सामना संवाददाता / मुंबई
केंद्र की सत्ता पर गत १० वर्षों से भाजपा काबिज है। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था से जुड़ी नोटबंदी और जीएसटी जैसी तमाम चीजें लागू की हैं, जिससे देश में आम आदमी बेहाल होता चला गया। सरकार भले ही देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत होने और करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा से बाहर लाने का दावा करती हो, पर सच तो यह है कि मोदी सरकार की महंगाई ने आम आदमी को मार डाला है। यह इसी से समझा जा सकता है कि पिछले कुछ समय में बैंकों की पब्लिक सेविंग्स में जबरदस्त गिरावट आई है।
खुद आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि देश के बैंकों में ९ लाख रुपए की पब्लिक सेविंस खत्म हो गई। खुद आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा ने एक कार्यक्रम में इस बात को कबूल किया है। पात्रा ने बताया कि घरेलू बचत ने बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था की निवेश संबंधी जरूरतों को पूरा किया है और आने वाले दशकों में यह कर्ज का मुख्य स्रोत बनी रहेगी। लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि देश के बैंकों में जमा लोगों की सेविंग्स में गिरावट दर्ज हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा भारतीय उद्योग परिसंघ के कार्यक्रम ‘फाइनेंसिंग ३.० शिखर सम्मेलन : विकसित भारत की तैयारी’ को संबोधित कर रहें थे।
परिवारों की वित्तीय बचत हुई आधी!
कोराना के बाद से अभी तक नहीं सुधरी अर्थव्यवस्था
देश में बैंकों की दशा खराब हो रही है। इसकी वजह है कि लोग बैंकों के अपने जमा खाते में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इसका परिणाम है कि बैंकों की पब्लिक सेविंग्स में गिरावट दर्ज होती देखी जा रही है और यह लगभग आधी हो गई है। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देबब्रत पात्रा ने इसकी पुष्टि की है। पात्रा के अनुसार, हाल में महामारी के दौरान जमापूंजी खत्म होने का असर अभी तक गया नहीं है। हालांकि, लोगों ने बचत का कुछ पैसा आवास जैसी भौतिक परिसंपत्तियों में स्थानांतरण किया है। इस कारण परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत २०२०-२१ के स्तर से लगभग आधी हो गई है। भारतीय उद्योग परिसंघ के कार्यक्रम ‘फाइनेंसिंग ३.० शिखर सम्मेलन : विकसित भारत की तैयारी’ को संबोधित करते हुए पात्रा ने कहा कि आने वाले समय में आय वृद्धि से उत्साहित होकर परिवार अपनी वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण करेंगे। यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। परिवारों की वित्तीय परिसंपत्तियां २०११-१७ के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के १०.६ प्रतिशत से बढ़कर २०१७-२३ (महामारी वर्ष को छोड़कर) के दौरान ११.५ प्रतिशत हो गई हैं। उन्होंने कहा कि महामारी के बाद के वर्षों में उनकी भौतिक बचत भी जीडीपी के १२ प्रतिशत से अधिक हो गई है। आरबीआई के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘ऐसे में आने वाले दशकों में घरेलू क्षेत्र बाकी अर्थव्यवस्था के लिए शीर्ष शुद्ध ऋणदाता बना रहेगा।’