तूने समझा रुतबा तेरा ऊंचा
कलम अपनी को मैंने कम न माना
तूने हरदम मुनासिब समझा
मुझसे बच कर निकल जाना।
दिवानगी तेरी में मैंने अश्क गिराए
जानता था यह हरकत है कायराना
हिम्मत तेरी को सलाम मेरा
तू तो निकली बड़ी दिले मर्दाना।
तेरे शबाब के दीदार की लत लग गई थी मुझको
कब भूल गया तेरी गली का रास्ता
सकूं पाने जब पहुंचा मय पीने
कहीं दूर चला गया था मयखाना।
मुकद्दर होता सबका अपना-अपना
डूबने चला तो दरिया मिला सूखा
जीने का होश आया तो
भूल गया जीने का बहाना।
बिन मकसद भटका सरे बाजार
मिला न कोई जाना पहचाना
ठोकर खा गिर पड़ा जब
सामने था चेहरा जाना पहचाना।
कब से मुरीद बन गया था तेरा
खंगाला जब मैंने रवैया अपना
झलक रहा था दोगलापन मुझमें
पड़ रहा मुझे पछताना
मकसद जीने का अब पड़ेगा बदलाना।
-बेला विरदी