हिमांशु राज
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होने में अभी २ वर्ष बाकी है। लोकसभा का परिणाम देखे हुए बीजेपी ने अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है। यही कारण है कि भाजपा ने ७० जिलों में अपने जिलाध्यक्षों की नियुक्ति कर दी है। सूची में इससे पहले आपसी विवाद, राजनीतिक दबाव को देखते हुए दो दर्जन से अधिक जिलाध्यक्षों की सूची रोक लेने की खबर सामने आई है। भाजपा के संगठनात्मक ९८ में से करीब ७० जिलों में अध्यक्ष की घोषणा हुई है। माना जा रहा है कि बीजेपी ने २०२७ का बिगुल अभी से ही बजा दिया, जहां इस बार जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में ज्यादातर नवीन चेहरे देखने को मिले, वहीं जातिगत समीकरण को भी ध्यान में रखा गया है। ३९ सवर्ण- (१९ ब्राह्मण, १० ठाकुर, ३ कायस्थ, २ भूमिहार, ४ वैश्य, १ पंजाबी),२५ ओबीसी – (यादव-१, बढ़ई-१, कश्यप-१, कुर्मी ५, कुशवाहा १, मौर्य २, पिछड़ा वैश्य ३, पाल, राजभर, सैनी, रस्तोगी १-१, जाट २, गुर्जर १, भुजवा १, तेली १, लोधी २),६ एससी – (धोबी, कठेरिया, कोरी १-१ और पासी वर्ग से ३ जिलाध्यक्ष हैं)। इसके अलावा ५ महिलाएं भी अध्यक्ष बनीं हैं। २६ जिला अध्यक्षों की पुनरावृत्ति भी हुई है। बीजेपी जिलाध्यक्षों की जो नई सूची जारी की गई है उसमें सवर्णों की प्रमुखता नजर आ रहा है। लगभग ५५ फीसदी से ज्यादा सवर्ण जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष बनाए गए हैं जबकि लगभग ३५ फीसदी ओबीसी और १० फीसदी दलित नेताओं को नया जिलाध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
बीजेपी जिलाध्यक्षों की घोषणा होते ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा, `चुनाव आते-आते फिर से ये जिलाध्यक्ष बदले जाएंगे। उन्होंने ने कहा कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी का संगठन और सरकार उत्तर प्रदेश को लूट रहे हैं। २०२७ में बीजेपी की सबसे बुरी हार होगी।’ अखिलेश यादव ने अपने सहयोगी संगठनों के साथ बीते लोकसभा चुनाव में संविधान के साथ ओबीसी, एससी, एसटी और मुस्लिमों के अधिकारों को लेकर विपक्ष ने जमकर भाजपा के खिलाफ खासा माहौल बनाया था और ४० सीटों पर विजय प्राप्त की थी। ऐसे में अगर यादव, मुस्लिम के साथ अन्य ओबीसी व दलित `इंडिया’ गठबंधन से जुड़ते हैं तो बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव लोकसभा जैसा ही कठिन हो जाएगा। जीत की राह आसान नहीं होगी…!