राजेश विक्रांत
मुंबई
मोदी सरकार के बारे में सिर्फ एक वाक्य में कहा जा सकता है कि ये सरकार निकम्मी है। चाहे आम नागरिक हों, सरकारी कर्मचारी हों, निजी क्षेत्र के कर्मचारी हों या दुकानदार, व्यवसायी सभी सरकार की कार्यप्रणाली से त्राहिमाम कर रहे हैं। कहते हैं कि पाप का घड़ा भरने के बाद फूटता जरूर है तो अब वो वक्त आ रहा है। चंद दिनों के बाद ये सरकार अगर इतिहास में दफन होगी तो अपनी असफलता के कारण, जो कि नभ, थल के साथ जल तक व्याप्त है।
जल की बात हम इसलिए कर रहे हैं कि मोदी सरकार की कमजोरियों की वजह से हिंदुस्थानी नाविक यानी जिसे हम मर्चेंट नेवी समुदाय कहते हैं, लगातार दूसरी बार दुनिया में सबसे ज्यादा परित्यक्त, बदनसीब या लावारिस व्यक्ति बन गए हैं। इस साल के जनवरी से लेकर १७ मई के बीच ११६ व्यापारिक जहाजों पर १,६७२ नाविक परित्यक्त हैं, जिसमें से ४११ हिंदुस्थानी हैं। ये संख्या वो है, जो इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन के पास दर्ज है। असली संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है।
२०२३ में १२९ व्यापारिक जहाजों पर १९८३ नाविक परित्यक्त हैं, जिसमें से ४०१ हिंदुस्थानी थे। ये आंकड़े पूरे साल के थे, जबकि ताजा आंकड़े तो पूरे पांच महीने के भी नहीं हैं। इन बदनसीब नाविकों को बचाने के प्रयास का मोदी सरकार सिर्फ ढिंढोरा पीटती है, करती-धरती कुछ नहीं। लंदन में मुख्यालय वाली फेडरेशन ने पिछले दिनों १६ हिंदुस्थानी नाविकों की एक तस्वीर शेयर की है, जो काफी द्रवित करने वाली है। ये नाविक किसी जहाज के डेक पर चद्दर पर सोए नजर आ रहे हैं। यूएई के शारजाह में लंगर डाले खड़े जहाज सनशाइन ७ पर कुल मिलाकर १६ हिंदुस्थानी नाविक हैं। जहाज पर तंजानिया का झंडा है। इसका पंजीकरण सितंबर २०२२ में ही निरस्त कर दिया गया था। जहाज के नाविकों को कई महीने से पगार नहीं मिली है। एसी व रेप्रिâजरेशन की कोई व्यवस्था नहीं है। जनरेटर दिन में सिर्फ एक घंटे के लिए चलाया जाता है। समस्त क्रू डेक पर सोता है, क्योंकि केबिन काफी गर्म हैं। फेडरेशन जहाज के मालिकों के साथ बातचीत कर रहा है। लेकिन मोदी सरकार ऐसे मामलों में कितना ढुलमुल रवैया अपनाती है, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है।
ईरान में पिछले ८ महीने से हिरासत में लिए गए ४० हिंदुस्थानी नाविकों की रिहाई के लिए मोदी सरकार प्रयासरत है। सिर्फ प्रयासरत, क्योंकि अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। इन नाविकों को पिछले ८ महीनों के दौरान फारस की खाड़ी से चार अलग-अलग जहाजों से हिरासत में लिया गया था। इन नाविकों के परिवार कई बार मोदी सरकार से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन मोदी जी तो सत्ता के मद में डूबे हुए हैं, वे क्यों इन बदनसीबों की सुनें? केंद्रीय बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल भी कानों में तेल डालकर सोए हुए हैं। वे अभी कुछ दिन पहले तेहरान में थे, लेकिन उनका मुख्य एजेंडा इन ४० नाविकों की रिहाई नहीं था, बल्कि वे तेहरान में इसलिए थे, क्योंकि हिंदुस्थान को चाबहार बंदरगाह को संचालित करने के लिए १० साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर करना था। यह बंदरगाह मध्य एशिया के साथ हिंदुस्थान के व्यापार को विस्तार देने में मदद करेगा। सोनोवाल और ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन के बीच बैठक में सबसे पहले बंदरगाह के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए। फिर औपचारिकता पूरी करने के लिए केंद्रीय मंत्री ने बंधक बनाए गए नाविकों की रिहाई का अनुरोध भी कर डाला। ध्यान देने वाली बात ये है कि उन्होंने कोई दबाव नहीं डाला, सिर्फ अनुरोध ही किया।
बता दें कि सभी नाविक चार अलग-अलग जहाजों पर काम कर रहे थे। स्टीवन, ग्लोबल चेरिलिन, मार्गोल और एमएसजी एरीज नाम के जहाजों को पिछले ८ महीनों में ईरान द्वारा जब्त किया गया। स्टीवन जहाज को ईरानी तटरक्षक बल द्वारा १२ सितंबर २०२३ को तस्करी के आरोप में जब्त किया गया था। इसमें मौजूद चालक दल के ९ सदस्यों को भी गिरफ्तार किया गया था। दूसरे जहाज ग्लोबल चेरिलिन को ११ दिसंबर २०२३ को जब्त किया गया था। इसमें सवार चालक दल के २० सदस्यों को हिरासत में लिया गया था। तीसरे जहाज मारगोल को २२ जनवरी २०२४ को जब्त किया गया था। इसके अलावा एमएससी एरीज को १३ अप्रैल २०२४ को जब्त किया गया था। इसमें मौजूद चालक दल के १७ सदस्यों को हिरासत में लिया गया था।
इस तरह की अनेक घटनाएं हुई हैं। इनमें एमवी रुएन, एमवी लीला नोरफोक, एमटी हीरोइक ईदुन, एमटी ड्यूक आदि जहाजों पर कार्यरत हिंदुस्थानी नाविकों को जहाज जब्ती, हिरासत या समुद्री डाकुओं द्वारा अपहरण का शिकार होना पड़ा है, जबकि वर्तमान समय में २.५ लाख के करीब हिंदुस्थानी नाविक व्यापारिक जहाजों पर काम करते हैं। आयकर के जरिए ये हिंदुस्थान के खजाने में ८० मिलियन डॉलर से ज्यादा का योगदान करते हैं। हिंदुस्थानी नाविकों की वैश्विक हिस्सेदारी ११ फीसदी है। इसके बावजूद वे दुनिया में सबसे ज्यादा बदकिस्मत माने जाते हैं। वजह सरकार की कमजोरी व लापरवाही जो कि इन्हें दोयम दर्जे का नागरिक मानती है। कहने को तो मोदी साहब का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत मान-सम्मान है, लेकिन शायद ये मान-सम्मान काल्पनिक दुनिया में ही है, नहीं तो ईरान ४० हिंदुस्थानी नाविकों को तत्काल रिहा कर देता।
इन बदनसीब हिंदुस्थानी नाविकों की बदकिस्मती का मूल कारण मोदी सरकार ही है। दरअसल, मोदी सरकार अब तक एफओसी नामक एक अवैध व्यवस्था के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा पाई है। जहाजरानी उद्योग में एफओसी यानी फ्लैग ऑफ कनविनिएंस एक गलत व्यवस्था है। एफओसी वह स्थिति है, जिसमें कोई जहाज अपने मिल्कियत वाले देश के अलावा किसी अन्य देश में पंजीकृत होता है और उस देश के झंडे के साथ संचालित किया जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे हिंदुस्थान की कोई कंपनी कर बचाने के लिए या हिंदुस्थानी कानूनों से बचने के लिए किसी अन्य देश में पंजीकृत होती है। कुछ कंपनियां एफओसी का इस्तेमाल कामगार कानूनों व कर नीतियों से बचने तथा कुछ कंपनियां प्रतिबंधों से बचने के लिए करती हैं। यूएई के शारजाह में खड़ा जहाज सनशाइन एफओसी के रूप में पलाऊ व तंजानिया में पंजीकृत है।
एफओसी देशों के पास रेगुलेट करने की न तो कोई मशीनरी है, न ही कोई क्षमता, फिर भी जहाजों का पंजीकरण धड़ाधड़ होता है, क्योंकि राजस्व खूब मिलता है। अगर कोई जहाज एफओसी में पंजीकृत हो रहा है तो उसके पीछे उसकी सोच यही रहती है कि नाविकों के अपहरण, मृत्यु, शोषण, बेगारी में उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती। तो ये खेल चल रहा है। क्रूर खेल चल रहा है। ४११ हिंदुस्थानी नाविकों की सुधि कोई लेने वाला नहीं है। मोदी सरकार के जहाजरानी व जलमार्ग मंत्रालय के मंत्री भी कुछ नहीं कर रहे हैं, क्योंकि पूरी की पूरी सरकार निकम्मी है। अब इसकी विदाई का वक्त आ गया है।