मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : लालच के आसमान पर बेसुधी की धूल

राज की बात : लालच के आसमान पर बेसुधी की धूल

द्विजेंद्र तिवारी
मुंबई

धूल की चादर
पिछले सप्ताह मुंबई के आसमान पर धूल के बादल छाए हुए थे। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। पिछले कुछ वर्षों में दिसंबर-जनवरी के महीने में प्रदूषण लगातार बढ़ता दिखाई पड़ रहा है। २७ दिसंबर को मुंबई में सुबह कोलाबा के नेवी नगर में एक्यूआई ३०२ (बहुत खराब) दर्ज किया गया, जो दोपहर में धीरे-धीरे गिरकर २६५ (खराब) हो गया। शाम करीब ५ बजे मुंबई और एमएमआर में खराब एक्यूआई दर्ज करने वाले अन्य स्टेशनों में बोरीवली ईस्ट (२०७), मालाड वेस्ट (२६५) मझगांव (२०७) शामिल थे। इस बीच, उल्हासनगर में महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एक्यूआई निगरानी स्टेशन ने ३०३ (बहुत खराब) का एक्यूआई दर्ज किया।
मुंबई हमेशा स्वच्छ हवा वाला शहर रहा है। १९८० और १९९० के दशक की शुरुआत में मुंबई की वायु गुणवत्ता आज की तुलना में बहुत अच्छी थी। अरब सागर से घिरा यह शहर तटीय हवाओं से लाभान्वित था, जो प्राकृतिक रूप से प्रदूषकों को साफ करती थीं। आबादी कम थी, वाहनों का आवागमन कम था और औद्योगिक गतिविधि विशिष्ट क्षेत्रों में केंद्रित थी। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक परिवहन विशेष रूप से लोकल ट्रेनें, दैनिक आवागमन की रीढ़ था, जो निजी वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को सीमित करता था। उस समय पर्यावरण संबंधी चिंताएं चेंबूर और कलवा जैसे क्षेत्रों में स्थानीय औद्योगिक प्रदूषण तक सीमित थीं। बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की कमी और कम ऊंची इमारतों ने भी स्वच्छ हवा में योगदान दिया। पिछले ४० वर्षों में, मुंबई ने तेजी से शहरी विकास और औद्योगिक विस्तार देखा है, जिससे वायु गुणवत्ता में धीरे-धीरे लेकिन लगातार गिरावट आई है। साल २००० के बाद मुंबई की क्षितिज रेखा नाटकीय रूप से बदल गई, ऊंची इमारतें और बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाएं आदर्श बन गर्इं। सत्ता से जुड़े लोगों का लालच बढ़ता गया और निर्माण की धूल और मलबा मुंबई में पैâलता गया।
मुंबई की आबादी १९८० में लगभग ८० लाख से बढ़कर आज २ करोड़ से अधिक हो गई है। इस जनसंख्या विस्फोट के परिणामस्वरूप सड़कों पर अधिक वाहन आ गए। वर्तमान में मुंबई में ४० लाख से अधिक पंजीकृत वाहन हैं। कारों, मोटरसाइकिलों, ट्रकों और बसों से होने वाले उत्सर्जन से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता है, जो अक्सर सुरक्षित सीमा को पार कर जाता है।
४०० पार
तलोजा, नई मुंबई और ठाणे जैसे क्षेत्रों में औद्योगिक समूहों के विकास से कारखानों और रिफाइनरियों से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि हुई। चेंबूर जिसे कभी ‘मुंबई का गैस चैंबर’ कहा जाता था, में तेल रिफाइनरियों और बिजली संयंत्रों से प्रदूषण बढ़ रहा है।
मुंबई की बंदरगाह गतिविधियां और जहाजों की आवाजाही प्रदूषण के बोझ को बढ़ाती हैं। यह अक्सर मझगांव और कोलाबा सहित समुद्र तट के पास के क्षेत्रों को प्रभावित करता है। अब वाढवण में नया पोर्ट बन रहा है जो और भी ज्यादा प्रदूषण पैâलाएगा।
मुंबई में प्रतिदिन लगभग ११ हजार मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा लैंडफिल में इस्तेमाल होता है। देवनार जैसे डंपिंग ग्राउंड पर कचरा जलाने से जहरीला धुआं और कण निकलते हैं, जो गंभीर वायु प्रदूषण में योगदान करते हैं। तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण वनों की कटाई हुई और मैंग्रोव बेल्ट सिकुड़ गए, जो कभी प्राकृतिक वायु फिल्टर के रूप में काम करते थे। आरे वन जैसे हरित क्षेत्रों को मेट्रो परियोजनाओं और आवास विकास के लिए अतिक्रमण का सामना करना पड़ा है।
आज मुंबई का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) अक्सर ‘खराब’ (१०१-२००) और ‘बहुत खराब’ (२०१-३००) के बीच रहता है। कुछ औद्योगिक बेल्ट और उच्च-यातायात क्षेत्रों में एक्यूआई का स्तर ‘गंभीर’ श्रेणी (४०० से ऊपर) को पार कर जाता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा होते हैं।
मुंबई मनपा और महाराष्ट्र सरकार ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए तथाकथित उपाय शुरू किए हैं, जो लोगों की आंखों में और भी ज्यादा धूल झोंकने का काम कर रहे हैं।
धूल को दबाने के लिए निर्माण स्थलों पर स्प्रिंकलर और एंटी-स्मॉग गन तैनात किए गए हैं, जिनका कोई फायदा नहीं है। सड़कों और निर्माण स्थलों पर धूल को दबाने के लिए ७३ वाहनों के साथ-साथ पानी के टैंकर और मिस्टिंग मशीनों सहित ९६ मशीनें तैनात की हैं। इतने बड़े शहर के लिए क्या यह संख्या काफी है?
फुरसत नहीं
कंस्ट्रक्शन धूल को नियंत्रित करने और सड़क मलबे का प्रबंधन करने के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। इनमें मैकेनिकल स्वीपर तैनात करना, उच्च यातायात वाले क्षेत्रों में दैनिक पानी का छिड़काव करना और निर्माण सामग्री ले जाने वाले वाहनों की निगरानी करना शामिल है। इस उपाय का अता-पता नहीं है। पूरे एमएमआर क्षेत्र में मेट्रो निर्माण से भयंकर अव्यवस्था पैâली हुई है। निर्माण कार्य इतने धीमे हैं कि मुंबई और आसपास की जनता प्रदूषण और यातायात समस्या से बुरी तरह परेशान है। जो मेट्रो काम तीन वर्ष में पूरे हो जाने चाहिए थे, उन्हें ६ से ८ वर्ष लग रहे हैं। उद्योगों के लिए स्वच्छ र्इंधन का उपयोग करने और उत्सर्जन नियंत्रण उपकरण लगाने के आदेश सिर्फ कागजों पर हैं। बगीचों पर अवैध कब्जे हैं और पेड़ों की कटाई पर अंकुश नहीं है।
तेजी से बढ़ते शहरीकरण, वाहनों की वृद्धि और औद्योगीकरण के कारण पिछले ४० वर्षों में मुंबई की वायु गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है। इस मुद्दे के समाधान के लिए सरकार, उद्योगों और नागरिकों द्वारा समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। मजबूत नीतियों और सार्वजनिक सहयोग के साथ मुंबई अपनी खोई हुई स्वच्छ हवा को पुन: प्राप्त करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर सकती है। बशर्ते सरकार में बैठे लोगों को आपसी तिकड़मों से फुरसत मिले।

(लेखक कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

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