मुख्यपृष्ठस्तंभराज की बात : एआई में रफ्तार धीमी और गाफिल सरकार

राज की बात : एआई में रफ्तार धीमी और गाफिल सरकार

द्विजेंद्र तिवारी
मुंबई

पिछले सप्ताह भर से एलन मस्क के ‘एक्स’ पर नए एआई टूल ‘ग्रोक’ ने कहर बरपा रखा है। आरएसएस, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लोग सवाल पूछ रहे हैं और ग्रोक भर-भरकर ‘विशेषणों’ से उन्हें वर्णित कर रहा है। लोग आनंद लेने के लिए भी ग्रोक से इस तरह के सवाल पूछ रहे हैं- धरती पर ऐसा कौन-सा प्राणी है, जिसे फेंकू कहा जाता है। इसका जवाब वही मिलता है, जो आप इस समय सोच रहे हैं। एक तरफ अमेरिका, चीन जैसे देश इस तरह के एआई टूल बना रहे हैं, जिनकी लोकप्रियता और उपयोग तेजी से बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ भारत में सन्नाटा है।
आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के मामले में हम बुरी तरह पिछड़ चुके हैं। आश्चर्य है कि देश की आईटी कंपनियां इस अवसर का लाभ उठाने से चूक रही हैं। तो कुल मिलाकर यह दोहरी मार है। एक तो एआई में हमारा पिछड़ना और दूसरी तरफ इसकी वजह से सॉफ्टवेयर से जुड़े सर्विस सेक्टर में रोजगार पर संकट।
व्हाइट कॉलर नौकरियों पर संकट
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का उदय दुनियाभर में व्यापक चिंता का विषय बन रहा है और भारत इसका अपवाद नहीं है। जैसे-जैसे उद्योग विकसित होते जा रहे हैं, एआई सहित नई तकनीक रोजगार के परिदृश्य को तेजी से बदल रही है। तकनीक की दुनिया के विशेषज्ञ भारत के रोजगार पर एआई के संभावित प्रभाव के बारे में सख्त चेतावनी जारी कर रहे हैं, जिस पर केंद्र की भाजपा सरकार कान बंद किए हुए है।
वर्तमान व्हाइट-कॉलर नौकरियों में से लगभग ४० प्रतिशत निकट भविष्य में समाप्त हो सकती हैं, जिससे भारत के मध्य वर्ग और उपभोक्ता आधारित अर्थव्यवस्था पर गंभीर संकट पैदा हो सकता है।
इनमें सबसे प्रमुख आईटी, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं, जो लंबे समय से भारत की आर्थिक वृद्धि की रीढ़ रहे हैं और अब तो एआई विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं कि एआई इस वर्ष के अंत तक कोडिंग करने में सक्षम होगा। सरकार में बैठे लोगों सहित अधिकांश लोग अभी भी नहीं समझ पा रहे हैं कि एआई हमारी अर्थव्यवस्था के लिए कितना बड़ा खतरा हो सकता है।
व्हाइट-कॉलर नौकरियां अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा बनाती हैं। ये नौकरियां गायब हो सकती हैं, जिससे लाखों कर्मचारी अधर में लटक सकते हैं। चूंकि भारत मुख्य रूप से अपने बढ़ते आईटी क्षेत्र पर निर्भर है, जिसमें इंफोसिस, विप्रो और टीसीएस जैसी कंपनियां शामिल हैं इसलिए एआई का ऑटोमेशन की ओर बदलाव विनाशकारी हो सकता है। एआई संचालित सिस्टम, मशीन लर्निंग एल्गोरिदम और रोबोटिक्स पहले से ही ऐसे कार्य करने में सक्षम हो रहे हैं जो पहले मानव श्रम पर निर्भर थे, जैसे डेटा विश्लेषण, कोड डेवलपमेंट और यहां तक ​​कि ग्राहक सेवा भूमिकाएं भी शामिल हैं ।
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पिछड़ा
जब चार-पांच लाख प्रति वर्ष वेतनवाली नौकरियों की बात आती है तो हमारा विनिर्माण (मैन्यूपैâक्चरिंग सेक्टर) क्षेत्र उस स्तर पर नहीं पहुंच पाया है। यह एक मजबूत विनिर्माण आधार बनाने में विफलता है, जो व्हाइट-कॉलर क्षेत्र से होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त नौकरियां प्रदान कर सकता है। मेक इन इंडिया बुरी तरह फेल हो चुका है और औद्योगिक आधार विकसित नहीं है, जो प्रौद्योगिकी क्षेत्र से विस्थापित श्रमिकों को अपने साथ जोड़ सके। विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों की मांग व्हाइट-कॉलर नौकरियों की मांग के बराबर नहीं बढ़ी है, जिससे लाखों लोगों के रोजगार पर संकट पैदा हो सकता है। केंद्र सरकार की स्किल इंडिया जैसी योजनाएं भी कागजों पर ही चल रही हैं।
एआई के कारण व्हाइट-कॉलर नौकरियों के नुकसान के महत्वपूर्ण सामाजिक परिणाम भी हो सकते हैं। कम नौकरियों के उपलब्ध होने से भारत के मध्य वर्ग की क्रय शक्ति में गिरावट आ सकती है। जो कंपनियां लागत कम होने और दक्षता बढ़ाने के लिए एआई का जश्न मना रही हैं तो वे इस तथ्य को अनदेखा कर रही हैं कि एक मजबूत मध्य वर्ग और उपभोक्ता खर्च के बिना वे अपना बाजार खो देंगी।
मध्य वर्ग पर असर
आर्थिक विकास और स्थिरता मध्य वर्ग की समृद्धि से जुड़ी हुई है। यदि विकल्प प्रदान किए बिना एआई नौकरियां निगलता है तो इसका परिणाम उपभोक्ता खर्च में गिरावट के रूप में होगा, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
कई जाने-माने अर्थशास्त्रियों और तकनीक कंपनियों के विशेषज्ञों ने भारत के सॉफ्टवेयर जॉब मार्केट के भविष्य के बारे में चिंता जाहिर की है। वे चेतावनी दे रहे हैं कि एआई अंतत: बड़ी आईटी परियोजनाओं के मुख्य जॉब वर्क को खा सकता है, जिससे पेशेवर आईटी प्रोफेशनल्स की आवश्यकता और कम हो सकती है।
भारत के आर्थिक भविष्य को सुरक्षित करने और अपने मध्य वर्ग की समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए देश को अपने विनिर्माण क्षेत्र में अधिक निवेश करना चाहिए। विनिर्माण न केवल रोजगार पैदा करता है, बल्कि निर्यात को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है, जो आईटी क्षेत्र से नौकरी के नुकसान को संतुलित कर सकता है। इसके अलावा, देश को रोजगार क्षेत्र की बदलती मांगों के अनुकूल एआई, मशीन लर्निंग और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में अपने कर्मचारियों को तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
एआई अवसर और चुनौतियां दोनों प्रस्तुत करता है। इस तकनीक के प्रति भारत सरकार की प्रतिबद्धता इसके आर्थिक भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सरकार और प्रशासनिक स्तर पर रणनीतिक परिवर्तनों के बिना भारत के सामने ऐसी स्थिति उत्पन्न होने का खतरा है, जहां एआई आय असमानता को बढ़ाएगा और मध्यम वर्ग को भारी संकट में डालेगा, जिससे आर्थिक प्रगति को नुकसान पहुंचेगा।
(लेखक कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)

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