मुख्यपृष्ठस्तंभराज ‘तंत्र’ : शिंदे की ‘शक्ति’, भाजपा नतमस्तक!

राज ‘तंत्र’ : शिंदे की ‘शक्ति’, भाजपा नतमस्तक!

अरुण कुमार गुप्ता

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आए ११ दिन बीतने के बावजूद महायुति अपनी सरकार नहीं बना पाई। पहले तो एकनाथ शिंदे सीएम पद छोड़ने को तैयार नहीं थे, फिर जब बात नहीं बनी तो वे गृह मंत्रालय और कुछ अन्य अहम विभागों पर अड़ गए। उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह के साथ दिल्ली में हुई मुलाकात के बाद भी बात नहीं बनी तो नाराज होकर अपने गांव चले गए। यहां सवाल यह है कि आखिर अपने आपको ताकतवर कहने वाली भाजपा शिंदे का नखरा उठाने के लिए लाचार क्यों हो गई? उसके पास सरकार गठन के लिए बहुमत से कुछ ही सीटें कम हैं। हालांकि, इसकी भरपाई करने के लिए अजीत पवार पलक-पांवड़े बिछाए तैयार हैं। भाजपा चाहे तो पलभर में एकनाथ शिंदे को साइडलाइन कर अपने दम पर सरकार बना सकती है लेकिन ऐसा नहीं कर सकती। दरअसल, शिंदे का नखरा उठाना भाजपा की मजबूरी है। क्योंकि शिंदे की शक्ति उनके ७ सांसद हैं, जो केंद्र की पीएम मोदी की सरकार के स्थायित्व को लेकर काफी महत्वपूर्ण हैं। संभवत इसी शक्ति बल के कारण शिंदे की बार्गेनिंग भाजपा बर्दाश्त कर रही है।

कहां गए अच्छे दिन?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशवासियों को जोर-शोर से अच्छे दिन का झांसा देकर केंद्र की सत्ता में आए, लेकिन उनके तीसरे टर्म में भी लोगों के अच्छे दिन नहीं आए। लोग अब भी महामहंगाई झेल रहे हैं। विकास चक्र धीमा हो गया है, विनिर्माण विकास धीमा हो गया है, मुद्रास्फीति चरम पर है। ‘अच्छे दिन कहां हैं’? जबकि रुपया निचले स्तर पर पहुंच गया है। इसके अलावा, नवंबर में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि ११ महीने के निचले स्तर पर आ गई और जुलाई-सितंबर तिमाही में कॉर्पोरेट प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जिससे शेयर बाजार में झटका लगा, क्योंकि विदेशी निवेशक पीछे हटने के लिए दौड़ पड़े। मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण मुद्रास्फीति भी बढ़ी है और पिछले साल अक्टूबर में सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति दर ४.८७ प्रतिशत थी, वहीं पिछले साल अगस्त के बाद यह पहली बार था कि खुदरा महंगाई दर रिजर्व बैंक की सीमा से ऊपर पहुंच गई। बढ़ती महंगाई के कारण आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना एक बार फिर धूमिल हो गई है। ऐसे लोग अब यही पूछ रहे हैं कि कहां गए अच्छे दिन?

अब कानून का जुमला!
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए-नए जुमलाें के लिए जाने जाते हैं। यह हम नहीं, बल्कि विरोधी दल के लोग सीना ठोककर कहते हैं। उनका कहना कितना सही है, यह समय-समय पर साबित भी हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी का ताजा जुमला देश के कानून को लेकर आया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि १८५७ की क्रांति के ठीक ३ साल बाद १८६० में अंग्रेज हुकूमत भारतीय दंड संहिता लेकर आए। उसके बाद इंडियन एविडेंस एक्ट आया और फिर सीआरपीसी का ड्राफ्ट अस्तित्व में आया। यह सब भारतीयों को दंडित करने के लिए बनाए गए थे। समय-समय पर इनमें संशोधन हुए, लेकिन उनका असली चरित्र वही बना रहा। लेकिन प्रधानमंत्रीजी भूल जाते हैं कि सिर्फ कानून बनाने या उसमें संशोधन से हालात सुधरने वाले नहीं हैं। आज भी देश में करोड़ों केस निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। इसके लिए जजों की संख्या और अन्य अदालती इंप्रâास्ट्रक्चर को दुरुस्त करना होगा। यदि ऐसा नहीं किया गया तो लोगों को न्याय तो दूर की कौड़ी होगी और फिर वही तारीख पर तारीख।

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