधड़ी की संभावना है। प्रे. ट्रंप जैसे लोग इस वजह से लाभान्वित होते हैं। भारत में तो इस मामले को लेकर काफी भ्रम की स्थिति है। जब मतपत्रिका का ैचलन था तो बूथों पर कब्जा हो जाता था। अब ईवीएम हैक करने, वोटर लिस्ट में फर्जी नाम डालने का खेल चल रहा है। यदि किसी बूथ पर २३८ पंजीकृत मतदाता हैं, तो वहां ३१५ वगैरह मतदान होता है। चुनाव आयोग के पास इन बढ़े वोटरों का कोई हिसाब-किताब नहीं है। मतदाता सूची में फर्जी नाम डालकर उनसे वोट लिया जाता है। बाजार में नकली और डुप्लीकेट चुनाव पहचान पत्र उपलब्ध हैं। इसलिए भारत का चुनाव माने गड़बड़झाला है। यदि अमेरिका भारतीय चुनाव प्रणाली को आदर्श आदि मानता है तो प्रे. ट्रंप शायद मूर्खों के स्वर्ग में बैठे हैं। अमेरिका के पास भारत की तरह आधार या वोटर आईडी नहीं है। वहां ‘सब घोड़े बारा टका’ जैसा ही कारभार है। अमेरिका की आबादी ३०-३२ करोड़ है, लेकिन आधी आबादी यानी १६ करोड़ लोगों के पास अपना पासपोर्ट नहीं है। जन्म प्रमाणपत्र में भी घोटाले हैं। आधे से अधिक महिलाओं के जन्म प्रमाणपत्र में उनके पति का नाम जोड़ा गया है। ऐसे में ये जन्म प्रमाणपत्र मतदान के लिए मान्य नहीं होंगे। ट्रंप मौजूदा चुनावी प्रणाली पर शंका कर रहे हैं, लेकिन वे तीन बार इसी चुनावी प्रक्रिया से गुजर चुके हैं और दो
चुनाव जीतकर
वे राष्ट्रपति बने। फिर भी ट्रंप को चुनावी सुधारों की आवश्यकता है उन विपक्षी वोट बैंकों को खत्म करने के लिए। ट्रंप ने कहा कि जो राज्य इन सुधारों को लागू नहीं करेंगे उनकी केंद्रीय निधि रोक दी जाएगी। यह दादागीरी है और इस मामले में वे अपने मोदी से मिलते-जुलते हैं। ट्रंप चुनाव सुधार आदेश जारी कर रहे हैं, लेकिन वे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में टिक नहीं पाएंगे। अमेरिका का सुप्रीम कोर्ट भारत के सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार के अधीन नहीं है। सरकार को जो चाहिए, वही करना होगा, ऐसी प्रवृत्ति के वहां के न्यायाधीश नहीं हैं। वहां चंद्रचूड़, यशवंत वर्मा, अरुण तिवारी नहीं हैं इसलिए चुनाव सुधार के नाम पर शुरू की गई ट्रंप की मनमानी नहीं चलेगी। ट्रंप के कार्यकारी आदेशों को निश्चित रूप से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी और ट्रंप और उनके लोगों को तमाचा लगेगा। संसदीय लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित होना और फिर तानाशाही का नाखून बाहर निकालना, मोदी से लेकर प्रे. ट्रंप तक हर कोई ऐसा करता है। लोकतंत्र का संरक्षक होने का दावा करने वाले देश में इस तरह के मामले बढ़ते जा रहे हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका दुनिया का सबसे मजबूत लोकतंत्र है, लेकिन दोनों के लोकतंत्र के बांस खोखले हैं, ये बार-बार साबित हो रहे हैं। अमेरिका के प्रे. ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री मोदी को लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कोई आस्था नहीं है। भारत जैसे देश में मोदी और उनकी पार्टी को सिर्फ एक ही पार्टी रखनी है। इसलिए ‘एक चुनाव एक ही पार्टी’ यह उनका अंतिम ध्येय है। अमेरिका में जिस तरह ट्रंप अश्वेतों, लैटिनो, अप्रवासियों को मताधिकार से वंचित करने की कोशिश कर रहे हैं, उसी तरह भारत में अन्य धर्मियों के नाम मतदाता सूची से हटाकर चुनाव ल़ड़ाया जाएगा और इसे ‘चुनावी सुधार’ का प्यारा नाम दिया जाएगा। प्रे. ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी के कदम उसी दिशा में बढ़ रहे हैं।

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