लोकमित्र गौतम
देश के १४वें प्रधानमंत्री और भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारवाद के जनक डॉ. मनमोहन सिंह को पूरी दुनिया भारत में आर्थिक सुधारों के लिए जानती है। अगर आप एक हजार लोगों से उनकी किसी एक खासियत को बताने के लिए कहें तो एक हजार में से एक हजार लोग यही कहेंगे कि उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया के लिए खोला और साहसिक आर्थिक सुधार किए। लेकिन कल्पना करिये अगर डॉ. मनमोहन सिंह ने नरसिम्हा राव के वित्तमंत्री के रूप में, आर्थिक सुधारों का दुस्साहस न किया होता, तो क्या तब भी उन्हें इतिहास में हमेशा याद करने की वजह होती? इस सवाल का जवाब है, जी हां होती। एक नहीं बल्कि कई वजहें होतीं। यह कहना किसी मुहावरे की बात नहीं है कि डॉ. मनमोहन सिंह ऐसी पारस मणि थे कि वह जिस लोहे को भी छूते थे, वह सोने में बदल जाता था। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि अगर देश के चौथे सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले डॉ.मनमोहन सिंह न वित्तमंत्री होते, न प्रधानमंत्री होते, तो भी वह भारत के इतिहास में और विश्व के आर्थिक इतिहास में अमर रहते, क्योंकि डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री होने के पहले ही अन्य पदों पर रहते हुए भी भारतीय अर्थव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने वाले काम किए थे।
ग्रामीण भारत की चिंता
शायद बहुत कम लोगों को पता हो कि ये डॉ. मनमोहन सिंह ही थे, जिन्होंने भारत में संपन्न हुई हरित क्रांति का आर्थिक मॉडल तैयार किया था। हरित क्रांति को मजबूती और निरंतरता देने के लिए उनकी सलाह पर ही कृषि में निवेश और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की नीति को लागू किया गया था, जिससे किसानों को हरित क्रांति को दिन दूनी रात चौगुनी सफल बनाने के लिए एमएसपी का इंसेंटिव हासिल हुआ। ये डॉ. मनमोहन सिंह ही थे, जिन्होंने भारत की पांचवीं पंचवर्षीय योजना को (१९७४-१९७९) को आकार देते हुए इसे औद्योगिक और निर्यात केंद्रित बनाया। भारत की विदेशी मुद्रा नीति को स्थिर बनाने और आयात-निर्यात में संतुलन बनाने के लिए डॉ.मनमोहन सिंह ने ही ठोस नीतियां निर्मित कीं और १९८२ से १९८५ तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में उन्होंने जो व्यवहारिक और प्रभावशाली काम किए, उसमें भी अनेक इतिहास बदल देने वाली उपलब्धियां रही हैं। मसलन भारत में ग्रामीण बैंकों का विस्तार उन्हीं के आरबीआई गवर्नर रहते हुए हुआ और उन्हीं के कार्यकाल में ग्रामीण क्षेत्रों को कर्ज और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराये जाने पर सजगता और प्राथमिकता के दायरे में लाया गया।
ये डॉ. मनमोहन सिंह ही थे जो आरबीआई के गवर्नर रहते हुए कृषि और छोटे उद्योगों के लिए सस्ती ब्याज दरों पर कर्ज उपलब्ध कराए जाने की नीतियां लागू कीं। उन्हीं के आरबीआई का गर्वनर रहते हुए भारतीय निर्यात-आयात बैंक (एग्जिम बैंक) की स्थापना हुई, जिसने भारत के निर्यातकों को वित्तीय सहायता देकर देश के वैश्विक व्यापार को बढ़ाने में अभूतपूर्व योगदान दिया। डॉ. मनमोहन सिंह के रहते हुए ही देश में सुरक्षित और मजबूत बैंकिंग प्रणाली सुनिश्चित हुई, उनके द्वारा बनाए गए नीतिगत ढांचे ने बैंकों को जवाबदेह और अपने काम में दक्ष बनाया। आरबीआई के गर्वनर रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंह ने स्वर्ण मुद्रीकरण योजना यानी गोल्ड मोनेटाइजेशन की शुरुआत की और इस तरह विदेशी मुद्रा भंडार बुनियादी रूप से मजबूत होने लगा, जो आज भारत को दुनिया के अग्रिम पंक्ति के विदेशी मुद्रा संपन्न देशों में खड़ा करता है।
दुनिया सुनती है
डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए सुधारों की जो लंबी लकीर खींची, उसका तो कोई सानी ही नहीं है। उसका प्रभाव सिर्फ भारत की ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था में पड़ा है, इसीलिए अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की बहुत इज्जत करते थे। अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में दुनिया के सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल को अंजाम देने वाले डॉ. मनमोहन सिंह के बारे में ओबामा बार-बार एक बात कहते थे कि जब डॉ. मनमोहन सिंह बोलते हैं तो पूरी दुनिया सुनती है। लेकिन हम उनके प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री रहने के अलावा भी भारतीय अर्थव्यवस्था में किए गए ऐतिहासिक योगदानों की अनदेखी नहीं कर सकते, बल्कि हकीकत तो यह है कि वित्त मंत्री या प्रधानमंत्री होने के पहले ही उन्होंने अपने सुधारों की अप्रत्यक्ष धारा बहा दी थी। योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहते हुए साल १९८५-८७ में उन्होंने सही मायनों में भारतीय अर्थव्यस्था को उदारीकरण और वैश्वीकरण की ओर ले जाने की नींव रखी थी। इसी दौरान उन्होंने निर्यात को बढ़ावा देने और औद्योगिक विकास को प्राथमिकता देने का लक्ष्य भारतीय अर्थव्यवस्था के कोर में शामिल किया था।
वैश्विक पहचान
आज विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष भारत को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण देशों में गिनता है और भारत की साख को बहुत महत्व देता है। लेकिन यह ऐसा न होता, अगर डॉ. मनमोहन सिंह ने इसके लिए वित्तमंत्री या प्रधानमंत्री रहने के बहुत पहले ही योजना आयोग के उपाध्यक्ष के तौरपर आईएमएफ और विश्व बैंक से भारत के मजबूत रिश्तों की नींव न रखी होती। यही नहीं उन्होंने आयोग के प्रमुख रहते हुए विकासशील देशों के बीच जो आर्थिक सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा दिया, उससे न सिर्फ भारत को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली, बल्कि भारत को भारतीय नेतृत्व की भी विश्व स्तर पर सरहाना हुई। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के अर्थशास्त्री और शिक्षाविद थे, उन्होंने वैâम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की थी और यहां रहते हुए एक छात्र के रूप में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया था।
डॉक्टरेट के लिए लिखा गया उनका शोध प्रबंध ‘इंडियाज एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पैक्ट फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ’ में वास्तव में वही सब कहा और लिखा गया है, बाद में जिसे उन्होंने व्यावहारिक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था में आजमाया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राजनीतिक इतिहास की दुर्लभ शख्सियतों में एक हैं। उन्हें नेहरू, सरदार पटेल, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी बाजपेयी की पंक्ति में रखा जाएगा। उन्होंने ढाई से तीन फीसदी वाली भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी ग्रोथ रेट को दुनिया की सबसे तेज विकास करने वाली अर्थव्यवस्था में तब्दील कर दिया। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे चमकदार अर्थव्यवस्था की राह में तब डाला, जब भारत के पास सिर्फ दो महीने के आयात बिलों को भुगतान करने के लायक ही विदेशी मुद्रा बची थी। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह एक तरफ जहां इस कदर उदारवादी और आर्थिक सुधारों के पुरोधा थे, वहीं ये डॉ. मनमोहन सिंह ही थे, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की कुछ सबसे बुनियादी स्टेट वेलफेयर की नीतियां शुरु कीं। उन्हीं के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत सरकार ने न सिर्फ रोजगार गारंटी योजना शुरू की, फूड सिक्योरिटी जैसी नीति लेकर आई बल्कि उन्हीं के कार्यकाल में भारतीय नागरिकों की स्थायी और पुख्ता पहचान के लिए आधार कार्ड बनाये जाने की शुरुआत हुई। यही नहीं भारतीय लोकतंत्र को जवाबदेह बनाने के लिए उन्होंने आरटीआई (राइट टू इंफोर्मेशन) बिल को कानून का जामा पहनाया। डॉ. मनमोहन सिंह देश के उन गिने-चुने राजनेताओं में से हैं, जिनको इतिहास की कोई भी साजिश कभी भी नहीं भुलवा सकती।
ताकतवर आवाज
डॉ. मनमोहन सिंह विश्व के एक ख्याति प्राप्त अर्थशास्त्री, दूरदर्शी राजनेता के साथ-साथ महान शिक्षाविद भी रहे हैं। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उन्होंने जिन छात्रों को इकोनॉमिक्स पढ़ाया है, उनमें से कई बाद में विश्व की महत्वपूर्ण शख्सियतों में शामिल हुए। डॉ.मनमोहन सिंह वैश्विक आर्थिक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हमें विकासशील देशों की महत्वपूर्ण आवाज तो बनाया ही, साथ में उनकी इस ताकतवर आवाज के कारण विकसित देश भी हमारी बातें ध्यान से सुनने के लिए तैयार हुए। डॉ. मनमोहन सिंह सचमुच २०वीं सदी के उत्तरार्द्ध और २१वीं सदी के पूर्वार्द्ध की एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनका वजूद भारत को भारत बनाने में शामिल है।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)