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प्रोजेक्ट पड़ताल : मुंबई की दूसरी लाइफलाइन पर भी संकट! …बसों की कमी से जूझ रहा है बेस्ट प्रशासन

बस के इंतजार में घंटों कतार में खड़े रहते हैं यात्री
ब्रिजेश पाठक
लोकल ट्रेन शहर की जहांं पहली लाइफलाइन मानी जाती है, वहीं दूसरी लाइफलाइन बेस्ट की बसें हैं। अगर ये दोनों ठप पड़ जाएं तो मुंबई थम सी जाती है। बेस्ट पर पिछले कुछ वर्षों से संकट मंडरा रहा है। पहली समस्या यह है कि बेस्ट की खुद की बसें जो वर्ष २०११ तक ४ हजार से अधिक थीं, वह अब मात्र ८१७ रह गई हैं। इससे यात्रियों को स्टॉपों पर बसों का अधिक समय तक इंतजार करना पड़ रहा है। दूसरी समस्या यह है कि वेट लीज वाली बसों के चालकों को १५ से २० हजार रुपए ही मासिक वेतन दिया जाता है। वहीं बेस्ट चालकों को ३० से ३५ हजार रुपए के बीच वेतन मिलता है। तीसरी समस्या यह है कि कुछ चालकों में प्रशिक्षण की कमी है, जिसका गवाह कुर्ला में हुआ हादसा है।
२००९ में बेस्ट के पास ४,०३७ बसें थीं, जो २०११ में बढ़कर ४,७०० हो गर्इं थीं, लेकिन २०१४ में घटकर ४,२८८ रह गर्इं। एक दशक से अधिक समय के बाद अब लगभग २,८२१ बसों तक ही सिमट गई है, जिसमें से २००४ वेट लीज वाली बसें भी शामिल हैं। बेस्ट के एक सूत्र ने बताया कि बेस्ट को पुन: जीवित करने के लिए जरूरी है कि बेस्ट के पास अपनी खुद की बसों में बढ़ोतरी हो, क्योंकि इससे संचालन में लचीलापन बना रहेगा। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए जब लगभग दो दशक पहले मुंबई में बाढ़ आई थी, तब बेस्ट ने बिना प्रभावित डिपो से बसें और स्टाफ भेजकर सेवा प्रदान की थी। मौजूदा वेट लीज संचालन प्रणाली के चलते एक दिन ऐसा समय आएगा, जब बेस्ट के पास न तो अपनी बसें बचेंगी और न ही ड्राइवर-कंडक्टर और निजी कंपनियां सड़कों पर राज करेंगी, जिससे बस संचालन में लचीलापन खत्म हो जाएगा।
बेस्ट प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, २०१३-१४ में बसों की औसत गति १२ किमी प्रति घंटा थी, जो २०२३-२४ में घटकर १० किमी प्रति घंटा रह गई। प्रत्येक बस औसतन रोजाना १६ घंटे संचालन में रहती है। इस दौरान २०२३-२४ में एक बस के लिए निर्धारित दूरी १९७.२ किमी थी, लेकिन वह केवल १६१.१ किमी ही कवर कर पाई। २०१३-१४ में यह निर्धारित दूरी २०६.९ किमी थी, जबकि बसें १८६.२ किमी तक चलती थीं। बेस्ट अधिकारियों का कहना है कि गति में गिरावट का मुख्य कारण ट्रैफिक का जाम होना है और राजमार्गों (हाईवे) पर तो बसों की रफ्तार और भी धीमी हो जाती है। सड़कों पर कम बस होने की वजह से यात्रियों को घंटों तक बस स्टॉप पर इंतजार करना पड़ता है।

कॉलेज पहुंचने में होती है देरी
मैं दिंडोशी डिपो से बोरीवली जाने के लिए रोज बेस्ट बस पकड़ता हूं। बसें कई बार समय पर नहीं चलती हैं, जिससे कॉलेज पहुंचने में देरी होती है।
फातिमा शेख, यात्री

बसों की कमी से परेशानी
बेस्ट बस मुंबई की दूसरी लाइफलाइन है। इसे जल्द से जल्द ट्रैक पर लाना होगा। बस की कमी के कारण मुझे गोरेगांव स्टेशन के बस स्टॉप पर घंटों कतार में खड़ा रहना पड़ता है।
आदर्श उपाध्याय, यात्री

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