लोकमित्र गौतम
युद्ध, अशांति और इलेक्शन
अगर इतिहास बनने की तरफ अग्रसर साल २०२४ के वैश्विक परिदृश्य पर एक नजर डालें, तो यह साल कई सिहरा देने वाली पराकाष्ठाओं का साल रहा। एक तरफ जहां यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अब तक का सबसे ज्यादा युद्धक और अशांति का साल रहा, वहीं इस साल दुनिया के जितने देशों में चुनाव हुए, पिछले १०० सालों में उतने देशों में चुनाव किसी एक साल में कभी नहीं हुए। भारत, रूस, अमेरिका से लेकर पाकिस्तान, श्रीलंका, ब्रिटेन और प्रâांस सहित इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस साल ७१ देशों में चुनाव हो चुके हैं और जब इस साल का वैâलेंडर बदलेगा, तब तक इसके खाते में ७६ देशों में चुनाव संपन्न हो चुके होंगे। दुनिया की ६० फीसदी से ज्यादा आबादी इस साल चुनावों से होकर गुजरी है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ ही, सबसे ताकतवर लोकतंत्र अमेरिका और जिसे मदर ऑफ डेमाक्रेसी कहा जाता है, उस ब्रिटेन में भी इसी साल चुनाव हुए हैं। दूसरी तरफ अगर अशांति की अति देखें तो इस साल ५६ देश सीधे-सीधे युद्ध में भिड़े हुए हैं, जबकि अगर इन युद्धों के साथ अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े देशों को भी जोड़ लिया जाए तो इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस के जारी आंकड़ों के मुताबिक युद्ध से जुड़े देशों की संख्या बढ़कर ९२ हो जाती है। ग्लोबल पीस इंडेक्स के मुताबिक इस साल दुनिया के १६३ देशों में से ९७ देश अशांति के दलदल में फंसे हुए हैं। पिछले लगभग ८० सालों में यानी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी भी एक साल में इतने लोग युद्धक हिंसा और भूख में नहीं मरे, जितने २०२४ में मरे हैं। जनवरी से दिसंबर की शुरुआत तक साल २०२४ में २ लाख ३० हजार से ज्यादा लोगों की सीधे युद्धक संघर्ष में मौत हो चुकी थी और ४ लाख से ज्यादा लोग गंभीर रूप से अपाहिज हो चुके थे।
दस करोड़ विस्थापित
साल २०२४ का वैश्विक परिदृश्य एक डरावने सपने जैसा है। पूरी दुनिया में छायी अशांति के कारण अकेले इस साल विश्व अर्थव्यवस्था को १९.१ ट्रिलियन का नुकसान हो चुका है। अगर भारत की मौजूदा कुल जीडीपी को ४ ट्रिलियन भी मान लें तो इसका मतलब है कि इस साल में अब तक जारी युद्धों के कारण ५ भारत जैसे देश पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं। इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस के मुताबिक इस साल अभी तक जारी युद्धों के कारण अब तक दुनिया के कुल जीडीपी का करीब १३.५ फीसदी खत्म हो चुका है, जो रुपए में करीब १,६१२ लाख करोड़ रुपए बनते हैं। इसे अगर दुनियाभर के हर व्यक्ति के हिस्से डाल दिया जाए तो २०२४ में करीब १,९१,००० रुपए का नुकसान हर व्यक्ति को हुआ है। यूक्रेन, गाजा और अफगानिस्तान जैसे देशों की तो ६० फीसदी से ज्यादा जीडीपी इन युद्धों में ध्वस्त हो चुकी है। पूरी दुनिया में इस साल दिसंबर तक ९.५ करोड़ लोग या तो अपना देश छोड़कर कहीं दूसरी जगह रह रहे थे या अपने ही देश में अपने घर से विस्थापित थे। साल २०२४ हिंसक पैमाने पर इतना भयावह साल साबित हुआ है जैसे अगर ये हकीकत न होती तो विश्व स्तर पर ऐसे साल की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
सिर्फ मौत!
७ अक्टूबर २०२३ को हमास के सैकड़ों आतंकवादियों ने दक्षिणी इजरायल पर आत्मघाती हमला बोलकर १२०० लोगों की हत्या कर दी थी और २५० लोगों को बंधक बना लिया। मरने और बंधक बनने वालों में २०० से ज्यादा बच्चे भी थे। इस हमले का बदला लेने के लिए इजरायल ने गाजा पर जो भयावह बमबारी करते हुए मारकाट मचायी है, उसके तहत दिसंबर २०२४ के शुरुआत तक ४५,००० से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी, जिसमें ७,००० से ज्यादा मासूम बच्चे थे। साल २०२४ खून खराबे के लिहाज से कितना हृदयविदारक रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि २४ फरवरी २०२२ को शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध में अब तक ८०,००० से ज्यादा तो अकेले रूसी सैनिकों की मौत की पुष्टि हुई है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह मारकाट वास्तव में कितनी भयावह होगी। साल २०२४ बाकी सालों की तरह और भी बहुत सारी डरावनी घटनाओं का भी शिकार रहा है, लेकिन युद्ध और आतंक की घटनाएं इस कदर हावी रही हैं कि बाकी घटनाएं महत्वपूर्ण ही नहीं लगती। मसलन जिस तरह पिछले पांच दशकों से सीरिया में आतंक और दमन का शासन कायम था, उससे सीरिया के लोगों को अंतत: इस साल ७ दिसंबर को बशर-अल-असद के तख्ता पलट के साथ मुक्ति मिल गई। यूं तो पिछले २४ सालों से ही यानी जब से बशर-अल-असद ने अपने क्रूर पिता हाफिज-अल-असद के २९ सालों तक खूनी शासन के बाद सत्ता संभाली थी, तभी से असद के विरुद्ध विद्रोहियों का विरोध जारी था, लेकिन निर्णायक रूप से इस बार जब विद्रोही गुट हयात-तहरीर-अल-साम (एचटीएस) ने २७ नवंबर को नए सिरे से जंग छेड़ी, तो पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि सीरिया की सत्ता भरभराकर ढह गई।
इस तरह ५३ सालों से बाप- बेटे के क्रूर शासन का अंत हो गया। बशर-अल-असद को भागकर रूस में शरण लेनी पड़ी।
लोकतंत्र-अर्थतंत्र चरमराया
यह साल एक तरफ चुनावों के लिए चैंपियन साल रहा, वहीं साल के जाते-जाते ३ दिसंबर २०२४ को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल ने मार्शल लॉ लगा दिया। लेकिन अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संवेदनशील कोरियाई नागरिक और वहां की विभिन्न पार्टियों के राजनेता सारे आपसी मतभेद भुलाकर राष्ट्रपति योल के खिलाफ गोलबंद हो गए और अब उन पर महाभियोग चलाए जाने की तैयारी है। साल २०२४ भारत के पड़ोस में भी खासकर बांग्लादेश के लिए भी दुहस्वप्न जैसा रहा। ५ अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद को ढाका से भागकर दिल्ली आना पड़ा। दूसरी तरफ पाकिस्तान में चुनाव तो हुए लेकिन उन पर शायद ही कोई यकीन कर रहा हो। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान कई कोशिशों के बावजूद जेल से बाहर नहीं आ सके तो श्रीलंका में चुनाव शांतिपूर्ण निपट गए। इस साल एक तरफ जहां दुनिया युद्ध और हिंसा से लहूलुहान रही, वहीं दूसरी तरफ विश्व अर्थव्यवस्था का भी पूरे साल बुरा हाल रहा। आईएमएफ ने युद्ध और उपद्रव से ग्रस्त दुनिया में ३.२ फीसदी सालाना विकास दर का अनुमान लगाया था, लेकिन यह भी अंतत: हासिल नहीं होती दिख रही। अगर इस साल हुए वैश्विक व्यापार को युद्ध और आतंक की त्रासदी नहीं झेलनी पड़ती तो विश्व व्यापार के बढ़कर ४० ट्रिलियन तक पहुंच जाने की उम्मीद थी, लेकिन यह ३३ ट्रिलियन तक ही रहा। हालांकि यह भी एक बहुत बड़ी व्यापार राशि है।
धरती की चिंता नहीं
जब १८-१९ नवंबर २०२४ को जी-२० शिखर सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जेनरो के आधुनिक कला संग्रहालय में संपन्न हुआ, उस समय दुनिया के शीर्ष देशों के शासनाध्यक्षों का यही कहना था कि अगर एक न्यायपूर्ण और सतत विश्व का निर्माण नहीं हो सका तो दुनिया के अस्तित्व पर बादल मंडराने लगे हैं। लेकिन दुनिया के बड़े नेता मिल-बैठकर बातें कितनी भी बड़ी-बड़ी कर लें, मगर किसी सकारात्मक नतीजे तक मुश्किल से भी नहीं पहुंचते, जिसका नतीजा है लगातार दुनिया का बिगड़ता पर्यावरण। पिछली तीन जलवायु परिवर्तन संबंधी बैठकों में इस बात पर सहमति बन रही है कि जिन विकसित देशों ने अपने विकास के लिए अंधाधुंध कार्बन उत्सर्जन किया है, उन्हें दुनिया के प्रदूषण मुक्त करने के लिए आर्थिक सहायता लेनी होगी, लेकिन सैद्धांतिक रूप से राजी होने के बाद भी ऐसा नहीं हो रहा और धरती की सेहत बद से बदतर ही होती जा रही है।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)