मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : गैरों पे सितम अपनों पे रहम, कमाई के...

राज की बात : गैरों पे सितम अपनों पे रहम, कमाई के बंटवारे में विपक्ष शासित राज्यों पर जुल्म

विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्य, मुख्य रूप से दिल्ली, कर्नाटक और केरल के मुख्यमंत्रियों ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है और आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार उनके राज्यों को केंद्रीय करों में उचित हिस्सा नहीं दे रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने केंद्रीय करों में अधिक हिस्सेदारी के लिए ७ फरवरी को नई दिल्ली में एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। अगले दिन केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने राज्यों के प्रति केंद्र की बजट आवंटन नीति के खिलाफ एक और विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी रविवार ११ फरवरी को महाराष्ट्र के साथ केंद्र के सौतेले व्यवहार पर हमला बोला। स्थानीय लोकाधिकार समिति के स्वर्ण महोत्सव में उन्होंने कहा कि जब महाराष्ट्र केंद्र को कर के रूप में १ रुपया देता है तो महाराष्ट्र को केवल ७ पैसे केंद्र की तरफ से मिलते हैं। बाकी पैसे जाते कहां हैं? अब कुल कर का कम से कम ५० प्रतिशत महाराष्ट्र को मिलना ही चाहिए।
दरअसल, २०१४ में जब से नरेंद्र मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं, उन्होंने राज्यों के हिस्से में कटौती के हर प्रयास किए। इस बारे में खुलासा करता नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम का एक वीडियो काफी चर्चित हुआ था, जो अब सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्मों से डिलीट हो चुका है।
केंद्र सरकार ने बजट अनुमान २०२४-२५ के लिए केंद्रीय करों और शुल्कों की शुद्ध आय का राज्य-वार वितरण जारी किया है। इसमें उत्तर प्रदेश को केंद्रीय करों और शुल्कों का १७.९३९ प्रतिशत हिस्सा प्राप्त हुआ है, जो सभी राज्यों में सबसे अधिक है और इसकी राशि २,१८,८१६.८४ करोड़ रुपए है। दूसरा सबसे बड़ा १०.०५८ प्रतिशत हिस्सा बिहार को मिला है, जिसे १,२२,६८५.७६ करोड़ रुपए मिले। मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल सबसे अधिक प्राप्तकर्ताओं में अगले दो राज्य हैं। ७.८५० प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ मध्य प्रदेश को ९५,७५२.९६ करोड़ रुपए मिले हैं, जबकि ७.५२३ प्रतिशत के साथ पश्चिम बंगाल को ९१,७६४.२६ करोड़ रुपए मिले हैं। इन राज्यों के बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है। ६.३१७ प्रतिशत के साथ महाराष्ट्र को ७७,०५३.६९ करोड़ रुपए मिले हैं।
बजट आवंटन का फॉर्मूला बेहद पेचीदा है। वित्त आयोग द्वारा निर्धारित फॉर्मूले के मुताबिक राज्यों के बीच आवंटन के लिए डेमोग्राफिक परफॉरमेंस (यानी जनसंख्या नियंत्रण ) को १२.५ प्रतिशत, आय को ४५प्रतिशत, जनसंख्या और क्षेत्रफल प्रत्येक को १५ प्रतिशत (यानी कुल ३० प्रतिशत), वन और पर्यावरण को १० प्रतिशत और टैक्स व वित्तीय प्रयासों को २.५ प्रतिशत वेटेज (अंग्रेजी शब्द वेटेज यानी महत्व) देने का फॉर्मूला है। वेटेज के इस फॉर्मूले के तहत ही हर राज्य के लिए बजट का पर्सेंटेज तय किया गया है।
इस फॉर्मूले को लेकर वर्षों से सवाल उठाए जा रहे हैं। इससे दक्षिण के राज्य यह सवाल उठाते रहे हैं कि उन्हें जनसंख्या नियंत्रण की सजा दी जा रही है यानी अगर कोई बड़ा राज्य है और उसकी आबादी ज्यादा है तो ३० प्रतिशत के वेटेज का लाभ उसे मिल जाता है, भले ही उसकी आय कम हो। इसीलिए कुछ अर्थ विशेषज्ञ जीएसटी और पेट्रोलियम बिक्री को फॉर्मूले में शामिल करने का सुझाव दे रहे हैं। वैसे तो जीएसटी जिस तरह से लागू किया गया, उसके अपेक्षित नतीजे नहीं दिख रहे हैं। केंद्र सरकार ने अधूरी तैयारी के साथ हड़बड़ी में इसे देश के आम नागरिकों पर थोप दिया। पर अब जब यह लागू हो ही चुका है तो इसके आंकड़ों का इस्तेमाल राजस्व वितरण में तो किया ही जा सकता है। प्रत्येक राज्य का जीएसटी राजस्व उन राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं के आकार के अनुसार तय होता है और यह टैक्स से प्राप्त राजस्व के वितरण में एक पैमाना हो सकता है। किसी राज्य का जीएसटी योगदान राज्य की नीतियों से प्रभावित नहीं होता है; यह केवल राज्य के कुल टैक्स योगदान को दर्शाता है।
जीएसटी के अलावा, पेट्रोलियम पदार्थों की खपत भी राष्ट्रीय खजाने में राजस्व योगदान का एक संकेतक है। पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क और बिक्री कर जीएसटी के अंतर्गत नहीं आता। पेट्रोलियम आयात पर सीमा शुल्क के बोझ के अलावा इन दो करों का व्यापक बोझ राज्य में पेट्रोलियम उत्पादों के अंतिम उपभोक्ताओं पर पड़ता है। इसलिए किसी राज्य की पेट्रोलियम खपत का हिस्सा पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क के रूप में राष्ट्रीय खजाने में राज्य के योगदान को दर्शाता है। इसीलिए केंद्रीय राजस्व वितरण फॉर्मूले में किसी राज्य के सापेक्ष जीएसटी योगदान और पेट्रोलियम खपत को शामिल करना राष्ट्रीय खजाने में राज्यों के योगदान के उचित और सटीक हिसाब-किताब को दर्शाने का एक अच्छा उपाय है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा गठित १६वें वित्त आयोग के लिए यह विचार का विषय है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि वितरण फॉर्मूले में आयोग इसे कम से कम ३३ प्रतिशत वेटेज के रूप में शामिल करे। इससे पूरी तरह तो नहीं, पर कुछ हद तक राजस्व बंटवारे में विसंगतियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
यह भी बताना आवश्यक होगा कि देश में सबसे ज्यादा जीएसटी महाराष्ट्र में जमा होता है। यह राशि सालाना एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा होती है। इसके बाद सभी राज्य ५० हजार करोड़ रुपए से नीचे ही होते हैं। आयकर और अन्य टैक्स में महाराष्ट्र अलग से अव्वल है, लेकिन जब बात कमाई में बंटवारे की आती है, महाराष्ट्र का हिस्सा कम हो जाता है।
राष्ट्रीय हित में गरीब और कम आय वाले राज्यों को मदद करना देश के सभी राज्यों का फर्ज है। इससे महाराष्ट्र कभी पीछे नहीं हटा। लेकिन राजनीतिक कारणों से अगर महाराष्ट्र को केंद्रीय राजस्व में हिस्सेदारी कम दी जा रही है तो महाराष्ट्र की जनता का इस पर पुरजोर विरोध है। मदद के साथ उन कमजोर राज्यों में विकास की रफ्तार बढ़ाने का कर्तव्य वहां की राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार का भी है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर कई राज्य हैं, जो खुद राज्य की जनता और देश के विकास में बड़ा योगदान कर सकते हैं। इससे न केवल उन राज्यों का विकास होगा, बल्कि बेरोजगारी दूर करने में मदद मिलेगी। साथ ही मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों की ओर गांवों से पलायन पर अंकुश लगेगा, पर दुर्भाग्य से उन राज्यों पर केंद्र सरकार द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

द्विजेंद्र तिवारी, मुंबई
(लेखक कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

अन्य समाचार