मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : नोटबंदी से बड़ा है एसजीबी का झटका

राज की बात : नोटबंदी से बड़ा है एसजीबी का झटका

द्विजेंद्र तिवारी मुंबई

पिछले कुछ दिनों में कई अर्थ विशेषज्ञ मोदी सरकार की ‘सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड’ (एसजीबी) योजना अर्थात ‘संप्रभु स्वर्ण बॉन्ड’ को भारत की विफलतम योजना के रूप में घोषित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नोटबंदी’ से भी बड़ी तुगलकी योजना अगर कोई हो सकती है, तो वह है एसजीबी।
मोदी सरकार ने नवंबर २०१५ में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना शुरू की थी। योजना के समर्थन में कहा गया था कि इससे बड़ी मात्रा में सोने के आयात को कम करने और घरेलू बचत को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाने में सफलता मिलेगी। लेकिन नोटबंदी की ही तरह इस योजना में सरकार को भारी नुकसान होने लगा और सरकार ने इसे इसी वर्ष फरवरी में बंद कर दिया।
भारत के पास लगभग ८७६ मीट्रिक टन स्वर्ण भंडार है और यह दुनिया में आठवां सबसे बड़ा स्वर्ण भंडार है। अमेरिका के पास ८,१३३ मीट्रिक टन के साथ सबसे बड़ा भंडार है। भारतीय परिवारों के पास पर्याप्त मात्रा में सोना है, जिसमें काफी मात्रा में सोना रिकॉर्ड पर भी नहीं है। यह भी कहा जाता है कि अगर इस स्वर्ण भंडार की गणना की जाए तो भारत के पास और भी ज्यादा स्वर्ण भंडार का अनुमान लगाया जा सकता है।
स्वर्ण आयात की स्थिति
भारत ने वित्त वर्ष २०२४ में लगभग तीन लाख करोड़ रुपए मूल्य का सोना आयात किया। यह पिछले वर्ष की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है। उसी वर्ष भारत से सोने का निर्यात २६.५ करोड़ अमेरिकी डॉलर का था, जो आयात की तुलना में बहुत कम है। ज्यादातर यह निर्यात आभूषणों के रूप में होता है। आर्टिफीसियल ज्वेलरी के कारण यह उद्योग संकट का सामना कर रहा है। ऐसे में आगामी वर्षों में निर्यात पर और भी ज्यादा असर पड़ सकता है।
भारत मूल्य के आधार पर दुनिया भर में २०२३ में पांचवां सबसे बड़ा सोना आयातक देश बन गया, जिसकी मात्रा लगभग ४७ बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, और वैश्विक स्वर्ण आयात का नौ प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा भारत का था। उत्पादन के संदर्भ में भारत ने वित्त वर्ष २०२३ में लगभग ७८० किलो सोना उत्पादित किया, जबकि २०२२ में सोने का वैश्विक खदान उत्पादन ३,१०० मीट्रिक टन था। तदनुसार, भारत के अपेक्षाकृत कम घरेलू स्वर्ण उत्पादन का मतलब है कि देश की स्वर्ण मांग को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण मात्रा में आयात किया जाता है।
योजना से डबल नुकसान
एसजीबी योजना का मुख्य लक्ष्य भौतिक सोने की खरीद को हतोत्साहित करना और इस तरह भारत के सोने के आयात बिल को कम करना था, जो चालू खाता घाटे में महत्वपूर्ण योगदान देता है। ढाई प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ सोने पर आधारित बॉन्ड की पेशकश और सोने की कीमतों के बराबर पूंजी वृद्धि का वादा करके, सरकार को उम्मीद थी कि जनता सोना खरीदने की होड़ में नहीं रहेगी और स्वर्ण को एक वित्तीय उत्पाद में बदल दिया जाएगा।
लेकिन नतीजा इसके उलट रहा। सोने का आयात लगातार ऊंचा बना हुआ है जो ७०० से ९०० टन प्रति वर्ष के आसपास मंडरा रहा है, जो दर्शाता है कि एसजीबी योजना भौतिक सोने की जगह लेने में विफल रही। भारत में भौतिक सोने का भावनात्मक और सांस्कृतिक मूल्य-विशेष रूप से शादियों, त्योहारों और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में बहुत अधिक है और इसीलिए सरकार के कागजी संस्करण को नाकामी मिल रही है। ऐसा लगता है कि योजनाकारों ने इस पहलू को ध्यान में नहीं रखा। भारत में स्वर्ण सिर्फ एक धातु नहीं है बल्कि यह कई धार्मिक मान्यताओं का एक अहम हिस्सा है।
एसजीबी पर कुछ ही दिन पहले कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सरकार को जमकर घेरा था। अब वित्तीय योजनाकार और शोध विश्लेषक भी इसे नोटबंदी और मेक इन इंडिया की तरह ही बुरी तरह अदूरदर्शिता पूर्ण नाकाम योजना करार दे रहे हैं। एसजीबी की दोषपूर्ण पद्धति के कारण सरकारी देनदारियों में जमकर वृद्धि हुई है, जो केवल छह वर्षों में ९३० प्रतिशत बढ़कर, वर्तमान सोने की कीमतों के हिसाब से एक लाख करोड़ रुपए से ऊपर तक पहुंच गई है।
आम लोगों का पैसा
यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं होगा। सोने की कीमत में हर बढ़ते हुए उछाल के साथ, यह बढ़ता रहेगा। जाहिर है कि सरकार की अजीब योजना का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा और उनके टैक्स के पैसे से एसजीबी ग्राहकों को केंद्र सरकार पैसे चुकाएगी।
इस विफलता के लिए एसजीबी योजना की डिजाइन और सरकार के अपने कार्यों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। उदाहरण के लिए जुलाई २०२२ तक सोने के आयात शुल्क को १५ प्रतिशत तक बढ़ाया गया।
एसजीबी की शुरुआत के बाद से सोने की कीमतों में काफी उछाल आया है, जो २०१५ में लगभग २६ हजार रुपये प्रति १० ग्राम से २०२५ में ९० हजार रुपए प्रति १० ग्राम को पार कर गया है। इस वृद्धि के कारण सरकार के लिए लागत में भारी वृद्धि हुई है। चूंकि एसजीबी संप्रभु गारंटी द्वारा समर्थित है इसलिए करदाता अंतत: इन देनदारियों का बोझ उठाते हैं।
कुछ अर्थशास्त्री और बाजार विश्लेषक तर्क देते हैं कि एसजीबी एक सुरक्षित निवेश विकल्प प्रदान करता है, जो निवेशकों को शेयर बाजार में निवेश से ज्यादा लाभ देता है। इससे अंतत: भौतिक सोने की मांग को कम करने में मदद मिलेगी, पर इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि इसकी बढ़ती लागत दीर्घकालिक राजकोषीय जोखिम नहीं पैदा करेगी।

(लेखक कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

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