-प्रोजेक्ट के लिए एमएमआरडीए से मिलता है समय
-शिवड़ी-वर्ली कनेक्टर में दिख रही सुस्ती!
-दिसंबर में पूरा होने के नहीं दिख रहे आसार
ब्रिजेश पाठक
एमएमआरडीए का काम है कि वह शहर में ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त करे, लेकिन इसके कई प्रोजेक्ट निर्धारित समय पर पूरे नहीं हुए हैं। प्रोजेक्ट की डेडलाइन खिसकने के बाद लागत में भी बढ़ोतरी होती है। ४.५ किलोमीटर लंबा और १७ मीटर चौड़ा शिवड़ी-वर्ली कनेक्टर रोड, जो वर्तमान में निर्माणाधीन है, शिवड़ीr रेलवे स्टेशन के पूर्वी ओर स्थित एमटीएचएल शिवड़ी इंटरचेंज वर्ली को पश्चिमी ओर नारायण हार्डिकर रोड से जोड़ेगा। गौरतलब है कि इसकी डेडलाइन जनवरी २०२४ रखी गई थी, जो अब बढ़ाकर दिसंबर २०२५ कर दी गई है।
शिवड़ी-वर्ली एलिवेटेड कनेक्टर ४.५ किलोमीटर लंबा है। ४-लेन का यह एलिवेटेड कॉरिडोर अटल सेतु को सीधे बांद्रा-वर्ली सी-लिंक और मुंबई कोस्टल रोड परियोजना से जोड़ेगा, जिससे शहर में ट्रैफिक जाम को कम किया जा सकेगा। नई मुंबई से दक्षिण मुंबई तथा पश्चिमी उपनगरों की ओर जाने वाले यात्रियों को सिग्नल-फ्री समय की बचत करने वाला मार्ग मिलेगा। इसके जरिए बांद्रा-वर्ली सी लिंक और मुंबई कोस्टल रोड से अटल सेतु पर लगभग १५-२० प्रतिशत अतिरिक्त यातायात बढ़ने की उम्मीद है, जिससे अटल सेतु के टोल राजस्व में वृद्धि होगी। लेकिन मार्च का आधा महीना बीत जाने पर भी इस कनेक्टर का कार्य केवल ६० प्रतिशत ही पूरा हुआ है। इसमें रेलवे पटरियों के ऊपर ३,००० मीट्रिक टन वजनी स्टील सुपर-स्ट्रक्चर को असेंबल और स्थापित करना, साथ ही यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना मुख्य चुनौती है। मुख्य कार्य अभी बाकी है, जिससे विशेषज्ञ अंदाजा लगा रहे हैं कि एमएमआरडीए दिसंबर २०२५ की डेडलाइन भी चूक जाएगी। मूल रूप से १,०५१.८६ करोड़ रुपए की अनुमानित लागत पर, इस कनेक्टर का कार्य जनवरी २०२१ में शुरू हुआ था, जिसके पूरा होने की तिथि जनवरी २०२४ थी, जो डेडलाइन पहले ही मिस हो गई है।
अधिवेशन के कारण नहीं दे सकती जानकारी
अधिवेशन के कारण किसी भी प्रोजेक्ट की कोई जानकारी मैं साझा नहीं कर सकती।
-स्वाति लोखंडे, जनसंपर्क अधिकारी, एमएमआरडीए
प्रोजेक्ट में देरी से नागरिकों को होती है असुविधा
शिवड़ी-वर्ली कनेक्टर जैसी महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में देरी से न केवल लागत बढ़ती है, बल्कि नागरिकों को भी असुविधा होती है। सरकार को इस तरह की परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए। मेरी आरटीआई के बाद काम को गति मिली थी। परियोजना की प्रगति की नियमित समीक्षा की जानी चाहिए। एमएमआरडीए जैसी एजेंसियों को सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट प्रकाशित करने का निर्देश दिया जाना चाहिए ताकि पारदर्शिता बनी रहे। अगर कोई ठेकेदार या विभाग जानबूझकर देरी करता है तो उन पर दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।
-अनिल गलगली, आरटीआई कार्यकर्ता