हिमांशु राज
किसी ने सत्य कहा है विचारधारा राजनीति में कभी भी मरती नहीं है। औरंगजेब का ४०० साल पुराना इतिहास व विचारधारा आज भी देश में आक्रोश पैदा करने में सक्षम है। ताजातरीन उदाहरण नागपुर का है। औरंगजेब की आड़ में अपने बिछड़े हुए दलित वोट बैंक को साधने के लिए सपा के एक वरिष्ठ दलित सांसद राणा सांगा के बारे में कुछ ऐसा वक्तव्य देते हैं, जिससे पूरे देश में रोष पैâल जाता है। राष्ट्रीय मीडिया में राणा सांगा औरंगजेब चर्चा व बहस का विषय बन जाते हैं। देश के क्षत्रप व करणी सेना देशभर में राणा सांगा के अपमान को लेकर आंदोलन कर रही है, गिरफ्तारी दे रही है। सपा के इस सोचे समझे राजनीतिक दांव ने दलित व सवर्ण के मध्य खाई खींचने का काम किया है। समाजवादी सवर्ण वोटरों में राणा सांगा पर दिए गए वक्तव्य के बाद काफी रोष दिख रहा है। अपने ही सांसद का बयान अखिलेश यादव के गले की हड्डी बन गया है। सपा प्रमुख को राणा सांगा के बारे में सफाई देनी पड़ रही है कि राणा सांगा की वीरता और राष्ट्रभक्ति पर कोई सवाल नहीं है। भारतीय जनता पार्टी को दलितों का विद्रोही बता कर पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कौन समझाए सपा प्रमुख को कि गोली और बोली वापस लौट के नहीं आती। अपर्णा यादव ने राणा सांगा पर दिए बयान के लिए सपा सांसद रामजीलाल सुमन को माफी मांगने की बात की तो मायावती भी उस लड़ाई में कूद पड़ी हैं। यह कह कर कि २ जून १९९५ के दिन मुझ पर जो जानलेवा हमला हुआ था उसके लिए अखिलेश यादव पश्चाताप करें। प्रतीत होता है सोची-समझी रणनीति के तहत सपा के सांसद द्वारा दिया गया बयान आगामी चुनाव में सपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है क्योंकि बीते लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा व उसके सहयोगी दलों को मिली ४० सीटों में कुछ सांसद सवर्ण व क्षत्रप भी हैं। सपा व सहयोगी दलों द्वारा लोकसभा चुनाव में की गई मेहनत का परिणाम तो दृष्टिगोचर हो गया पर सवर्णों के वोट बिना प्रदेश में ४० लोकसभा सीटें जितना संभव नहीं प्रतीत होता। सपा प्रमुख तो इस बात को समझ रहे हैं पर उनके नेताओं के बड़बोलेपन व ऐसे वक्तव्य आने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में इस सोशल इंजीनियरिंग का समीकरण कहीं बिगाड़ न दें।