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लोक विमर्श : अमरीका में ट्रंप युग शुरू…

लोकमित्र गौतम

‘अनप्रिडेक्टेबल’ ट्रंप
कल २१ जनवरी २०२५ की सुबह जब हम भारतीय सोकर जागे, तब तक अनगिनत अंदेशों के बीच अमेरिका में ट्रंप युग शुरू हो चुका था। क्योंकि गुजरी २० जनवरी २०२५ को भारतीय समय के मुताबिक, रात १० बजे अमेरिकी संसद वैâपिटल हिल में करीब ७०० विशिष्ट अतिथियों के सामने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स का डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका के ४७वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाना तय था। सवाल है कि हम भारतीयों को यह सब इतनी बारीकी से याद रखने की जरूरत क्यों है? इसका जवाब यह है कि अकेले हम भारतीय ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया दूसरी बार शुरू हो रहे इस ट्रंप युग की एक एक घड़ी का हिसाब रख रही है। क्योंकि ‘अनप्रिडेक्टेबल’ ट्रंप के शपथ लेने के साथ ही दुनिया में अनगिनत आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक अंदेशों के आकार लेने के कयास लगाए जा रहे हैं या यूं कहें कि ट्रंप ने खुद ही इन्हें हवा देख रखी है। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के पहले ही जिस तरह से ट्रंप ने कनाडा, ग्रीनलैंड, पनामा आदि को तो सीधे-सीधे खुद में मिला लेने की धमकी दी है और चीन व भारत को अप्रत्यक्ष तरीके से व्यापार के मोर्चे में देख लेने की बात कही है, उससे उनका कार्यकाल शुरू होने के पहले ही कई तरह के सवालों से घिर गया है।
हम दुनिया के बजाय अगर भारत की चिंताओं का जायजा लें और देखें कि ट्रंप के ४५वें अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के सामने किस तरह चुनौतियां दरपेश हो सकती हैं, तो बिना किसी क्षेत्र विशेष का जिक्र किए सबसे पहले तो इसी बात पर सोचना होगा कि क्या ट्रंप के इस दूसरे कार्यकाल में भारत और अमेरिका के रिश्ते उतने ही दोस्ताना और सौहार्दपूर्ण रह पाएंगे, जितने पिछले दो दशकों से लगातार बेहतर होते रहने की स्थिति में बने हुए हैं? ऐसा सोचने की मजबूरी इसलिए बन रही है, क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से एक-दूसरे को एक दूसरे का अच्छा दोस्त बताते रहे हैं, वैसा कुछ फिलहाल तो व्यवहार में नहीं दिख रहा है। उल्टे राष्ट्रपति चुने जाने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने पहले तो भारत को यह कहकर अप्रत्यक्ष रूप से धमकाने की कोशिश की कि अगर पिछले साल ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ‘ब्रिक्स करंसी’ पर शुरू हुई बात को व्यावहारिक रूप देने की कोशिश की गई, तो भारत के खिलाफ व्यापार में अमेरिका टैरिफ के ट्रंप कार्ड का इस्तेमाल करने से जरा भी नहीं हिचकिचाएगा। मतलब यह कि ट्रंप ने राष्ट्रपति चुने जाने के तुरंत बाद हमें चेतावनी दे दी है कि हम आजतक की ही तरह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमरीका की मुद्रा डॉलर को अपना माई-बाप बनाए रहें। अगर भारत ने डॉलर से मुकाबला करने की किसी रणनीति को अमल में लाने की कोशिश की तो अमेरिका भारत से इसका जबर्दस्त बदला लेगा।
राष्ट्रपति चुनाव के दौरान ट्रंप, ‘अमेरिका फर्स्ट’ पॉलिसी के तहत भारतीय पेशेवरों को एच१बी बीजा की मुश्किलें खड़ी करने की बात कह चुके हैं। उनकी इस बात को गंभीरता से लिया जाना अभी भी इसलिए जरूरी है, क्योंकि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी एच१बी बीजा के नियमों में बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत ट्रंप ने विदेशी कर्मचारियों के लिए सैलरी तो अमेरिकी कर्मचारियों के बराबर ही रखी थी, लेकिन प्रवासी कामगारों पर कई तरह की नई शर्तें थोप दी थीं। यही नहीं ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान बड़ी संख्या में एच१बी बीजा एप्लीकेशन को नकारने की रणनीति अपनाई गई थी। साथ ही बीजा प्रोसेसिंग का तय समय भी बढ़ा दिया था। इस सबका भारतीय कामगारों पर असर पड़ा था। हालांकि, अमेरिका में अब भी सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय ही हैं। यही नहीं २०२३ में जिन कुल ३,८६,००० प्रवासियों को एच१बी बीजा दिया गया, उसमें २.७९ लाख लोग भारतीय ही थे। यही नहीं अमेरिका में १६ साल और उससे ऊपर के जो ७२ फीसदी प्रवासी कामगार हैं, वो भारतीय हैं।
अवैध प्रवासियों पर गाज
इसलिए अगर बार-बार धमकी देने के बाद अब जबकि ट्रंप दोबारा से अमेरिका के राष्ट्रपति बन चुके हैं, अगर धमकियों पर अमल करते हैं तो ढाई से तीन लाख प्रवासी भारतीयों को अमेरिका में अपनी नौकरी गंवानी पड़ सकती है और ९० हजार से १ लाख १० हजार तक ऐसे भारतीयों की उम्मीदों को झटका लग सकता है, जो २०२५ में एच१बी बीजा पाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। यही नहीं ट्रंप चुनाव प्रचार के दौरान बार-बार यह बात कहते रहे हैं कि वह अमरीका में आए अवैध प्रवासियों को २० जनवरी २०२५ से निकालना शुरू कर देंगे और इस धमकी पर भी अगर वाकई अमल शुरू हुआ तो बहुत बड़ी संख्या में भारतीय ही अमेरिका से भारत की वापसी की फ्लाइट में बैठाए जाएंगे, क्योंकि २०२४ में ही अमेरिका में अवैध रूप से घुसने के आरोप में ९०,४१५ भारतीय गिरफ्तार हुए हैं। जानकारों का मानना है कि एच१बी बीजा को लेकर शायद डोनाल्ड ट्रंप अपनी धमकियों में ढील देंगे, क्योंकि अमेरिका का तकनीकी तंत्र ऐसे भारतीयों के कंधों पर टिका है जो इसी एच१बी बीजा की बदौलत वहां पहुंचे हुए हैं। लेकिन शायद ट्रंप अवैध प्रवासियों के मामले में हमें जरा भी छूट नहीं दे पाएंगे, क्योंकि ट्रंप ने एक नहीं कई बार इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि वह अवैध रूप से घुसने वाले प्रवासियों पर सख्त रहेंगे। डोनाल्ड ट्रंप ने बार बार इस बात को दोहराया है कि हमें सिर्फ वैध प्रवासी चाहिए, उन्होंने यह भी कहा है कि कुशल और वैध भारतीय प्रवासियों से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है।
तानाशाही रवैया
डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह तीन-तीन बार कनाडा को अमेरिका के ५१वें प्रदेश के रूप अमेरिका में शामिल किए जाने की बात कही है, ग्रीनलैंड में अमेरिकी कब्जे और पनामा नहर को अमेरिकी नियंत्रण में लेने की बात कही, वह शुरू में तो मजाक जैसे लग रहा था। लेकिन जैसे ही लोगों को लगा कि यह मजाक नहीं बल्कि ट्रंप की मंशा है, तो लोगों को यह बहुत ही डरावनी और तानाशाहीपूर्ण लगी। माना जा रहा है कि कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रुडो ने तो ट्रंप के इसी रवैये से घबराकर इस्तीफा दे दिया है और ग्रीनलैंड व पनामा ने कई तरह से ट्रंप के इस आक्रामक तानाशाही रवैये की आलोचना की है, लेकिन दुनिया जानती है कि अमेरिका को अपने हितों के सामने अपनी आलोचना से कोई फर्क नहीं पड़ता इसलिए कहीं न कहीं दुनिया में ट्रंप के इस दूसरे कार्यकाल के शुरू होने के पहले अनगिनत आशंकाओं और अंदेशों के बादल मंडरा रहे हैं। जिस तरह से ट्रंप राष्ट्रपति का चुनाव जीत लेने के बाद भी बार-बार खोए हुए अमेरिकी गौरव को फिर से हासिल करने की बात कर रहे हैं, वह दरअसल अमेरिका में दक्षिणपंथी विचार को और ज्यादा हवा देने की कोशिश है और अगर जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप माहौल बना रहे हैं तो उसका ५० फीसदी भी अगर वह अमल में लाए तो दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया के सामने यह सबसे खतरनाक और तानाशाह अमेरिका की मौजूदगी होगी।
अमेरिका के इस रवैये से न सिर्फ दुनिया के उन देशों पर डर और दहशत का साया रहेगा, जिन्हें अमेरिका ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से धमकाने की कोशिश की है बल्कि ऐसे देश भी इस माहौल में डरे-डरे और सहमे-सहमे रहेंगे, जिनका सीधे सीधे इन कार्रवाइयों से पाला नहीं पड़ने जा रहा। सच बात तो यह है कि ‘अमेरिका पहले’ के नाम पर ट्रंप जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं, उससे दुनिया फिर द्वितीय विश्वयुद्ध के समय के राजनीतिक और कूटनीति अंदेशों के दौर में पहुंच गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह भी एक नई तरह की आशंकाओं और समीकरणों की रूपरेखा बनाने वाली घटना बन गई है। जिस तरह से ट्रंप ने अपने शपथ समारोह को बड़ा इवेंट बनाने के क्रम में चीन के राष्ट्रपति को निमंत्रण भेजा और साथ ही दुनिया के ज्यादातर दक्षिणपंथी राजनेताओं को समारोह में हिस्सा लेने के लिए बुलाया है, उससे भी नए-नए अनुमान लगाए जा रहे हैं। खासकर, शी जिनपिंग द्वारा ट्रंप के निमंत्रण को ठुकराए जाने के बाद। मतलब साफ है कि अमेरिका की धमकियों से चीन झुकने नहीं जा रहा और अमेरिका की फिलहाल यह स्थिति नहीं है कि वह कारोबार में चीन की अनदेखी कर दे। इसका नतीजा विश्वस्तर पर चीन और अमेरिका के बीच एक ऐसी कूटनीतिक होड़ के रूप में सामने आ सकती है, जो ट्रंप के आगमन के अंदेशों को और ज्यादा बढ़ा सकती है।

(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)

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