मनमोहन सिंह
उत्तराखंड में चुनावी सर्कस तंबू में शोर थम गया है। हालांकि, पांचों लोकसभा सीटों पर पिछले एक महीने में दो बड़े दल भाजपा, कांग्रेस के अलावा अन्य दलों का चुनावी प्रचार-प्रसार का शोर इस दफा हमेशा की बनिस्पत `लो लेवल’ पर रहा। चुनाव प्रचार के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड में भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और नड्डा जैसे ३७ स्टार प्रचारकों ने ताबड़तोड़ रैलियां की। वहीं, कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, सचिन पायलट और सुप्रिया श्रीनेत जैसे गिने-चुने स्टार प्रचारक ही मैदान में नजर आए।
जहां भाजपा का दावा है कि कांग्रेस के राहुल गांधी जैसे बड़े नेताओं का उत्तराखंड न आना बताता है कि किस तरह से कांग्रेस हार से डरी हुई है। वहीं कांग्रेस का दावा है कि उनके उम्मीदवार ही स्टार प्रचारक हैं। भाजपा के हवाई दौरे के विपरीत कांग्रेस ने जनता के बीच जाकर डोर-टू-डोर वैंâपेन किया। यह बात अलग है कि दोनों ही दल पांच-पांच सीटों का दावा कर रहे हैं, लेकिन दोनों के दावों में सच्चाई कम ही नजर आ रही है। उत्तराखंड की पांच सीटों में अगर कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर की लड़ाई है तो वे दोनों सीटें हैं हरिद्वार और पौड़ी।
पौड़ी लोकसभा सीट पर कांग्रेस से उत्तराखंड इकाई के पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल का मुकाबला भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी से है। लेकिन बलूनी को लोग पैराशूट वैंâडिडेट के तौर पर मानते हैं और गोदियाल का कनेक्शन पौड़ी के स्थानीय लोगों से मजबूत है। वह अपना भाषण स्थानीय भाषा में देते हैं लेकिन यह सफलता की गारंटी नहीं हो सकती। इसके बावजूद कांग्रेस के लिए यहां पर उम्मीद है।
पौड़ी को छोड़ दिया जाए तो भाजपा और कांग्रेस के लिए हरिद्वार और टिहरी में दोनों ही जगहों पर दो निर्दलीय उम्मीदवार हरिद्वार में उमेश कुमार और टिहरी में बॉबी पंवार ने मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। दोनों की उपस्थिति से जो समीकरण बिगड़ेंगे, इसका असर भाजपा पर कम पड़ेगा। उत्तराखंड की सबसे हॉट सीट मानी जा रही हरिद्वार लोकसभा सीट की, जहां पर तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
पूर्व मुख्यमंत्रियों की साख दांव पर
तीनों में एक पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह (भाजपा) पर जहां खुद को जीतकर साबित करना है, वहीं दो मुख्यमंत्रियों (पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक पर भाजपा उम्मीदवार त्रिवेंद्र सिंह रावत) और (कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश सिंह रावत पर अपने बेटे उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह रावत) को अपने-अपने प्रत्याशियों को जिताने की जिम्मेदारी है। त्रिवेंद्र सिंह रावत को पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनने के लिए हटा दिया गया था। हरीश रावत ने इस बार अपने बेटे वीरेंद्र रावत को उम्मीदवार बनाने में दम लगा दिया। दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्रियों का भविष्य इस चुनाव में दांव पर लगा हुआ है।
कांग्रस को मिलेगी सिंपैथी
फिलहाल, वोटर साइलेंट दिखे। जब वोटर साइलेंट होता है तो उस समय विपक्षी पार्टी अपने कमजोर हालातों को सिंपैथी के रूप में भी भुनाती है। कांग्रेस अभी आर्थिक रूप से बेहद कमजोर है, यह जगजाहिर है। निश्चित तौर पर इसे मतदाता भी समझ रहा है, लेकिन यदि उम्मीदवार सही मुद्दों पर बात करता है तो मतदाता का मन कहीं न कहीं बदलता है। फिलहाल, अंदाजा लगाना दूर की कौड़ी है। लेकिन दोनों ही पार्टियों के इस दावे पर विश्वास करना कि उन्हें पांचों सीटें मिलेंगी यह मुमकिन नहीं है। ५:३, ५:२, ५:१ के अनुपात पर विश्वास किया जा सकता है!
हरिद्वार और टिहरी में त्रिकोणीय स्थिति
हरिद्वार से निर्दलीय उम्मीदवार उमेश कुमार भले ही कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही निशाने पर ले रहे हैं, लेकिन उसका ज्यादा असर कांग्रेस पर पड़ सकता है। दरअसल, उमेश कुमार कांग्रेस से लड़ने के लिए इच्छुक थे। वही टिहरी की बात की जाए तो वहां पर भाजपा की ओर से राज परिवार की राज्यलक्ष्मी शाह और कांग्रेस की ओर से जोत सिंह गुनसोला हैं। वैसे यहां पर भी युवाओं की आवाज बने, बढ़ते घोटालों को उजागर करने वाले बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार निर्दलीय रूप से खड़े हैं।
भाजपा का फोकस मनी पावर पर
इसके अलावा कुमाऊं मंडल के नैनीताल उधम सिंह नगर सीट और अल्मोड़ा पिथौरागढ़ सीट पर कांग्रेस की स्थिति उतनी मजबूत नहीं दिखाई देती। अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ से भाजपा के सीटिंग एमपी अजय भट्ट के सामने कांग्रेस के प्रकाश जोशी और नैनीताल-उधम सिंह नगर में भाजपा के सीटिंग एमपी अजय टम्टा के सामने कांग्रेस के प्रदीप टम्टा हैं। इन दोनों के बीच लड़ाई टक्कर की है। इस लोकसभा चुनाव वैंâपेनिंग में कांग्रेस ने स्टार वैंâपेन से ज्यादा फोकस डोर टू डोर कैंपेन पर रखा, वहीं इसके उलट भाजपा मनी पावर दिखाते हुए कई मेगा कैंपेन पर फोकस करती हुई नजर आई।