राजेश विक्रांत
मुंबई
अब जाकर पता चला है कि ‘मोदी की गारंटी’ का दायरा बेरोजगारी, कंगाली, बदहाली से बढ़कर हार्ट अटैक, बीमारी और मौत तक बढ़ गया है। कोरोना से निपटने के लिए देश में २०२२ तक दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में कोविशील्ड वैक्सीन की १.७ अरब से अधिक खुराकें दी गर्इं थीं। इस पर मोदी सरकार ने खूब वाहवाही बटोरी थी। अपने हाथ से अपनी पीठ थपथपाई थी। अब जाकर ये पर्दाफाश हुआ है कि ये लोगों के जी का जंजाल बन गई है।
कोविशील्ड का मूल नाम एस्ट्राजेनेका वैक्सीन था। ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने इसे विकसित किया था। इसे दुनियाभर में लोगों को दिया गया था। अब कंपनी ने स्वीकार किया है कि इसे लेनेवालों को घातक दुष्प्रभाव हो रहे हैं। ऐसा दावा किया गया है एस्ट्राजेनेका से कुछ मौतें हुर्इं और बहुत सारे लोगों को गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश हाई कोर्ट में जमा किए गए दस्तावेजों में कंपनी ने स्वीकार किया कि उनकी वैक्सीन से थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम-टीटीएस होने की संभावना है। ध्यान रहे कि टीटीएस एक दुर्लभ कंडीशन है, जिसमें शरीर में खून के थक्के बनने लगते हैं और खून में प्लेटलेट्स की संख्या कम होती जाती है। वैसे तो टीटीएस कोई नई बीमारी नहीं है। ये गत १०० वर्षों से हमारे बीच है, इसका पहला मामला १९२४ में १६ वर्षीय लड़की एली मोशकोवित्ज में सामने आया था। कोरोना वैक्सीन से टीटीएस फिर वापस आई है। यानी मोदी की गारंटी बीमारी की गारंटी है। मोदी सरकार द्वारा ही देश में कोविशील्ड का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था।
दरअसल, हिंदुस्थान में सीरम इंस्टीट्यूट ने एस्ट्राजेनेका को कोविशील्ड के नाम से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाया था। बता दें कि सन् २०२१ में पहली बार तैयार हुई एस्ट्राजेनेका लगातार सवालों के घेरे में रही है। वैज्ञानिक समुदाय ने इसका समर्थन तकरीबन नहीं किया था। कई देशों ने २०२१ में ही इस वैक्सीन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
दरअसल, किसी भी दवा के विकास की एक प्रक्रिया होती है। ये प्रक्रिया काफी लंबी होती है और ये कई चरण से गुजरती है। लेकिन एस्ट्राजेनेका जिस हड़बड़ी से तैयार की गई थी, उस पर वैज्ञानिक समुदाय में तभी से सवाल उठने लगे थे। इसके बाद इस बात को लेकर जांच शुरू हुई कि वैक्सीन सुरक्षित थी या नहीं। ये कोरोना वायरस से निपटने में सक्षम थी या नहीं, लेकिन कंपनी ने कभी भी इन शंकाओं का समाधान गंभीरता से नहीं किया। वैक्सीन देने के बाद कुछ लोगों में हुई हार्ट अटैक की घटनाओं के लिए भी वैक्सीन को सवालों के घेरे में लाया गया। बहुत से लोगों ने शिकायत की कि वैक्सीन लेने के बाद उन्हें खून के थक्के जमने की दिक्कत हुई है और बहुत से लोगों को कार्डियक अरेस्ट भी हुआ है। इस तरह की अनगिनत शिकायतें सामने आर्इं, लेकिन कंपनी ने हर बार इसे खारिज कर दिया। कंपनी ये मानने को तैयार ही नहीं हुई कि एस्ट्राजेनेका असुरक्षित और अक्षम वैक्सीन है।
मोदी सरकार ने भी बेहद हड़बड़ी में पैâसले लिए और इसे हरी झंडी दे दी। बड़ी संख्या में इस वैक्सीन को कोविड आने के बाद लोगों को दिया गया था। इस वैक्सीन के सरल भंडारण और व्यापक उपलब्धता ने देश और दुनियाभर में टीकाकरण अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब इसका मूल फार्मूला बनानेवाली कंपनी का रहस्योद्घाटन लोगों पर बम बनकर फूटा है। जिन लोगों ने वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स की वजह से अपनों को खोया है या जिन्हें वैक्सीन के दुष्परिणामों की आशंका थी, अब उनका शक और डर सही साबित हुआ है। इसकी वास्तविक आरोपी मोदी सरकार है, जिसने गारंटी के नाम पर लोगों को बीमारियां बांटी हैं। भोले-भाले लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ किया है। उनके भरोसे को तोड़ा है। जनता ये समझ रही थी कि हम कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन ले रहे हैं, जबकि असलियत ये थी कि वो टीटीएस की आशंका ले रही थी। खून के थक्कों का खतरा मोल ले रही थी क्योंकि हिंदुस्थान और अन्य देशों से प्रकाशित कई वैज्ञानिक अध्ययनों में वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स साबित भी हो चुके हैं।
तो वैक्सीन के बहाने बीमारी बांटनेवालों को हिंदुस्थान की जनता कभी माफ नहीं करेगी। माफ करना भी नहीं चाहिए। सौभाग्य से हिंदुस्थान की जनता के पास जिम्मेदारों को सबक सिखाने का एक बढ़िया मौका है, आम चुनाव के रूप में। हमारा ये मानना है कि यदि वैक्सीन के बारे में शंका प्रकट की जा रही थी तो मोदी सरकार ने ऐसी खतरनाक वैक्सीन की अनुमति ही क्यों दी?
इस तरह की जानलेवा वैक्सीन की अनुमति देना किसी की हत्या के षड्यंत्र के बराबर है और इसके लिए जो भी जिम्मेदार हैं, उन सभी पर आपराधिक मुकदमा चलना चाहिए। भाजपा ने वैक्सीन कंपनी से राजनीतिक चंदा वसूलकर अपना खेल कर दिया। उधर वैक्सीन कंपनी भी फायदा कमा चुकी है। लेकिन इस खेल में लोगों की सेहत का जो सत्यानाश हुआ, उसकी भरपाई करेगा कौन?
जिसने जनता की जान की बाजी लगाई उसे सबक सिखाएगा कौन? न क़ानून कभी उन्हें माफ करेगा, न जनता ही माफ करेगी। इस मामले में बेहतर तो ये रहेगा कि पहले जनता सबक सिखाए और फिर सर्वोच्च स्तर पर न्यायिक जांच हो, ताकि जिम्मेदारों को उनके कुकर्मों की सजा दी जा सके।
(लेखक तीन दशक से पत्रिकारिता में सक्रिय हैं और ११ पुस्तकों का लेखन-संपादन कर चुके वरिष्ठ व्यंग्यकार हैं।)