मुख्यपृष्ठस्तंभराजधानी लाइव : चुनाव आयोग पर निष्पक्षता की चुनौती!

राजधानी लाइव : चुनाव आयोग पर निष्पक्षता की चुनौती!

डॉ. रमेश ठाकुर नई दिल्ली

सोशल मीडिया का युग है, बात निकलती है तो दूर तक जा पहुंचती है। पूर्व में संपन्न हुए कुछ चुनावों में अनगिनत ऐसी घटनाएं हुर्इं, जिससे मतदाताओं का शक चुनावी प्रक्रियाओं पर गहराया। आयोग की कार्यशैली और ईवीएम मशीनों का प्रयोग, दोनों की विश्वसनीयता पर बट्टा लगा। यही वजह है कि बिगड़ते चुनावी मिजाज के किस्से अब चौक-चौराहों पर भी होने लगे हैं। चुनाव में चुनावी हवा मजबूत उम्मीदवार के पक्ष में होने के बाद भी मतगणना के दिन परिणाम दूसरे के पक्ष में पहुंच जाते हैं। न्यूज चैनलों और समीक्षकों की समीक्षाएं भी धरी रह जाती हैं। क्या ये तस्वीरें आयोग के अधिकारी नहीं देखते? अगर देखते हैं तो चुप क्यों रहते हैं? २०१९ में तो विपक्षी दलों ने खुलेआम आयोग की चोरी पकड़ी थी। लोकसभा चुनाव में ८ वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) के मिलान में अंतर मिला था, यानी .०००४ फीसदी वोटों का मिलान नहीं हो सका। समय की दरकार यही है कि अब आयोग को पूरी तरह से निष्पक्ष होना होगा और अपने पूरे तंत्र को आधुनिक रूप में रिफॉर्म करना होगा। अन्यथा चुनावी प्रक्रियाओं से देशवासियों का मन हट जाएगा। वैसे, धीरे-धीरे हटने भी लगा है। तभी मतदाता लगातार ‘नोटा’ को दबाने लगे हैं।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग वैâसे हुकूमती बीन पर डांस करता है, ये सब खुलेआम अब दिखने भी लगा है। जिसकी सत्ता, उसके पक्ष में मुख्य चुनाव आयोग द्वारा बीन बजाने की प्रवृत्ति अब और तेजी से बढ़ी है। जबकि ये वो संस्था है, जिसके कंधों पर ऐसी जिम्मेदारी होती है, जो सरकारों की नींव रखने का श्रीगणेश करती है। पूर्व के चुनाव आयुक्तों से बात करें तो वो खुलकर तो नहीं बोलते, पर बदलती प्रवृत्ति से दुखी जरूर हैं। बेशक कोई खुलकर कुछ न कहे, पर ये सत्य है कि सरकारें आयोग के हाथ बांधने की कोशिशों में कमी नहीं छोड़तीं। ऐसा कोई एक दल नहीं करता, सभी करने की कोशिश करते हैं। आयोग के काम में हस्तक्षेप अब अंदरूनी स्तर पर खूब होने लगा है। हमने ऐसा भी देखा है कि जब कोई अधिकारी सरकारों की बात नहीं मानता, तो उनका तबादला होने में देर नहीं लगती। आयोग को सशक्त और कठोर होना पड़ेगा, तभी बात बनेगी। संभवत: अगले सप्ताह तारीखों की घोषणाएं हो जाएंगी। आयोग इस बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का इस्तेमाल करेगा, जो सराहनीय है। इस बार मुख्य चुनाव आयोग लोकसभा-२०२४ के चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष संचालन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक का इस्तेमाल करेगी। इसके लिए आयोग ने एक अलग से विभाग बनाया है, जो सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भ्रामक और गलत सूचनाओं को चिह्नित करेगा और उन्हें हटाने का भी काम करेगा।
हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय चुनाव आयोग एक दुर्जेय संस्था है, जिसने अपनी स्थापना के बाद से चुनावी दक्षता में पूरी दुनिया का नेतृत्व किया, पर आचार संहिता के उल्लंघन से जुड़ी हालिया घटनाओं, खासकर सत्तारूढ़ दल द्वारा की गई घटनाओं ने विश्वसनीयता संबंधी गंभीर चिंताएं पैदा की हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि सेवानिवृत्त नौकरशाहों और राजनयिकों के समूह को राष्ट्रपति को सुधार हेतु पत्र भी लिखना पड़ा। पत्र के जरिए उन्होंने चुनाव आयोग के कमजोर आचरण और विश्वसनीयता के संकट पर गहरी चिंता जताई। अब आयोग को सबसे पहले अपने पर लगे आरोपों को धोना पड़ेगा, क्योंकि इससे कई चीजें धूमिल हुई हैं। समूचे हिंदुस्थान में बैलट पेपर से इलेक्शन कराने की मांग तेजी से उठी है। जो इशारा करती है कि जनमानस का विश्वास मौजूदा चुनाव प्रक्रिया से डगमगा गया है? प्रत्येक चुनाव में वोटिंग का प्रतिशत गिरा है। चुनाव के दिन लोग घरों में छुट्टियां मनाते हैं, मतदान करने बूथ पर जाने को वे अपना समय बर्बाद समझते हैं। जबकि वोटिंग की गति को बढ़ाने के लिए चुनाव दर चुनाव भयंकर कोशिशें की जाती हैं। प्रचार-प्रसार, जागरूकता के नाम पर सरकारी पैसा पानी की तरह बहाया जाता है, पर रिजल्ट वही ‘नील बटे सन्नाटा’ ही रहता है।
मतदाताओं का चुनावों से मोहभंग क्यों हो रहा है? दरअसल, इसके कई वाजिब कारण हैं। हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों के चुनाव में छत्तीसगढ़ से ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया था, जिसने पूरे चुनावी तंत्र को नंगा कर दिया था। हालांकि, उस मुद्दे को चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन ने मिलकर दबाकर अपनी जान बचाई थी। पर संदेश जहां तक पहुंचता था, पहुंच चुका था। हुआ यूं कि बसपा प्रत्याशी को अपना डाला वोट भी नहीं मिला? उनके अलावा उनके घर के छह सदस्यों ने भी वोट डाला था, वो भी ईवीएम मशीन गटक गई। ये घटना छत्तीसगढ़ की कुरूद विधानसभा की है, जहां से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी लालचंद पटेल लड़े थे, उन्होंने ईवीएम में गड़बड़ी का वाजिब आरोप लगाकर सबको चकित कर दिया था। उनके आरोप पर बड़े अधिकारी चुप रहे, नेता तो कुछ बोले ही नहीं। पीड़ित ने मुख्य चुनाव आयोग से शिकायत करने के लिए समय मांगा, तो नहीं दिया। यह कोई पहली घटना नहीं है, प्रत्येक चुनावों में ऐसी घटनाएं होने लगी हैं। चंडीगढ़ मेयर चुनाव में जो हुआ, उसके बाद तो वोट चोरी के आरोप और गहरे हो गए। बीते लोकसभा-२०१९ के आम चुनावों में आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की बढ़ती घटनाओं के साथ चुनाव आयोग पहले से कहीं ज्यादा सवालों के घेरे में आ गया है। आयोग को अपनी स्वायत्तता की रक्षा के लिए कुछ संस्थागत सुरक्षा उपायों की सख्त जरूरत है। वक्त की मांग यही है कि व्यापक-आधारित परामर्श तंत्र के माध्यम से चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों का राजनीतिकरण न किया जाए।
(लेखक राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान, भारत सरकार के सदस्य, राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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