लोकमित्र गौतम
दगाबाजी की इंतिहां!
बांग्लादेश बनने के बाद तत्कालीन बांग्ला सरकार द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, १९७१ में पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट के चलते करीब ३० लाख बांग्लादेशियों की हत्या की थी, २ से ४ लाख बांग्लादेशी महिलाओं के साथ बलात्कार किया था, जबकि लगभग एक करोड़ बांग्लादेशी पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों से भागकर भारत में बंगाल, असम और त्रिपुरा में शरण ली थी। बांग्ला सरकार की इस रिपोर्ट में बीबीसी रिपोर्टर एंथनी मैस्कारेनहास की रिपोर्टों, गैरी जे.बास की किताब ‘द ब्लड टेलीग्राम’ और संयुक्त राष्ट्र द्वारा बांग्लादेश पर तैयार की गई रिपोर्ट से तथ्य लिए गए थे। संक्षेप में १९७१ में पाकिस्तान ने अपने ही एक हिस्से पूर्वी पाकिस्तान पर ऐसे अमानवीय अत्याचार किए थे, जिनको सिर्फ पढ़कर ही रूह कांप जाती है। क्या इतिहास के इन क्रूर अत्याचारों के बाद भी कोई देश महज ५० सालों में यह सब भूलकर फिर उसी अत्याचारी से गलबहियां डाल सकता है? क्या उसी के साथ मिलकर भारत के साथ षड्यंत्र करने की सोच सकता है, जिस भारत ने न सिर्फ उसको अत्याचारी पाकिस्तान से मुक्ति दिलाई थी, बल्कि इसके लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था? लेकिन दगाबाजी की कोई इंतहां नहीं होती। जिस बांग्लादेश को भारत ने बच्चे की तरह खड़ा किया था, वही बांग्लादेश शेख हसीना के इस्तीफे और बांग्लादेश छोड़ने के महज तीन हफ्तों में ही पाकिस्तान को न सिर्फ अपना माई-बाप मानने का संदेश दे रहा है, बल्कि उसके साथ भारत के विरुद्ध खतरनाक षड्यंत्र करने से भी बाज नहीं आ रहा।
शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ते ही बांग्लादेश की केयर टेकर सरकार ने पाकिस्तान से ४० हजार राउंड गोला-बारूद और ४० टन के २,९०० आरडीएक्स खरीद करके पाकिस्तान के साथ जो सैन्य हथियारों के लेन-देन का सिलसिला शुरू किया है, वह यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि बांग्लादेश पाकिस्तान से जेएफ-१७ फाइटर जेट्स भी खरीद रहा है, जो नाम का तो पाकिस्तान का है, मगर असलियत में भारत को चारों तरफ से घेरने के लिए चीन ने पाकिस्तान को दिया है। बांग्लादेश ६ बैरेक्टर टीवी-२ ड्रोन भी हासिल किए हैं, जिनमें से दो ड्रोन तो तुरंत और कुछ ही दिनों के भीतर बाकी सभी ड्रोन भी भारत की सीमा पर तैनात कर दिए गए हैं। लेकिन लगता है कि ये सब अभी कुछ था इसलिए पिछले ५० सालों में पहली बार बांग्लादेश में जिन्ना की ७६वीं सालगिराह मनायी गई और नया साल शुरू होने के बाद इसी सप्ताह पिछले ५४ साल में पहली बार २३ जनवरी २०२५ को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ असीम मलिक बांग्लादेश पहुंचे।
यूनुस ही करेंगे बर्बाद
ध्यान रहे १९७१ की जंग के बाद पहली बार पाकिस्तान का कोई आईएसआई चीफ ढाका पहुंचा है, लेकिन असीम मलिक अचानक बांग्लादेश नहीं पहुंच गए, बल्कि उसके पहले पाकिस्तान के रावलपिंडी में १४ जनवरी २०२५ को बांग्लादेशी आर्मी के नंबर २ लेफ्टिनेंट जनरल एसएम कमरुल हसन और पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर के बीच बैठक हुई थी। सवाल है आखिर बांग्लादेश चाहता क्या है? क्योंकि ठीक उसी समय जब बांग्लादेश पाकिस्तान से गोला-बारूद खरीद रहा था, ठीक उसी समय बांग्लादेश ने भारत से ६० हजार टन चावल तुरंत और २ लाख टन कुछ दिनों के भीतर देने के लिए आग्रह किया। यही नहीं बांग्लादेश ने भारत से कपास, गेहूं, मसालों आदि की आपूर्ति के लिए भी रिक्वेस्ट किया है और २८ दिसंबर २०२४ को भारत ने बांग्लादेश की रिक्वेस्ट के बाद २६ हजार टन चावल की पहली खेप पहुंचा भी दी है। सवाल है बांग्लादेश हमसे तो भात मांग रहा है और पाकिस्तान से गोला-बारूद ले रहा है, आखिर इसकी मंशा क्या है? क्या बांग्लादेशी की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस ने हर हाल में तय कर लिया है कि बांग्लादेश को भी पाकिस्तान की तरह बर्बाद करके छोड़ना है? और फिर क्या ये दोनो बर्बाद देश मिलकर भारत को बर्बाद करने के मंसूबे बना रहे हैं । हमें नहीं भूलना चाहिए कि गुजरी ३० जनवरी २०२४ को आईएसआई के जो चार सीनियर आईएसआई अधिकारी बांग्लादेश के रंगपुर दौरे पर गए, उनमें आईएसआई चीफ असीम मलिक, मेजर जनरल शाहिद अमीर, मेजर जनरल आलम अमीर अवान और मोहम्मद उस्मान लतीफ शामिल थे। ये सब रंगपुर के उस इलाके तक पहुंचे, जहां से भारत का संवेदनशील सिलीगुड़ी कॉरिडोर या जिसे लोग ‘चिकन नेक’ के रूप में भी जानते हैं, वहां से सिर्फ १० किलोमीटर बचता है।
गौरतलब है कि असम में सिलीगुड़ी कॉरिडोर भौगोलिक रूप से ऐसी संवदेनशील जगह है, जहां से भारत एक तरफ नेपाल, दूसरी तरफ से बांग्लादेश, तीसरी तरफ से भूटान और भूटान की तरफ से ही चीन से भी घिरा हुआ है। यह इतना खतरनाक कॉरिडोर है कि यह महज २२ किलोमीटर चौड़े इस पर अगर कोई विदेशी कब्जा कर ले तो भारत का समूचे पूर्वोत्तर से संपर्क कट जाता है। बांग्लादेश को इस ‘चिकन नेक’ की संवेदनशीलता का अंदाजा है, इसके बावजूद जिस तरह से बांग्लादेश ने चार-चार आईएसआई अधिकारियों को रंगपुर का दौरा कराया है, वह दौरा दरअसल भारत की इसी संवदेनशील कमजोरी पर चोट करने के इरादे से कराया गया है। बांग्लादेश अच्छी तरह से जानता है कि यह ‘चिकन नेक’ सिर्फ २२ किलोमीटर चौड़ा है। भारत से जो कुछ भी पूर्वोत्तर जाता है, इसी रास्ते से जाता है और वहां से जो कुछ भी देश के भीतर आता है, इसी रास्ते से आता है।
लेकिन बांग्लादेश, इतनी संवेदनशील जगह पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के अफसरों का टूर कराकर हमें गहरी चिंता में डालने की कोशिश कर रहा है। आनेवाले दिनों में बांग्लादेश यहीं तक सीमित रहनेवाला नहीं, वह भारत के विरुद्ध इस्लामिक कट्टरपंथियों के प्रभाव में पाकिस्तान से मिलकर मोर्चाबंदी करने पर भी लगा हुआ है। पाकिस्तान के कई कूटनीतिज्ञ इस खिचड़ी को किसी भी कीमत पर आंच देकर पकाना चाहते हैं। भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित एक पाकिस्तानी टीवी चौनल से बात करते हुए कहते हैं, ‘भारत को तो मिर्ची लगनी ही है, क्योंकि बांग्लादेश के लोग पाकिस्तान को अपना मान रहे हैं और पुराने गिले-शिकवे खत्म करके दोनों पाकिस्तान और बांग्लादेश, भारत की दादागीरी को खत्म करना चाहते हैं।’ दरअसल, अपने विमान के नाम पर पाक, बांग्लादेश को जो फाइटर देगा इस की सिर्फ असेंबलिंग ही यहां हुई है और वह भी चीनी इंजीनियरों की देखरेख में। यही नहीं बांग्लादेश की आर्मी ने पाकिस्तान के साथ मिलकर न सिर्फ ट्रेनिंग का कार्यक्रम बनाया है, बल्कि पाकिस्तान के लिए दोबारा से वेस्टर्न फ्रंट खोलने की बात भी हो रही है।
कड़ी चेतावनी की जरूरत
लब्बोलुआब यह कि बांग्लादेश हर हाल में जितने नीचे गिर सकता है, वह हमें नीचा दिखाने के लिए या अप्रत्यक्ष रूप से ब्लैकमेल करने के लिए पाकिस्तान के साथ बिछ-बिछ जा रहा है। पाकिस्तान में भारत के हाई कमिश्नर रहे अजय बिसारिया का कहना है, ‘बांग्लादेश की यह हरकत भले शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद अचानक दिखी हो, लेकिन सच तो यह है कि इस्लाम के नाम पर बांग्लादेश की सेना और नौकरशाही का एक हिस्सा काफी लंबे समय से यह समीकरण बनाता रहा है।’ लेकिन शेख हसीना की वजह से उसे मौका नहीं मिल रहा था। अब क्योंकि मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार और इस समय बांग्लादेश में मजबूत हुए कट्टरपंथियों की सोच एक जैसी है इसलिए रातों-रात बांग्लादेश पाकिस्तान के लिए लाल जाजिम बिछा रहा है। अगर दोनो के बीच ऐसा ही ‘बद्ररहुड’ था तो फिर क्यों १९७१ में बांग्लादेश नाम का एक नया देश बना? हमने पिछले कई महीनों से बांग्लादेश के साथ तटस्थता और बेहद नर्मी बरतकर देख लिया है, अब हमें बांग्लादेश को समझने के लिए ज्यादा चुप रहने की जरूरत नहीं है, उसको कड़ी चेतावनी देने की जरूरत है, वर्ना बातों ही बातों में यह आत्मघाती मनबढ़ कहीं कोई ऐसी गलती न कर बैठे, जिसकी भरपायी उसे तो दशकों तक करनी ही पड़े, हमें भी दोनो को दुरुस्त करने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़े।
भारत को चाहिए कि वह बांग्लादेश से स्पष्ट बात करे और साफ-साफ कह दे कि हमसे भात और पाकिस्तान से गोला-बारूद का सौदा, यह नहीं चलने वाला।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)