द्विजेंद्र तिवारी, मुंबई
सोशल मीडिया पर भाजपा के एक इंफ्ल्यूएंसर (प्रचारक) की एक पोस्ट पर नजर पड़ी। इस व्यक्ति ने एक अंग्रेज लेखक लांस प्राइस द्वारा २०१५ में लिखी किताब ‘द मोदी पैâक्टर’ का जिक्र किया है।
इस पुस्तक के एक पृष्ठ में एक ज्योतिषी और उसकी भविष्यवाणी का जिक्र किया गया है। पुस्तक के अनुसार- जब मैं (लेखक) भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के साथ बैठा हुआ था तो सफेद कपड़ों में लंबा तिलक लगाए एक व्यक्ति कमरे में दाखिल हुआ। उसने मुझे देखते ही मेरे बारे में भविष्यवाणियां शुरू कर दीं, लेकिन मेरी रुचि तो नए बने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में थी। मैंने उसे अपनी इच्छा जताई, तो वह कहने लगा ‘वैसे तो मोदी जी २०३२ तक सत्ता में प्रासंगिक बने रहेंगे और उन्हें पूर्ण बहुमत मिलता रहेगा। लेकिन उन्हें एक बार गठबंधन की सरकार चलानी होगी और थोड़े समय के लिए विपक्ष में भी रहना होगा।’ इंफ्ल्यूएंसर की यह पोस्ट काफी वायरल हुई है और अंग्रेज लेखक की किताब की बिक्री बढ़ गई है। यहां यह प्रश्न उठता है कि इस तरह की भविष्यवाणियों पर कितना यकीन किया जाए। पर भविष्यवाणी में एक महत्वपूर्ण बात छिपी हुई है और वह ये कि नरेंद्र मोदी को विपक्ष में भी बैठना पड़ेगा।
कुछ इसी तरह की चर्चा चेन्नई में रहने वाले माधवा कन्नड़ ब्राह्मण प्रतोष की भविष्यवाणी को लेकर है, जो काफी वायरल हुई है और वे सोशल मीडिया में ज्योतिषी के रूप में उभरकर आए हैं। वैसे तो प्रतोष मोदी समर्थक हैं, पर उन्होंने एग्जिट पोल के नतीजे नकारते हुए २ जून को ही लिख दिया था कि भाजपा २४५ सीटें पाएगी और मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे।
यह तो रही भविष्यवाणियों की बात। अब अगर जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए सोचें तो इन भविष्यवाणियों से उलट केंद्र की नई सरकार का भविष्य अंधकारमय लगता है। एक तरफ आंध्र प्रदेश में मुस्लिमों को ४ प्रतिशत आरक्षण का वादा करके सत्ता में आई तेलुगू देशम पार्टी है तो दूसरी तरफ अग्निवीर योजना रद्द करने और जातीय जनगणना पर जोर देने वाली बिहार की जनता दल यूनाइटेड है। इन मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी लगातार विरोध में रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि जदयू और टीडीपी दोनों ही दलों की विचारधारा भाजपा से बिलकुल अलग है। राष्ट्रीय महत्व के कई विषयों पर भाजपा को वे सहयोग नहीं करने वाले हैं। इसके बावजूद अब जबकि ९ जून के शपथ ग्रहण समारोह में दोनों ही दलों के मंत्रियों ने शपथ ले ली है, तो सरकार के गठन को देखकर यह कहावत याद आती है-
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा
नरेंद्र मोदी ने कुनबा जोड़ा।
बहरहाल, आज बात करते हैं भविष्यवाणियों की। शुरू में ही दो भविष्यवाणियों का जिक्र किया जा चुका है। ये दोनों ही भविष्यवाणियां सितारों की चाल और ग्रहों की स्थिति को लेकर की गई होंगी। यह माना जा सकता है कि भविष्यवाणी करने वाले दोनों ही व्यक्ति मोदी समर्थक हैं तो उनकी ज्योतिषीय गणना के निष्कर्ष में थोड़ा पक्षपात हो सकता है।
लेकिन अगर हम निष्पक्ष रूप से नरेंद्र मोदी की ‘तीसरी कसम’ के बाद सरकार का भविष्य देखें तो तीन अवसर ऐसे हैं, जिन्हें राहुकाल या शनि दोष की श्रेणी में रखा जा सकता है।
सबसे पहला राहुकाल सवा वर्ष बाद अक्टूबर २०२५ के आस-पास दिखाई पड़ रहा है जब बिहार में चुनाव होंगे। चुनाव के एक दो महीने पहले या चुनाव बाद खराब नतीजों के कारण नीतिश कुमार का भाजपा के साथ मन न लगने और फिर से पलटने का योग बन सकता है। राजद के साथ उनका मन नहीं लगा था, तब भतीजे तेजस्वी ने बिहार विधानसभा में पूछा भी था कि चाचा का मन लगने के लिए क्या किया जाए। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव न केवल बिहार, पूरे देश में परिपक्व नेता के रूप में लोकप्रिय हो चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से उनका राजनीतिक तालमेल जबरदस्त है। कांग्रेस और राजद की कुंडली मिलने से बिहार की विघ्न बाधाओं का अंत होने की पूरी संभावना है।
इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा शनि दोष लगभग ढाई वर्ष बाद दिसंबर २०२६ से शुरू हो जाएगा। इसका कारण फरवरी २०२७ में होने वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव हैं। वैसे शनि का ढैया अभी से शुरू हो चुका है क्योंकि उत्तर प्रदेश में शर्मनाक प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गोरखनाथ धाम वापस भेजने की कोशिश शुरू हो चुकी है। भाजपा के अंत:पुर में तलवारें खिंची हुई हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले से बना ज्वालामुखी चुनाव नतीजों के बाद फटने की पूरी संभावना है। वहां राहुल गांधी और अखिलेश यादव की दो लड़कों की जोड़ी अगले विधानसभा चुनाव में और बड़ा कमाल करेगी।
लगभग इसी दौरान तीसरा राहु काल भी शुरू हो जाएगा, जब लोकसभा सीटों के परिसीमन का काम शुरू होगा और जुलाई में राष्ट्रपति का चुनाव होगा। परिसीमन बेहद विवादास्पद होने वाला है, जिसमें राजनीतिक दलों के भविष्य पर काफी असर पड़ेगा। आबादी के आधार पर सीटों की वृद्धि को लेकर दक्षिण के राज्य पहले से ही आशंकित हैं। पूरा २०२७ इसी विवाद में उलझा रह सकता है, जिसका असर भाजपा के राष्ट्रपति उम्मीदवार पर पड़ सकता है। अगर तब तक मोदी सरकार बची रही, तो इंडिया गठबंधन का राष्ट्रपति उम्मीदवार जीत सकता है, जो प्रधानमंत्री पद से मोदी के इस्तीफे का कारण बन सकता है। मतलब यह कि सवा वर्ष से लेकर तीन वर्ष के बीच नरेंद्र मोदी की सरकार के गिरने के योग बन रहे हैं। इससे बचने के लिए कोई तंत्र-मंत्र या उपाय काम नहीं आएगा।
ऐसी स्थिति में मध्यावधि चुनाव अथवा कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों की सरकार बन सकती है। मोदी विपक्ष की सरकार बनाने की कोशिश को हरसंभव नाकाम करने की कोशिश करेंगे। नतीजा क्या होगा, लांस प्राइस की किताब के ज्योतिषी की भविष्यवाणी सच हो सकती है और मोदी को विपक्ष में बैठना पड़ सकता है। सत्ता और पैसे के लालच में फेविकॉल का जोड़ बनाने वाले नेताओं के लिए ये पंक्तियां मौजूं हैं-
ये दौर पैसे का है कुछ पता नहीं चलता
कि कौन बिक गया किस की जबान बाकी है
हमें मिटा दो मगर सच तो छुप नहीं सकता
गला कटा है अभी तो जबान बाकी है।
(लेखक कई पत्र पत्रिकाओं के संपादक रहे हैं और वर्तमान में राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय हैं)